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Showing posts from January, 2023

*460. तूं चली जा हे, मार्ग अपने को। 197

तू चली जा हे, मार्ग अपने को। तू ठगनी ठगने को आई ठगने आई मोए। हम हैं ठगिया राम नाम के बेच खाएंगे तोए।। घूंघट काढ चली पीहर से घूमर घूमर होए। इन गलियों में क्या काम है तेरा लंबी डगरिया होए।। अब पछताए होत क्या सुंदरी, दिन्हा खलक डुबोय।। सुख देख पिया को रोए लाज ना आई तोए।। प्रेम पियाला सो जन पीवे ज्योत मर जाए जोय। कह कबीर सुनो भाई साधो असल जात का होए।

*507. साईं के नाम बिना नहीं निस्तारा।। 231

साईं के नाम बिना नहीं निस्तारा जाग जाग नर क्यों सोता। जागत नगरी में चोर नहीं आवे जख मारेगा यमदूता।। जप कर तप कर करोड जतन कर काशी में जा क्रोत लिया। बिना मरे तेरी मुक्ति ना होवे मरजा योगी अवधूता।। जोगी हो फिर जटा बढ़ा ली अंग रमा लेई भभूता। दमड़ी कारण काया फूंक लई, योग नहीं ये तो हठ झूठा।। जिनकी सुरती लगी राम में काल जाल से वह ना डरता। अधर अणी पर आसन रखें शो जोगी जन अवधूता।। जागा सो नर जुग जीता सौवतड़ा नर चोरासी। रामानंद का कह कबीरा मंजिल मंजिल जा पहुंचा।।

*508. निंद्रा बेच दूं कोई ले तो।। 231

निंद्रा बेच दूं कोई ले तो।। राम नाम रटे तो तेरा मायाजाल कटे तो।। भाव राख सत्संग में बैठो चित में रख चेतो। हाथ जोड़ चरणों में रख दो जो कोई संत मिले तो।। पाई की मन पांच बेच दूं, जो कोई ग्राहक हो तो। पांचों में से चार छोड़ दूं जो राम रोकड़ा दे तो।। के तो जावो राज दवारे के रसिया रस भोगी। म्हारा पीछा छोड़ बावली, हम तो रमते जोगी।। कहे भरथरी सुनहरी निंद्रा यहां ना तेरा वासा। मैं तो म्हारे गुरु चरणों में, हो राम मिलन की आशा।।

*514 आशिक हो ना फिर सोना भी क्या रे।। 233

आशिक हो ना फिर सोना भी क्या रे।। जो तेरी आंखों में नींद घनेरी तकियाऔर बिछोनाभी क्या रे।। बासी कूशी गम के टुकड़े, मीठा और अलूणा भी क्या रे।। जिस नगरी में दया धर्म नहीं उस नगरी में रहना भी क्या रे।। कथ की कमाली कबीरा थारी बाली।                                शीश दिया फिर रोना भी क्या रे।।

*601. लाखों सिर दे रखें अब तक यमराजा की भेंट तूने।।

लाखों सिर ध्यान रखें अब तक यम राजा की भेंट तने। एक शीश ना दिया आज तक सतगुरु चरणों टेक तने।। भाई जब से आया इस दुनिया में उल्टा मुड़के गया नहीं। जन्म मनुष्य का पाकर के फिर खुद पर आई दया नहीं।     काम करा कुछ नया नहीं भरा पशु की तरीयां पेट तने।। लख चौरासी फिरा भी, आवा और गमन के मां। बिन सतगुरु नानिकल सके ऐसा फंसारहा कजरी बन के मां।    रह के लुगरा पन के मां सब कर दिया मलिया मेट तने।। काल जाल में फंस रहा तूने खुद की करी पीछान नहीं। भूत पिशाच बहुत से पूजा उस मालिक की जान नहीं।     भाई बदली मंकी बाण नहीं ना किया सत्संग से हेत तने।। सतगुरु संत संगत में कदे देखा ना तूने जाकर के।सुगरा बन ना करी कमाई नाम दवाई खा कर के।      मानुष चला पाकर के भाई काटी ना अलसेट तने।। चिड़िया चुग जाए फसल तेरी तू बचा अपना खेत लिए। सतगुरु वेद प्रकाश कहे अब चेता जा तो चेत लिए।    भाई कर सतगुरु से हेत लिए मिल जा अमरापुर देश तने।।

*628. धर्म-कर्म दिए छोड़ लोभ ने तो।। 308

धर्म-कर्म दिए छोड़ लोभ ने तो गर्स लिए।। वेद शास्त्र ऋषि मुनियों की मर्यादा दई तोड़।                    तोडेंगे तोड़न लागे जोड़।। बड़े गवाही खाए मिठाई झूठी ले ले ओड। काम करें पशुओं के मारे गाड़ी में घले ना मरोड़।। दाने घरां खान ने कोन्या, चाहिए लाख करोड़। छोड़ ढूंढ कर लूंगा ज्यादा मिले ना सोवन ने ठोड़।। अमृत बाहवे फल जहरीले पीवे ब्रुस निचोड़। आत्मानंद मोहे अचरज आवे कैसे निभेेगी उनकी होड़।।

*653. लिए काट जिसे बो के आया।।

लिए काट जिसे बो के आया। हंसते-हंसते गया यहां से फिर वापस क्यों रोके आया।। गर्भ के अंदर मदद करी, वह खास नरक की कोठी थी। हर्क फर्क कुछ रहा नहीं वह जगह बहुत ही छोटी थी।  तूने भजन करण की होती थी फिर सहम डले ढो के आया।। उस मालिक ने सौंप दई है तेरे हाथ में ताला कुंजी। कित खाई कित खर्च करी, मने बता दे रे मुंजी।    कुछ साहूकार से एंठ के पूंजी, बता कहां खो के आया।। मनुष्य जन्म तुझे मिला अमोला नाम रहे तेरा दुनिया में। सदा कुसंग के सथ रहा तू कोन्या बैठा गुनिया में।  एक अनमोल सुरंग की दुनिया में तू झूठे जंग को के आया।। गाने वाला गा रहा था और सुनने वाला सुन रहा था। लोग सभा के कहन लगे भला ठीक ज्ञान सा आ रहा था।   तू दयाचंद जा रहा था तूने मायने में टोह के आया।।

*360 हम सत्य नाम व्यापारी।।152।।

                                                             152  हम सत्य नाम व्यापारी साधो गुरू नाम व्यापारी।।       कोय-२लादे कांसी पीतल, कोय-२ लोंग सुपारी।       हम तो लादें नाम धनी को, पूरी खेप हमारी।। पूंजी न टूटे नफा चौगुना, बनज कियो हम भारी। हाट जगत की रोक सके ना, निर्भय गैल हमारी।।        मोती बूँद घट ही में उपजे, सूझत भरे भंडारी।       नाम पदार्थ लाद चलो हे, धर्मिदास व्यापारी।।

*359 कोई सौदा ले लो खुली है धर्म की।। 152

                                  152 कोई सौदा ले लो, खुली है धर्म की हॉट।। जिस जिस ने ये सौदा लिया, सिर की कर गए साट। दसों इंद्री वश में करके कॉल दिया था डाट।। सौदा किया प्रहलाद भगत ने पिता रहे थे नाथ। होलिका ले गोदी में बैठी, के घाली थे घाट।। सौदा किया था हरिश्चंद्र ने शमशान के घाट। लड़का राजा रानी बिक गए कुबना बाराबाट।। सौदा किया था मोरध्वज ने, संत लिए थे डाट। तन मन धन सब अर्पण करके, दिया था लड़का काट।। सौदा किया मीरा बाई ने, गई कुनबे त पाट वृंदावन में घले झोंपड़े, तजे अमीरी ठाठ।। सौदा किया था धन्ना भगत ने, कोम का था जाट। रस्ते में दो साधु मिल गए, बीज दिया था बांट।। सौदा किया था रविदास ने, चढ़ गए उल्टी बांट। बिना भजन तेरा मुंह पिट जा रे, हो कोई मुल्की लाट।।

*358 हम हैं सत्य नाम व्यापारी।। 152

                           151 हम हैं सत्य नाम व्यापारी, प्रेम नगर म्हारो गाम।           कोय ले लो रे, ले लो हरि का नाम।। प्रेम नगर से हम चल आए, सौदा सत्तनाम का लाए।            सत्तनाम है सार जगत में, कोड़ी लगे न दाम।। बाट तराजू कुछ ना भाई, तोल मौल में एबी नाहीं।           हम तो सौदा सत्त का लाए, ना तोलन का काम।। तूँ पाँचा से प्रीत न कीजे, निर्भय नाम गुरू का लीजे।          सुगरा हो तो भर भर पीवै, ना नुगरां का काम।। सत्तनाम का भरा खजाना, पावेगा कोय चतुर सुजाना।         कह हरिदास ये रटना हमारी,                     निशदिन आठों याम।। 

*357. सौदा करै सो जाणै।। 152

                                                                 151 सौदा करै सो जाणै रे, काया गढ़ खुला है बाजार।।    इस काया में हाट लाग रही, बैठे साहूकार।    व्यापारी ने पूरा तोलै, डांडी मारैं सरे बाजार।। इस काया में लाल बिकें, कोय परखे परखनहार। गुरूमुख जोहरी परख पिछाने, के नुगरा ने सार।।    इस काया में पातर नाचै, हंस करें व्यवहार।    अर्द उर्द की पायल बाजै, सुरतां सुन्न में करै सिंगार।। इस काया में चोर फिरें, तनै लूटें सरे बाजार।  गुरुमुख हो सो बचै काल तैं, नुगरा भव की धार।।    इस काया में धनी विराजे, तिनके ओट पहाड़।    कह कबीर सुनो भई साधो, गुरु बिन घोर अंधियार।।

*379 तेरा चिड़िया ने खा।। 159

                                  159 तेरा चिड़िया ने खा लिया खेत,रखवारा पडकै सो गया।। चिड़ी तृष्णा मोह गोलियां, चुग चुग खावै ज्वार। किस गफ़लत में सोया बाबले, उठ के तूँ गोला मार।। चारोँ तरफ के उड़ उड़ पक्षी, बैठे क्यारी माय। चारोँ कोने घिरे खेत के, निर्मल सर्टी खायँ।। सद्गुरु शब्द गोफ़िया लेके, गोला ज्ञान टिकाये।  जिक्र फिक्र का छोर फटक ना,शब्द ने वर उड़ जाए।। जब तेरा खेत उजड़ जा भोंदू हो जाएगा कंगाल। घीसा सन्त कह जीता से, फेर के अड़ावैगा ढाल।।

*377 यह सौदा सत भाय करो प्रभात रे।। 158

                    158 यह सौदा सत्यभाय करो प्रभात रे। तन मन रतन अमोल, बटाऊ जात रे।। बिछड़ जाएंगे मीत, मता सुन लीजिए। फिर ना मेला होए कहो क्या कीजिए।। शील संतोष विवेक दया के धाम हैं।  ज्ञान रतन गुलजार संघाति राम है।। धर्म ध्वजा फरकत फरहरे लोक रे। ता मत अजपा नाम सुसोदा रोक रे।। चले बनजवा ऊंट हूट गढ़ छोड़ रे। हर हारे कहता दास गरीब लोग जम दांड रे।।

*376 गठरी में लागे तेरै चोर।। 158

                                    158                               गठरी में लागे तेरै चोर, मुसाफिर के सोवै।। पाँच पच्चीस ओर तीन चोर हैं,                      सब ने मचा दिया शोर।। जाग सवेरा बाट सवेरा,                      फेर ना लागैं तेरै चोर।।  भँवसागर एक नदी बहत है,                      गुरू बिन उतरा ना कोय।। कह कबीर सुनो भई साधो,                     छोड़ो जगत की डोर।।

*375 गठरी छोड़ चला बंजारा।। 158

                        158 गठरी छोड़ चला बंजारा। इस गठरी में चांद और सूरज इसमें नौलखा तारा।। इस गठरी में सात समंदर कोई मीठा कोई खारा।। इस गठरी में नौबत बाजे अनहद का झंकारा।। कह कबीर सुनो भाई साधो कोई समझे समझन हारा।

*374 मत बांधो गठरिया अपयश की।। 157

                           157 मत बांधो गठरिया अपयश की।।              अपयश की रे बिना शक की।। मात-पिता से मुख नहीं बोले, त्रिया से बात करे रस की।। धन योवन का गर्व न कीजे तेरी उमरिया दिन दस की।। धर्म छोड़ अधर्म को ध्यावे नैना डुबावे जन्म भर की।। भाई बंधु और कुटुंब कबीला यह सब है रे मतलब की। कह कबीर सुनो भाई साधो निकलेगा सांस रहे ना वश की।।

*373. के बांध गाँठड़ी लाया।। 157

                                157 के बांध गाँठड़ी लाया रे, बन्दे सब ईश्वर की माया रे।। यो आदम देह का चोला, बड़ी मुश्किल तैं पाया सै। तूँ कुछ भी सँग ना लाया, सब रचा धरा पाया सै।                    तूँ बन्द कर मुट्ठी आया रे।। इस मोहमाया के जग में, तनै तन को खूब फँसाया।  फेर निकल सका ना जाले से, तूँ बहुत घना पछताया।                गृह के चक्कर में आया रे।। यहां झूठी मेरा मेरी, कोय चीज यहाँ नहीं तेरी। यमराज घाल लें फेरी, तेरे तन की होजा ढेरी।               बन राख तेरी साया रे।। कहि रणसिंह भाई कवियों ने, एक अच्छी बात बताई। तेरे कुछ न चलेगा सँग में, सँग चालै सिर्फ भलाई।              जिनै हरि नाम को ध्याया रे।।

*372 गठरी-३ कित।। 157

                                                           157 गठरी गठरी गठरी कित भुला रे मुसाफिर गठरी।।       इस गठरी में माल भतेरा।                      दाख छुहारे गिरी मिश्री।।     इस गठरी ने डाकू लूटै,                         जादू चले न कोय जकड़ी।।      भक्ति करे तो ऐसी करना,                         ज्यूँ चढ़े बांस पे नटनी।।      कह कबीर सुनो भई साधो,                         सत्त की है ये पटड़ी।।

*371 हटड़ी छोड़ चला बंजारा।। 158

                                     हटड़ी छोड़ चला बंजारा।। इस हटड़ी विच मानक मोती, विरला ए परखनहारा।। इस हटड़ी मे नो दरवाजे, दसवां है ठाकुरद्वारा।।  निकल गई तब ढह गया मंदिर, रह गया चिक्कट गारा।। कह कबीर सुनो भई साधो, झूठा ये जगत पसारा।।

*370 सौदा कर चल रे भाई।। 156

                              156                               सौदा कर चल रे भाई, यहाँ तूँ राम नाम सत्त का।।    हाथी घोड़ा रथ पालकी, ये सौदा उर लाई।    राम नाम के प्रेम भजन से, जन्म-२ सुख पाई।। इस सौदे को चौकस रखना, धाड़ यमों की आई। गुरू का ज्ञान खड्ग ले कर में, निर्भय हो के जाइ।।     शबर शील हथियार बड़ा है, सत्त की ढाल बनाई।     ये जंग जब जीतेगा, तूँ जीवत ही मर जाइ। । इस सौदे के ग्राहक हैं थोड़े, सूरे सन्त सिपाही। इस सौदे को वे जन लेंगे, तज दें मान बड़ाई।।     इस सौदे में बड़ा नफा है, देते सभी गवाही।     कह कबीर सुनो भई साधो, फिर मौसम ना पाई।।

*367 ऐसी ताली रे लगाए चला जा।।2।। 155

                       155 ऐसी ताली रे लगाई सजना जा बाजार तेरा सुना रे पड़ा।। इस काया में 9 दरवाजे दसवीं छोडी मोरी। आया था जब जान पटी रे, चला चोरी चोरी।। कोडी कोडी माया जोड़ी बन गया लाख करोड़ी। दो टके की तागड़ी, चलती बरिया तोड़ी।। जब तक तेल दिए मे बाती जगमग जगमग हो रही। जल गया तेल निबढ़ गई बाती, महल अंधेरा होई।। जार जार तेरी माता रोवे और रोबे तेरी ब्याही। सरहाने खड़ी तेरी बुआ रोवे अकल राम ने खोई।। दाएं हाथ तेरा छोरा रोवे बाएं हाथ तेरी छोरी। भुजा पकड़ तेरा भाई रोवे, बिछड़ गई मारी जोड़ी।। चारों के तू कंधे जागा मिले काट की घोड़ी। कहे कबीर सुनो भाई साधो फूंक दे जैसे होरी।।

*366 तेरा मेला लगा बाजार।। 155

                              155 तेरा मेला लगा बाजार सोदा कर चल अरे भाई।। एक दिन आवत जात है रे एक दिन यह भी जाए। यो झमेला लग रहा रे ले ले वस्तु जाए।। एक आवत एक जात है रे देखी अजब यह बात। यही मिले यही बिछड़ेंगे बेटा हो या बाप।। वरुण वरुण के दाम है रे चाहे जो ले जाए। तेरा तुझ में राम है रे कहां फिर गवार।। सतगुरु की हाथ पर रे सौदा है सत सार। ज्ञानी सौदा कर चले रे जो मूर्ख फिरे गवार।। पांच पच्चीस को मारके रे घेेरों आसन लाए। सतगुरु जी तो न्यू कहे रे मन कपटी ने डांट।।

*365 समझ सौदा कर चालो रै।। 154

                             154 समझ सौदा कर चालो रे, तेरा जन्म बिहुना यूँ ए जा।। काया नगर में पीठ लाग रही,                      प्रेम विषयहींन कर चालो रे।। उठ जागी पीठ सौदा हाथ न आवै,                    मन की या मन मे रह जाए रे।।  तन की कुंडी सुरत का साबुन,                    दिल की काई ने धो चसलो रे।। कथगी कमाली कबीरा थारी बाली,                      शब्द किनारे लग चालो रे।।

*364 हम से कौन बड़ा परिवारी।। 154

                          154 हम से कौन बड़ा परिवारी।। सत्य से पिता धर्म से भ्राता, लज्जा सी महतारी। शील बहन संतोष पुत्र है, क्षमा हमारी नारी।। आशा साली तृष्णा सासु, लोभ मोह ससुराली। अहंकार से ससुर हमारे, वह सब के अधिकारी।। दिल दीवान सूरत है राजा, मंत्री बुद्धि हमारी।  काम क्रोध दो चोर बसत हैं,उनको डर मोहे भारी।। ज्ञानी गुरु विवेकी चेला, सदा रहे ब्रह्मचारी। पांच तत्व की बनी नगरिया, दास कबीर विचारी।।

*363 आया था नफा कमावन।। 154

                             आया था नफा कमावन, टोटा गेर लिया रे।। पिछली पूंजी घटती जारही, आगै करता ना तैयारी। एक दिन या चूक लेगी सारी, तौसा सेर लिया रे।। सुत नारी का मोह करै सै, इब तो मूर्ख विपद भरै सै। निशदिन चिंता बीच जलै सै, झगड़ा छेड़ लिया रे।।  हरि के जाना होगा साहमी, मतना शीश धरै बदनामी। तूँ असली नमक हरामी, मुखड़ा फेर लिया रे।। धर्म ने छोड़ करै मतचाला, तेरा ममता ने कर दिया गाला। अहंकार नाग है काला, तूँ तो घेर लिया रे।। श्रीहरीस्वरूप कथन है चन्दन, समझे उसके काटे बन्धन। सत्तनाम धर्म जगत का नन्दन, कई बर टेर लिया रे।।

*362 भाई तू श्याना कोन्या गेर लिया तने टोटा।। 153

                            153 भाई तू शाना कोन्या, गेर लिया तनै टोटा।। जब तेरे आवे कसारा पगले राजी हो के ओटा। आगे तेरे किए उमड़ेंगे, बाजें यम का सोटा।। औरों ने बेवकूफ बतावे खुद बुद्धि का झोटा। कुछ तो जमा करा दे भोंदू हो गया करजा मोटा।। माने तो तने विधि बताऊं, ला सुमरिन का घोंटा। सुबह श्याम दो टेम बांध ले, गेर भजन का कोठा।। कहे कबीर सुनो भाई साधो छोड़ो करतब खोटा। रुखा सुखा खा के न तूं पी पानी का लोटा।।

*361 कोई ऑन करो व्यापार घाटा रहता ना।। 153

                                  153 कोई ऑन करो या पार घाटा रहता ना। कंगला भिखारी बन के चला राम नाम का औढ दुशाला।                          कभी ना आवे हार।। हे सतगुरु जी महिमा थारी कंगले का पलड़ा रहता भारी।                          तेरा भरा पड़ा भंडार।। सत्य हीये में धरके तोले, सतगुरु आकर बोली बोले                        ले लो नर से नार।। हरदम रस्ते चलता जावे पांच लुटेरे नहीं सतावे।                          उत्तरा सारा भार।। दीना दासी रहा बताएं सतगुरु सत्य का सौदा करावे।                         सत्यानंद गुरु सिरजनहार।।

*391 राम भजो रे, एक दिन टांडा लद जासी।। 163

राम भजो रे सुमिरन कर लो, एक दिन टांडा लद जासी।। जंगल चरती बोली बकरी, हाय कसाई मुझे ले जासी। चीरी खुरी मेरी न्यारीन्यारी करदी, फेरचरने को कौन आसी।। हटडी देख वो बोला बनिया, हाट मेरी उरै रह जासी। पूरा पूरा तोल मेरे लाला, फेर तुलन को कौन आसी।।  बाग में बैठी वा बोली मालिन, बाग मेरा उड़े रह जासी। नन्ही नन्ही चुनो मेरी कलियां, फेर चुनन को कौन आसी। चाक घुमाता बोला कुम्हरा, चाक मेरा उरै रह जासी। कह कबीर सुनो भई साधो, माटी में माटी तेरी मिल जासी।।

*390 टांडा लाद चला बंजारा।। 163

                                                         163 टांडा लाद चला बंजारा, रोती छोड़ी बंजारी।। जहां रहता था तेरा डेरा, तूँ कहता था मेरा मेरा। एक दिन होजां गमन सवेरा, तज यारां की यारी।                      फेर कुनबा कौन है प्यारा।। कुँआ तालाब बावड़ी मंदिर, छोड़ चाहे जंगल के अंदर। 16 साल की छोड़ी पुनगर, ना बाण लगै प्यारी।                      इने कुनबा कौन है प्यारा।। सात फेरों की जो थी ब्याहता, तोड़ चाहे तूँ उससे नाता। कैसा अब तूँ बने विधाता, थारी याद में कुँवारी।                    अब कैसे होय गुजारा।। तेरी क्या ताक़त है प्यारे, लाखों चले गए बंजारे। घीसा कहे सुन पण्डिता प्यारे, अब करले न त्यारी।                       ये जग है ढूंढ पसारा।।

*389 टांडा तो तेरा लद जाएगा।।163 ।।

                                              163 टांडा तो तेरा लद जाएगा बंजारी,                उठ विरिहन सुरत सम्भाल।।       टांडा तेरा लद चला हे, तूँ विरिहन रही सोय।        आंखखुली जबरही एकली, नैन गंवाए रो रोये।। धमनी धर्मन तैं बंद हुई रे, जल बुझ भये अंगार। आहरण का सांसा मिटा रे, लद गए मीत कुम्हार।।      चन्दन की चौकी बिछी रे, बीच मे जड़ दिये लाल।    हीरां की घुंडी घली ते, पच-२ मरो हे सुनार।। लाखों शीश तूँ दे चुकी हे, यमराजा की भेंट। एक शीश तनै ना दिया हे, सद्गुरु जी के हेत।।    कह कबीर सुनो जी केशवा, थारी गत अगम अपार।    सन्तों ने ला दो नाम धनी के, लोभ मरो संसार।।

*388 बनज कैसे किया रे, मेरे लालन के।। 162

                                   162 वणज कैसे किया रे, मेरे लालां के ब्यापारी।। गोदी गूण बैल हैं बूढ़े, बोझ भरा बड़ा भारी। जाना दूर पहुँचना मुश्किल, मूर्ख नहीं विचारी।। आगै नगरी चोर ठगां की, वहां जा बालद तारी। तूँ तो भोंदू पड़के सोग्या, या खेप लुटा दई सारी।। साहूकार की लाया पूंजी, देनी नहीं विचारी। आगे की तेरी परत ऊठगी, कोड़ी मिले ना उधारी।। किसै ने भरली लोंग सुपारी, किसी ने सांभर खारी। सन्तों ने भर लिया नाम हरि का, बनजा ने संसारी।। कह कबीर सुनो भई साधो, खोटी वृति थारी।  जग में निंदा राजा डांटे, यमपुर की तैयारी।।

*387 हे बंजारन तेरा छोड़ चला बंजारा।। 162

                              162 हे बंजारन तेरा छोड़ चला बंजारा।। इस काया में सात समुंदर कोई मीठा कोई खारा। इस काया में गंगा जमुना, बहे धारा त्रिवेणी धारा।। इस काया में सोना चांदी माहे भजे सुनारा सुनारा। तीन सो साठ की टूम घड़ा ले, माहे तेरा सिंगारा।। इस काया में चोर वसत हैं माही पकड़ने वाला। इसका काया में चांद सूरज है, मां है नौलखा तारा।। इस काया में बाजा बाजे हारमोनी इकतारा। कह कबीर सुनो भाई साधो भेद किसी ने ना पाया।।

*386 बंजारन अँखियाँ खोल।। 162

                                                         162 बंजारिन अँखियाँ खोल, टांडा तेरा किधर चला।।      क्या सोवै उठ जाग दीवानी                            आगै गारत गोल।।     तूँ गहले गफलत के माते,                            तेरी चीज है वस्तु अमोल।।     चहुँ दिश लद लद चले मुसाफिर,                              मत गई दे दे पोल।।     देव बिहुनी सब ही सूनी,                             ना हद किये किलोल।।     रैन बिहुनी ये तूँ न जानी,                           कहा बजाऊं ढ़ोल।।      नित्यानन्द महबूब गुमानी,                          रंग में रंग झकोल।। 

*385 अे सुन बुलधा आले हरि ने सुमर मेरे भाई।। गोरख नाथ।।161।।

                                     161 रे सुन बुलद्धा आले हरि ने सुमर मेरे भाई।। राम नाम मुख कुआं बना ले रसना पाट चढ़ाई। हाथ मूसली पैर गुदड़ी सुरता चाक चलाई।। संस्कार चरस गेम कुए में मन की मंडल लाई। दया धर्म दो जोड़ नारिए, तन की हलस चलाई।। आशा तृष्णा 2 खाल बहत हैं, आपे क्यारी लाई। तेरी क्यारी मैं क्या-क्या उपजे खबर लगा मेरे भाई।। जब तेरी खेती पकने लगी सूरत रुखाला आई। ज्ञान गोलियां लिया हाथ में निर्गुण टाट बचाई।। कूट-कूट गेरी कालर में, पांच बुल्धा तैं गाही। ओहन सोहन पवन चला दी कनक कनक बरसाई।। नाथ इलाही हेला देंगे सुन पटवारी भाई। शरण मछंदर गोरख बोले भर भर धड़ी बगाई।।

*384 तूं तो गफलत में सो गया रखवाला।। 161

तू तो गफलत में सो गया रखवाला                             बाड़ी की क्यों ना बाड़ करी।।बड़ी मुश्किल से बाड़ी बोई, भरना पड़सी हाला। मान बड़ाई क्या की भरसा, पड़ा बीज में घाला।। पांच मृगडी हिली बाड़ी में, पांच हिल गया काला। पान फूल सारा खाग्या, काढ्या तै पेड़ निराला।। एक लोमड़ी हिल्गी बाड़ी में, खागड़ तीन खुला रहा। भीड़ पड़ी में जाग्याकोन्या, सो गया हो मतवाला।। सेती धनिया खेती हर कोई, नाटे कोई संत निराला। कहत कबीर सुनो भाई साधो खुल गया भ्रम का ताला।।  

*383 अब मैं क्या करूं गुरु साईं।। 161

                         161 अब मैं क्या करूं गुरु साईं, मृगा चरे खेत की मांही हितचित करके खेती बोई, बोई डहर के माही। चाहत मृगा चर चर जावे ताहूं तो माने नाही।। सूखी खेती हुई हरियाली, मृगा छोड़े नाही। बालकपन का हिला मृगला, बिल्कुल माने नहीं, सुखमण धोरे डांचो मांडो, गुरु गम टाट बिछाई। कुब्द्ध मृग्ला मार गिराया, तब खेती गरनाईं।। आप पर ही मैं आपा दरशा सतगुरु सैन लखाई। कहत कबीर सुनो भाई साधो ऐसी करो कमाई।।

*381 खेती भली कमाई साधु, अलख नाम लो लाई ।।160

जिसने अलख नाम लो लाई साधो, खेती भली कमाई।। मनसा खाल लगा म्हारे सतगुरु सुरती की लहर चलाई। गगन मंडल से अमी रस बरसे काया ने सींचो भाई।। नेम धर्म के बैल बनाए तन की ह लस चढ़ाई। सूरत निरत की फ़ाली लाके, धीरज धरती बाही।। राम नाम का बीज जो बोया, गुरुमुख डोली लगाई। इस खेती में नफा बहुत है, निष्फल कभी ना जाई।। काम क्रोध की पड़ी झावली, करडी बांध चलाई। आशा तृष्णा घास जली है, सुरती ने बैठ नहलाई।। कच्चा खेत खेत कर राख्या, ज्ञान  गोफिया भाई। जा चिड़िया जब लगी खेत में, शील में मार उड़ाई।। पक्का खेत प्रेम कर कांटा, क्षमा की रास लगाई। काम क्रोध जो तूड़ा निकला, पशुओं ने छिक़ छिक्  खाई।। घीसा संत शरण सतगुरु की या खेती मन भाई। सहजो मेहर हुई सतगुरु की आवागमन मिटाई।।

*380 तेरा चिड़ियां ने खा लिया।।2।। 159

                         160 तेरा चिड़ियां ने खालिया खेत, रखवाला पड़के सो गया।     चिड़ियां खा गई खेत ने रे, तूँ मूर्ख रहा सोय।    आंख खुली जब रोवन लाग्या, फेर चेत गया होय।                             बिन सत्संग बाजी खो गया।।    चिड़िया खा गई खेत ने रे, तूँ रह गया कंगाल।    पूंजी लाया सत्त पुरूष की रे, मूल गंवा दिया माल।                         बिन सुमरण टोटा हो गया।। मोह लोभ दो चिड़ी गोलिया, चुन चुन खाई ज्वार। किस गफलत में सोग्या रे भोंदू, उठ के ने गोला मार।।   जब तेरा खेत उजड़जा रे भोंदू, हो जागा कंगाल।    घीसासन्तशरणसद्गुरुकी, फेरकुणसीअड़ावेगा ढाल।।

*378 तेरा चिड़िया चुग गई खेत मुसाफिर।। 159

                               159 तेरा चिड़िया चुग गई खेत मुसाफिर चिड़िया चुग गई खेत।। बालापन हंस खेल गंवाया, सो गया नींद अचेत। आई जवानी लगा दिया तूने त्रिया के संग हेत।। गई जवानी आया बुढ़ापा हो गया बाल सफेद। पड़ा पोल में ताक  रहा है अब कोई ना रखें हेत।। जब चस्का खेती का लाग्या मोती बोया अनेक। मोती मोती हंसा चुग गया रह गया बालू रेत।। कह कबीर सुनो भाई साधो अब भी मुसाफिर चेत। सत्यनाम में ध्यान लगा ले कर ले अपना हेतु।।

*351. रे दिवाने बंदे कौन है तेरा साथी।। 146

रे दीवान ए बंदे कौन है तेरा साथी।। जैसे बूंद उसका मोती ऐसे काया जाती। कल से मनवा न्यारा हो जा पड़ी रहेगी माटी।।

*345हमारा कोई मीत ना बैरी।। 144

हमारा कोई मीत ना बैरी।। बना एक नूर का कुंजा बाहर क्यों जाए के ढूंढा।                                 सबन के बीच है लहरी।। राह एक सहज का चलना कदम दो संभल के धरना।                                  वह बनेगा भरथरी शहरी।। गलत शब्द वही जो जाती मरहम की राह ना पाती।                               यह दुनिया भरम की घेरी।। घीसा संत ही गावे शब्द कोई संत जन आवे।।                                     तुम्हारा मान है वेरी।।

*343 तेरी गुदड़ी में हीरा जड़ा।। 141

तेरी गुदड़ में हीरा जड़ा भाई साधो हो रावलिया मेरे बीर।। कै गज की बाबा की गुदड़ी भाई साधु।                   कै गज का विस्तार नो गज की बाबा की गुदड़ी भाई साधु ।                 दस गज का विस्तार।। पटपट अंबर बाबा की गोदड़ी भाई साधु।                      झिलमिल झिलमिल होए। जल गई बाबा की गुर्जरी भाई साधु।                      वह रोया दास कबीर।।

*281. सत्संग गंगा की धार में।। 117

सत्संग गंगा की धार में कोई नहावेगा न्हावनिया।। गंगमें नहागै वाल्मीकि जी, जिसने ऋषियों की ली सीख जी।                  थोड़ा कुटुंब परिवार मोह ममता के ढावनिया।। गंग में नहा गए हरिश्चंद्र दानी खांसी में बिक गए तीनों प्राणी।         जिने अपना धर्म नहीं हारा वे अमरलोक जावनिया।। गंगा में नहागे मोरध्वज राजा, शेर हिट दिया पुत्र का खाजा।       लड़के से खींच दिया आरा, हरि आप बने अजमावनिया। गंगा में न्हागे सदानाथ जी, जिसके घर नहीं जात पात जी।      कबीर घर रचा भंडारा, भीलनी के बेर खावनिया।।

*245. राम कहो आराम मिलेगा।। 94

राम कहो आराम मिलेगा सही रटन की जो हो चास।        सुबह नहीं तो शाम मिलेगा रख मन में पक्का विश्वास।। भरे रिता दे रिते भर दे जिस पर नजर मेहर की कर दे। भीड़ पड़ी आ काढ कसर दे हरि भगत के हों सै दास।। हरि भजन जो निशदिन गावे, पाप सभी मन के धो जावें पांच चोर ना धोरे आवें तीन का हो जा तोड़  खुलास।। तू ही तू ही कर शाम सवेरे वो जा शुद्ध आत्मा तेरी। जन्म मरण की छुट के फेरी मुक्ति पद की हो जा आश।। चंद्रभान संत बतलाते मुक्ति का मार्ग दिखलाते। भगवान से हैं गुरु मिलाते कर सेवा खा मेवा खास।।

*288. भाग्यवान घर होवे साधो का सत्संग।। 120

भाग्यवान घर होवे, साधुओं के सत्संग।। ब्रह्म मुहूर्त में उठ जागे, कर स्नान भजन में लागे।                                         नुगरा पड़ कर सो वे।। संत भगत का हो गया आना, प्रेम प्रीत से करते हैं गाना।                                वह दुतिया दुरमति धोवे।।  शब्द कीर्तन हॉट आनंदा, चोरासी का कट जाए फंदा।                                 वह अंतःकरण मल धोवे।। चीचड़ लिपटा थन के आन जी, दूधछोड़ लगाखून खान जी।                             न्यू नुगरा अवगुण टोहवे।। किशन देव सतगुरु समझावे, जो प्राणी सत्संग में आवे।                            वह फेर जन्म नहीं होवे।।                               

*287. भाई सत्संग हो रहा सच्चे गुरु के दरबार।। 119

भाई सत्संग हो रहा सच्चे गुरु के दरबार।। संतो की महिमा न्यारी है कोई समझे समझन हार। प्रेम भरी वाणी सुन सुन के मेरे होती खुशी अपार।। साफ आत्मा वह सत्संग से सारे मिटें विकार। जिनको सत्संग से प्रेम नहीं, वे भूमि पर भार।। तीन लोक की हद से ज्यादा करते हैं प्रचार। नागदा नगदी सौदा कर ले ना ले ना पड़े उधार।। सत्संग जैसी बात नहीं तुम देखो सोच विचार। सभी संत महात्मा ने भई, करा सत्संग से प्यार।। सच्चे सतगुरु राम सिंह है अब अगम पुरुष की धार। ताराचंद ले संतों का सरना, हो इब के बेड़ा पार।

*286. सत्संग साथ तीरथ कोई नहीं।। 119

सत्संग साथ तीरथ कोई नहीं, चेतो रे भाई। सत्संग तो धोबी का घाट है जो मन का मैल धुलाई।। अमृत वचन वर्षा हो रही पी पी के तृप्ति आई। जुगन जुगन की मेली सुरतिया सत्संग से उज्जवल हो जाई।। बाल्मिक भी उभरे सत्संग से गणिका सदन कसाई। कर्मा कुबरी वैश्या भांडली और तर गई मीराबाई।। तीरथ नहाए एक फल है यहां सत्य का फल पाई। सतगुरु ताराचंद समझावे कंवर ने सत्संग करो रे भाई।।

*284 सत्संग में आ के पापी पार हो जाते।। 118

सत्संग में आकर पापी पार हो जाते।। बाल्मिक बुरे काम करें थे लूट लूट धन खाते। सप्त ऋषि वन खंड में मिल गए, सत मार्ग दिखलाते।। कुब्जा कुंजी सदना मंडली धन्ना भगत कहाते। संतों की शरणागति होकर भीष्म भी सुख पाते।। जैसे नेजू घिसे पत्थर पर न्यू ही पाप कट जाते। काट के संग में लोहा ला के जल के बीच तराते।। नामदेव छिपी लखमा माली कालू कहार कहाते। अजामिल सूट हेतू पुकारे, वो बैकुंठ को जाते।। लोहे से कंचन बन जाता पारस संग मिलाते। कह रविदास सुनो भाई साधु सत्संग सरने जो आते।।

*283. सत्संग नाम की गंगा है।। 118

सत्संग नाम की गंगा है कोई नहावे चतुर सुजान।। बिन सत्संग तेरा भरम ना टूटे कर्मकांड का ना भांडा फूटे। कॉल बली तने चौड़े लूटे, क्यों करता अभिमान।। साधु संगत की सेवा करले सत गुरु चरणों में चित धर ले। उस साहिब का नाम सुमर ले पावेगा निज धाम।। पांचपच्चीस कोसमझ पकड़ले, दसों इंद्रियोंको वशमें कर ले। गुरु वचन का पालन करले, धर के आत्मज्ञान।। गुरु दास आनंद आनंद प्रकाशा, प्रेमचंद गुरु चरण प्यासा। सतगुरु दरस दे अभिलाषा थारे  तूर्यापद का ज्ञान।।

*280. राधास्वामी नाम सुमर मन मेरा।। 114

राधास्वामी नाम सुमर मन मेरा जन्म सफल हो जाए तेरा।। यही नाम ऊंचा से ऊंचा बिन इसके कोई नहीं पहुंचा।                                     मिट जा जन्म मरण फेरा।। म्यूजिक घर में तुझको पहुंचा वे चिंता विपदा सभी नसावे।                                कॉल नहीं आवे नेरा।। प्रीत करो सतगुरु से प्यारा ऊर्ध घाट से होकर न्यारा।                                 गगन मंडल में कर ले डेरा।।                              सभी ने जिसको है टेरा।। सतगुरु ताराचंद जी रहे समझाएं, 

*277. मैं तो इस विधि सुमिरन की ना।। 113

मैं तो इस विधि सुमिरन कीन्हा रे साधु।। होठ नहीं ले कंठ नहीं खाते सो युक्ति कर लिंहा  सासा नाही जरा दुख पावे बिन मुख अमृत पिंहा।। माला ना फेरी घिसा ना मनिया, कष्ट हाथ नहीं दिन्हा। पकड़ सूरत निजी माही रोको तभी भय मत हिना।। मौन ना लिया गुफा ना बैठे ना उपवास यो किन्हा। मूल कमल से दसवें तक योर बाजी है बेहद वीणा।। भगवा पेश किया नहीं तन पर सॉन्ग सजाई ना किन्हा। नार ना तजी भजा ना वन में, घर में ही घर किन्हा।। परा पश्यन्ती मध्य बैखरी यह चारों एक सी किन्हा। इन चारों का दृष्टा हूं मैं विधि एक रही ना।। देवनाथ गुरु निर्भरम निष्ठा देव स्वरूप कर दीन्हा। मानसिंह यह जय समाधि इन्हीं सो आत्म चिन्हा।।

*278 वह सुमिरन एक न्यारा।।113।।

                            113 वो सुमरिन एक न्यारा रे साधु भाई। जिस सुमिरन से पाप कटत हैं होवे भाव जल पारा।। माला ना फिरे जिभ्या नहीं हिले, आप ही होत उचारा।  सभी के घट रचना लागी, क्यों नहीं समझे गवारा।। पाखंड तार टूटे नहीं कब हूं, सोहन शब्द उचारा।  ज्ञान आंख मेरी सतगुरु खोली, जाने जानन हारा।। पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चारों दिशा पच हारा।  कहे कबीर सुनो भाई साधो ऐसा शब्द टकसारा।।

*276. करले सुमिरन घड़ियां चार।। 112

करले सुमिरन घड़ियां चार, संग तेरे कुछ ना जाएगा।         चाहे करले जतन हजार संग तेरे।। मानव चोला जो पाया है इस पर इतना इतराया है।        जीवन चार दिनों की बहार संग तेरे।। यह महल चौबारे बंगले तेरे यही धरे रह जाएंगे।         बिन भक्ति सब बेकार संग तेरे कुछ।। मोह माया ने तुझे गहरा है पर यहां नहीं कोई तेरा है।          सब मतलब का संसार।। गुरु चरणों में ध्यान लगाएगा बस यही तेरे संग जाएगा।                 कर ले थोड़ा सोच विचार।।

*275. सत्य नाम का सुमिरन करले।। 112

सत्य नाम का तूं सुमिरन करले। रोज थोड़ा थोड़ा साहेब का भजन करले।। जाग रे मुसाफिर जग दो दिन का मेला है। रात भर का डेरा है सवेरे चले जाना है।                              छोड़ मायाजाल सत्संग कर ले।। मात-पिता भाई बंधु काम ना आएंगे। महल खजाने तेरे यही रह जाएंगे।                             सच्चे पथ पर तू गमन कर ले,

*274. तेरा दाव लगा है खूब।। 112

तेरा दाव लगा है खूब सुमिरन करले रे भाई। हरि की भक्ति साध की संगत नर देही पाई।  इब भजन का दांव बना है तज दे मान बड़ाई। मेर तेर और कुटुंब ईर्ष्या, यह दुश्मन घर माही। इनसे तो गुरु बचावे जो कोई देत दुहाई।। गुरु का शब्द जितने मन में सब दुविधा मिट जाई  बिना सतगुरु रास्ता नहीं पावे न्यू ए धक्के खाई।। भ्रम जाल में भूल रहा है धर्मगुरु की राही। एक दिन तुमको चलना होगा यम पकड़ेंगे बांही।। गीता दास अधीन तुम्हारे चरण कमल चित् लाइ। घीसाराम साहेब तेरे ऊपर जिसने यो फंद छुड़ाई।।

*273. मत अवसर खोवे हे।। 110

मत अवसर खोवे हे, ना जागी बाजी हारी।। बड़ी मुश्किल से नर देही पाई इस में अमृत झारी। अमृत पीओ जुग जुग जियो या आई पीवन की बारी।। अमृत छोड़ जहर मत पियो कहते संत पुकारी। श्राद्ध की संगत गुरु की सेवा करके छोड़ होशियारी।। प्यावन वाला अंदर बैठा पियो नर और नारी। छिन छिन पल-पल समय जात है काहे देर लगा रही।। सतगुरु वेद प्रकाश कहते हैं पियो कटे बीमारी। जन्म मरण का संशय मिट जा,  मानो बात हमारी।।

*272. ऐसा अवसर बार-बार नहीं आवे।। 110

ऐसा अवसर बार-बार नहीं आवे। अब तो सोच समझ नर मूर्ख, व्यर्था काहे गवावे।। नर देही देवों को दुर्लभ बड़े भाग्य से पावे। ऐसा रतन अमोलक हीरा काहे धूल मिलावे।। सांस खजाना भक्ति भजन बिन दिन दिन बीता जावे। गई सांस फिर कभी ना लौटे चाहे लाख करोड़ गवावे।। या नर तन की यही बढ़ाई या मैं गुरु का दर्शन पावे। गुरु की भक्ति संत की सेवा नर तन से बन पावे।। अवसर पा वृथा मत खोवे, साहेब कबीर समझावे। धर्मी दास सतनाम सुमर ले अजर अमर घर पावे।।

*271. अवसर बहुत भला रे भाई।। 110

अवसर बहुत भलो रे भाई।। मानस तन देवन को दुर्लभ है सोई देह तुम पाई।। तज अभिमान सरपंच झूठ को छोड़ गुमान बढ़ाई। मात-पिता स्वार्थ के संगी, मायाजाल फैलाई।। जब लग जरा रोग नहीं व्यापे, ले गुरु ज्ञान भलाई। साधु संगत मिली सतगुरु को सोई सकल सुखदाई।। कहे पुकार चेत नर अंधा यह तम आन गवाई। कहे कबीर यह देह कांच की बिनसत वार ना लाई।।

* 269. भाई साधन करले पड़े भजन में सीर।। 108

भाई साधन कर ले पड़े भजन में सीर।। सूरत शब्द को ऐसे पकड़ो जैसे मछली नीर। हंसा बन के सार छांट ले मिले समुद्र सीर सतगुरु जी के शरण में होले टूटे भरम जंजीर। देख पुतली उलट गगन को, हो आनंद बहिर।। सब संतो का एक निशाना जाने कोई रणधीर। काट छांट का त्यागन कर दे हो जा असल फकीर।। सतगुरु हो के सत्संग में जाकर, खाई शब्द की खीर। कह ताराचंद तुम दाग ये धोले, मिल गया मनुष्य शरीर।।

*270 बुडली सुमिरन करले भक्ति में सीर।। 108

बूडली सुमिरन करले हो भक्ति में सीर।। गुरु अपने की बन जा भिखारी, नाम जपो सब कटे बीमारी। बिन अमृत सूखे केसर क्यारी, 

*268. संगत कर ले गुरुदेव की।। 108

संगत कर ले गुरुदेव की पड़े भजन में सीर।। लख चौरासी चक्कर फिर के मिल गया मनुष्य शरीर। एक दिन काल तने फिर मारे, बहे नैन से नीर।। सबको इच्छा राम मिलन की राजा रंक फकीर। दुनिया में आए फिर चले गए बड़े-बड़े रणधीर।। जिस दिन संगत करो संतों की हो जाए अमर शरीर। संतों के सत्संग से तर गए बड़े-बड़े औलिया पीर।। सतगुरु राम सिंह ने सत्संग करके काटी काल जंजीर। ताराचंद कहे सत्संग से मिल गए आप कबीर।।

*264. तेरे द्वार खड़ा भगवान।।103

तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर दे रे झोली।। तेरा होगा बड़ा एहसान के युग युग तेर रहेगी श्यान।। बोल रही है धरती सारी दोनों गगन है सारा। भीख मांगने आया तेरे दर जगत का पालन हारा रे।                मैं आज तेरा मेहमान तू कर ले रे जरा पहचान।। आज लुटा दे सर सब अपना मान ले मेरा कहना। मिट जाए पल भर में तेरा जन्म जन्म का फेरा रे।                तू छोड़ शक्ल अभिमान कर ले रे अपना दान।।

*263. बंदे रट ईश्वर की माला।। 102

बंदे रट ईश्वर की माला, क्यों नर जुलम करे खाली।। मंडे किस गफलत में सोता क्यों नर भार विपत का ढोता। एक दिन उड़ जायेगा तोता पिंजरा पड़ा रहे खाली।। बंदे क्यों अभिमान करें सै, क्यों मालिक से नहीं डरे से। तुम तो यूं ही विपद भरै सै, या दुनिया जाए रही चाली।। कॉल तो ना मौका झुकेगा फिर तू बता कहां रुकेगा। एक दिन दरखत भी टूटेगा, चमन में ना रहे हरियाली।। तेरा स्थूल बना दिन दो का हरि भजन का यह है मौका। 1 दिन लगे पवन का झोंका, टूटेगी फूल से डाली।।

*262. मुझे है काम ईश्वर से।। 102

मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठे तो रूठन दे।। कुटुंब परिवार सूत दारा, माल धन लाज लोकन की। हरि का भजन करने से अगर छूटे तो छूटन दे।। बैठ संगत में संतों की करो कल्याण में अपना। लोग दुनिया के भोगों में मजे लूटे तो लूटन दे।। प्रभु का ध्यान करने की लगी दिल में लगन मेरे। पुनीत संसार विषयों से अगर टूटे तो टूटन दे।। धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरुदेव ने झटकी। वह ब्रह्मानंद ने पटकी अगर फूटे तो फूटन दे।।

*260. नजर भर देख ले मुझको, शरण में आ पड़ा तेरी।।101।।

नजर भर देख ले मुझको शरण में आ पड़ा तेरी।। तेरा दरबार है ऊंचे, कठिन जाना है मंजिल का। हजारों दूत मार्ग में, खड़े हैं पंथ को घेरी।। नहीं है जोर पैरों में दूसरा संग नहीं साथी। सहारा दे मुझे अपना, करो नहीं नाथ अब देरी।। नहीं है भोग की इच्छा, न दिल में मोक्ष पाने की। प्यास दर्शन की है मन में, सफल कर आपको मेरी।। क्षमा कर दोष को मेरे, वृद्धि को देखकर अपने। ब्रह्मानंद कर करूना, मिटा दे जन्म की फेरी।।

*259 नजर भर देख ले मुझको शरण में तेरी आया हूं।।101

नजर भर देख ले मुझको, शरण में तेरी आया हूं।। कोई मात पिता बंधु, सहायक है नहीं मेरा। काम और क्रोध दुश्मन ने बहुत दिन से सताया हूं।। भुला कर याद को तेरी, पड़ा दुनिया के लालच में। मायाजाल में चारों तरफ से मैं फंसाया हूं।। कर्म सब नीचे है मेरे तेरा नाम है पावन। तार संसार सागर से, मैं भंव जल में डूबाया हूं।। छुड़ा के जन्म बंधन से शरण में राख ले अपनी। ब्रह्मानंद ले मन में, यही बसआश आया हूं।।

*257 मेरा रह गया राम मिटा झगड़ा।। 100

        मेरा रह गया राम मीटा झगड़ा।। दुविधा दुरमति दिल से त्यागी।            पकड़ पछाड़ा मन तगड़ा।। नाशवान की आशा त्यागी।            अविनाशी का मिला दगड़ा।। सुख सागर का रास्ता पाया।           टोपी ओढ़ो भव पकड़ा। घीसा संत शरण सतगुरु की।            जीता के मनवा पकड़ रगड़ा।।            

*256 नाम हरि का जप ले बंदे फिर पीछे पछतायेगा।।99।।

नाम हरि का जप ले बंदे फिर पीछे पछतायेगा।। तू कहता है मेरी काया काया का गुमान क्या। चांद सा सुंदर यह तन तेरा मिट्टी में मिल जाएगा।। बालापन में खेला खाया आई जवानी मस्त रहा। बुड्ढा पन में रोग सताए खाट पड़ा पछताएगा।। वहां से क्या तू लाया बंदे यहां से क्या ले जाएगा। मुट्ठी बांध के आया बंदे हाथ पसारे जायेगा।। जपना है सो जप ले बंदे आखिर तो मिट जाएगा। कहत कबीर सुनो भाई साधो करनी का फल पाएगा।।

*255 किस विद हरि गुण गाऊं।। 99

किस विध हरि गुण गाऊं अब मैं।। जहां देखूं वहां तुझको देखूं किसको गीत सुनाऊं।। जल मैं मैं हूं थल में मैं हूं सब में मैं ही पाऊं। मेरे अंश बिना नहीं कोई किसकी धूम मचाऊं।। मेरी माया शक्ति से में सारी सृष्टि रचाऊं। मैं उसका पालन करके मेरे में ही मिलाऊं।। पहले था अब हूं और होऊं, पक्का पीर कहाऊं। इन बातों को जग क्या जाने जग को धूल फंकाऊं।। धरती तो रोती छोड़ो जब यह गाना गाऊं। शंकर मस्त शिखर चंद खेलें, खेलत गुम हो जाऊं।।

*254. रट ले हरि का नाम रे बेरी।। 98

रट ले हरि का नाम रे, बैरी छोड़ दें उल्टे काम रे।। जिस दौलत पर तुझे है भरोसा जाने कब दे जाए धोखा।                                ये लुट जाए सरे आम रे।। देख जो हंसता सुंदर काया चिता बीच जब जाएगा जलाया                                 तेरा मास रहे ना चाम रे।। पाप करें और गंगा नहाए इससे तूं अपने पाप छुड़ाएं।                               तेरा होगा बुरा अंजाम रे।। मथुरा और काशी जाने से भजन कीर्तन करवाने से।                                  तुझे नहीं मिले आराम।। रामनाम से तूनिकला बचकर मोह मायाके जाल में फस कर।                                   हो गया आज गुलाम रे।। पता लगा ले ब्रह्म ज्ञान का ब्रह्मानंद तू इसी रे नाम का।                                   ढूंढ ले ठीक मुकाम रे।।

*253. हरि नाम सुमर मन मेरा तेरा जन्म सुधर जाएगा।। 97

हरि नाम सुमर मन मेरा तेरा जन्म सुधर जाएगा।। तू समझे तो तूने समझाऊं ना समझे तो बांध बैठाऊं। शब्द जहाज में तूने चढ़ाऊं, जो सुन्न शिखर जागा।। यह संसार बाबू की डोली तूने खामखां भरली झोली। मैंने दिखे तेरी पापी झोली, भर भर खाली कर जागा।। सतगुरु राम सिंह जी पूरे पाए, धाम अनामी से चलकर आए। ताराचंद जो जीव चिताय, वह जीव अमरपुर जागा।।

*251. हरि तेरो अजब निरालो काम।। 97

हरि तेरो अजब निरालो काम।। सुख में सुमिरन कोई ना करता दुख में रटे तमाम।। माया की धन बांध पोटली करता गर्व गुमान। अंत समय में काम ना आवे नहीं समझे अज्ञान।। मालिक मेरा सब कुछ तेरा क्यों भूला इंसान। तेरा तुझसे पाकर के नर बन बैठा भगवान।। नर तन चोला पाकर भोला रटा नहीं भगवान। क्या करता क्या कर दे मालिक तू ना समझे अज्ञान।। एक दिन माटी में मिल जावे हार्ड मांस और शाम। झूठी काया झूठी माया सांचों है तेरो नाम।। तू ही वाहे गुरु तू ही अल्लाह तू ही शिव और राम। कह कबीर बुला ले मैं तेरे चरणों में लूं विश्राम।।

*248. भाई तू राम नाम चित् धरता।। 95

भाई तु राम नाम चित्त धरता। तेरा अगला जन्म सुधरता।। यम की त्रास सभी मिट जाती भक्त नाम तेरा पड़ता।। तेंदुल घृत समर्पित गुरु को, संता परोसा करता।। होता नफा साधु की संगत, मूल गांठ नहीं टरता। सूरदास बैकुंठ पेंठ में, कोई ना फैट पकड़ता।।

*247. भजन के बिना रे बंदे तेरे बेल हैं लदनिया।। 95

भजन के बिना रे बंदे, तेरे बैल है लदनिया।। सौदा करे तो यहां ही कर ले, आगे तो हाट ना बनिया।। कहो तेरी बालद कहां पर डटेगी, आगे घास ना पनिया।। संतो ने भर लिया नाम धनी का, दुनिया ने थोथा धनिया।। कह कबीर सुनो भाई साधो, ये अवसर फिर ना मिलिया।।

*246 कभी किया ना भजनवा।।95

कभी किया ना भजनवा कैसे बीतेगी।।          जाएगा यम के जब भबनवा,कैसे बीतेगी।।  गृभवास में सुमिरन किया, किया था कोल करार। प्रभु आपका भजन करूंगा, करो नर्क से पार।                   बड़ा फूला रे दिवनवा ।। बालक पन हंस खेल गंवाया, आई मस्त जवानी। मातपिता ने करी सगाई, दूल्हे बने गुमानी।                   बंध गए हाथों में कंगनवा।। धूमधाम से ब्याह रचाया, पहन केशरी जामा। दुल्हन लेके घर को आया, खत्म हुआ तेरा ड्रामा।                  बन गए सजनी के सजनवा।। कमर कमान दांत सब टूटे, नजर गई नजराने। खाट बिछाए द्वार पे पड़ गए, बहुएं मारें ताने।                    कब यो मरेगा बुढलवा।। अब भी सोच समझ ले मूर्ख, करता मेरा मेरा। राम भजे बिन ना होगा, नर तेरा निर्वेरा।           आजा सदगुरु की शरणवा, चौरासी टूटेगी।।

*244. राम गुण गाए हो नहीं आए करके।। 93

राम गुण गायो नहीं आए करके।                   यम से कहोगे क्या जाए करके।। गर्भ में देखी नर्क निशानी तूने कॉल किया था प्राणी।                           वजन करूंगा चित् लाए करके।। बचपन बीता गई जवानी आया बुढ़ापा खत्म कहानी।                            अब रोओगे पछताए करके।। लाख चौरासी में भरमायो भजन करन को नर्तन पायो।                          भूल गया तु इसे पाए करके।। चार दिनों की चांदनी तेरी फिर आएगी रात अंधेरी।                          सुख में आह क्यों भर माय करके।।

*242 राम सुमर ले सुकृत करले आगे आदोआवेगो।93।।

राम सुमर ले सुकृत करले आगे आडो आवेलो। चेत सके तो चेत मानवी रीतो ही रह जावेगो। मात-पिता के पांया पूजो जिसने तुम को जन्म दिया। सरवन जैसा लाल बनो भाई जिसका अमर नाम हुआ।      करले सेवा पावे मेवा जन्म सफल हो जावेगो।। बालापन हंस खेल गंवा जोबन ऐश आराम करें। बुढ़ापे में हुआ रोगी, खींच खींच के पांव धरे।     घर की नारी बोलने खारी कब बूढलो मर जावेगो।। स्वार्थ की दुनियादारी स्वार्थ का सब नाता है। अंत समय में जाए अकेला हंस अकेला जाता है।       धन और माया धरी रहेगी आखिर में पछतावेगो। संत समागम कर ले प्यारे सत्संग का फल मीठा जी। जिसने खाया अमर हो गया पापी रह गया रीता जी।      दास महंत कहे मनुष्य जन्म तेरा बार-बार नहीं आवेगो।।

*239. भजन करो भाई रे एसो तन पाए के।। 92

भजन करो भाई रे ऐसो तन पाए के। नहीं रहे लंकापति रावण दुर्योधन राय रे।। मात-पिता सुत बंधु भाई, आ यमराज पकड़ ले जाए रे।। लाल खम्भ पर देत ताड़ना, बिन सतगुरु कौन सहाय रे।। धरमदास की अरज गोसाई नाम कबीर कहो गुरु आए रे।।

*241 तू कर भजन भगवान का इंसान बावले।।92।।

तू कर भजन भगवान का इंसान बावले। तनै क्यों डीगाया लोभी अपना ध्यान बावले।। जिसने तुझे बनाया तूने उसका खून ही खाया। बस जोड धरी धन माया, आखिर तो जाना होगा शमशान।। कट जाएगी बीमारी, रख लव पे नाम जारी। कुछ भी कहे दुनिया दारी, तू खोल के सुन ले अपने कान।। सब भली बुरी वह जाने तू क्या करता है दीवाने। ना चलने कोई बहाने, अब भी समय है कर ले तू गुणगान।। गुरु काहे करे गुमाना तू दो दिन का मेहमाना। एक दिन पड़े तुझे जाना, इस तन से निकलेगी तेरी जान।।

*240 भज ले राधा स्वामी नाम तेरे काम आएगा।। 92

भज ले राधास्वामी नाम तेरे काम आवेगा। यमदूतों की मार से तने गुरु बचावेगा।।  भाई बंद और कुटुंब कबीला यह महल अटरिया। यह तो यहीं पर रह जाएंगे तू तो अकेला जावेगा।। काया तेरी ऐसी बनी रे मोती ओस का। लग जावेगी पवन तेरे, तो पता ना पावेगा।। दुनिया के कार व्यवहार देख क्यों फुला रे घना। चिड़िया ने उठावें बाज, यूं तने काल उठावेगा।। कितने ही यतन बना ले, हरि नाम के बिना। सतगुरु ताराचंद गुरु बिना मुक्ति ना पावेगा।।

*235. भजन कर राम दुहाई रे।। 91

भजन कर राम दुहाई रे।। जन्म अमोलक तुझे दिया नर देही पाई रे। देहि को देवा लोचही, सुर नर मुनि राई रे।। सनकादिक नारद रेट सब वेदा गायी रे। भक्ति करें भव जल तरे सतगुरु शरणाई रे।। मृगा कठिन कठोर है, काढ़े काई रे। कस्तूरी है नाभि मे, ये बाहर भरमाई रे।। राजा डूबे मान में पंडित चतुराई रे। ज्ञान गली में बंक है, तने धुर मिलाई रे।। उस साहिब को याद कर जिसने सब सोंध बनाई रे। देखत ही हो जाएगा पर्वत से राई रे।। कंचन काया नाश हो तन ठोक जलाई रे।  मूरख बंदे बावले क्या मुक्ति कराई रे।। अजामिल घणी कातर गए और सदन कसाई रे। नीच तरे तो से कहूं, नर मूड अन्यायि रे।। शब्द हमारा सच है और ऊंट की बाई रे। धुएं के सा धोल है तीनो लोक चलाइ रे।। कलमिस कोष्मल सभी कटे हो तन कंचन काई रे। गरीबदास निज नाम की नित प्रुभी नहाई रे।

*233. तूं राम सुमर ले मंजिल दूर पड़ी।। 91

तुम राम सुमर ले मंजिल दूर पड़ी।। सांस तेरा यह वृथा जावे मानुष जन्म फिर नहीं आवे। आंख खोल जरा किधर लखावे सिर पर मौत खड़ी।। भाई बंधु कुटुंब कबीला, यम ले जा जब हो जा ढीला। नारी तो तेरी छैल छबीला, रोवेगी खड़ी खड़ी।। इंद्रिय वेग बहु बलवानी वेद पढ़े पंडित मुनि ज्ञानी। हार गए ब्रह्मचारी स्वामी, डूब गए पापी घड़ी घड़ी।। चक्षु रूप अनोखा चाहवें नाक कहें हम इत्र लगावे। कान कहे मैंने गंधर्व गावें, पांचों की बंधी लड़ी।। रसना रस हत्या करवावे काम जो वेश्या संग लिपटावे। हीरानंद कहे गुरु बचावे, भूलूं ना एक घड़ी।।

*234 राम सुमर राम तेरे काम आएगा।। 91

राम सुमर राम तेरे काम आएगा।। भाई बंधु राज पाट महल मालिया,               अंत कल में ना कोई काम आएगा।। दुनिया के कारोबार में भूलता फिरे तू।               चिड़िया के जैसे बाज तुझे काल खाएगा।। मनुष्य का शरीर बड़े भाग से मिला।              बीत गया काल को फिर क्या बनाएगा।। करले जतन हजार नाम के बिना।           कहता है ब्रह्मानंद नहीं मोक्ष पाएगा।।

*232. राम नाम पूंजी पल्ले बांधो रे मना।। 90

राम नाम पूंजी पल्ले बांधो रे मना। ध्रुव ने बांधी प्रह्लाद ने बंधी बंधी जाट धना। मीरा ने तो ऐसी बांधी बांध्यो रे कान्हा। पीपा और रैदास बांधी शबरी और सदना। दास तो कबीरा बांधी, ताना रे तना।। जन्म का भिखारी रे सुदामा ब्रह्मणा। मुट्ठी चावल चाख के धन दिया रे घना।। अजामिल से पापी तारे पतीत घना। श्याम सूर शरण आए बक्सों मेरे गुनाह 

*231. करो हरी का भजन या मंजिल पार हो जाएगी।। 90

करो हरी का भजन या मंजिल पार हो जागी।       आगे बरतन खातिर पूंजी त्यार हो जागी।। इस दुनिया में आकर बंदे कर लीजिए दो काम। देने को टुकड़ा भला लेने को हरी नाम। राम नाम की भूल से बस दुख हैं आठो याम। उठत बैठत चलते-फिरते कभी न भूलो राम।          गफलत में काया तेरी बेकार हो जागी।। चाहिए था कुछ ब्याज कमाना आन गंवाया मूल। जो जागा साहूकार पर तो पल्ले पड़ेगी धूल। सहम विषयों में पागल हो के खोया जन्म फिजूल। खाली हाथ जा यहां से चलकर जा आई बाई भूल।।         गूंगी होके जीभ तेरी लाचार हो जागी।। आशा तृष्णा ममता जज 2 दिन का मेहमान। नकली खेल मदारी का कदे कहावे हैवान। मनसा वाचा कर्मणा से ला हरी वचनों में ध्यान।। थोड़ी सी हिम्मत में खुश हो फिर सुने भगवान।         करले हिम्मत मेहनत में सुम्मार हो जागी।। राम नाम के सुमिरन में जो थोड़ा सा रुख हो। विघ्न क्लेश मिटें सारे नहीं तनमन में दुख हो। अंत गता सो मता कहे जो हरि नाम मुख हो। चंद्रभान संत बतलावें, आगे का सुख हो।          हरि नाम की नाव तेरी आधार हो जागी।।

*230. हरि ओम के भजन बिना तूं।। 89

हरिओम के भजन बिना तूं क्योंकर पार उतर जागा।           मूरख बंदे के कहेगा जब परमेश्वर के घर जागा।। मोह माया में फस के बंदे हीरा जन्म फिजूल गया। ब्याज कमाओ आया था, तेराअसली धन मिल धूल गया।       साहूकार की डिग्री आवे, घरां पुलिसिया फिर जागा।। यम के दूत बांधने पेटी तेरे पेट के धोरे के। कुनबा खड़ा दोहाथर्ड मारे, जब निकलेगा गोरे के।       जिस बेटे में मोह कहना था, फोड़ तेरा वह सिर जागा।। गैल मरने की हां भर रह थी वह चूड़ी फोड़ खड़ी हो जा। एक साल तक रोटी काढे करके तोड़ खड़ी हो जा।       एक बहु बोली कील गाड़ दो ना मेरा छोरा डर जागा।। सतगुरु ज्ञान विचार बिना तेरा बनता कोई हिमाती ना। स्वार्थ कारण तेरा मेरी कोई सच्चा साथी ना।       यूं कहेंगे जो मरता कोन्या, तेरा आपे पेटा भर जागा।। कृष्ण लाल राम रट प्यारे वही तेरा हिमाती सै। झूठ बात मेरी एक बता दो जो थारे में पंचायती सै।    फिर गिरावड़ जा दिखें तु ऐसा सूर्य नगर जागा।।

*228. तेरा जीवन है बेकार भजन बिन दुनिया में।। 88

तेरा जीवन है बेकार भजन बिन दुनिया में।। बड़े भाग से नर तन पाया इसमें भी हरि गुण नहीं गाया।।                                                किया ना प्रभु से प्यार।। माया ने तुझको बताया संग चले ना तेरी काया।                                            क्यों बनता होशियार।। धन दौलत और माल खजाने जिनको मूर्ख अपना माने।                                                     जाएगा हाथ पसार।। क्या लेकर तू आया जग में क्या लेकर जाएगा संग में।                                              रे मतिमंद गवार।। जब यमदूत लेने को आवे रो रो कर के तू चिल्लावे।                                            पड़े करारी मार।। श्री सतगुरु की शरण में आओ अपना जीवन सफल बनाओ।                                           तब होवे उद्धार।।

*226. गुरु का शर्ना ले भाई।। 87

गुरु का शरणा ले भाई थारी बिगड़ी बात बन जाए।। एक दिन बिगड़ी पिता पुत्र के नाम लेन दे नाही। खंभ पाङ हरीनाकश्यप मारा भगत को लिया बचाई।। ध्रुपद सुता को गुरु मिले थे सभा बीच  बुलवाई। दुशासन यो चीर उतारे रह गई मान बड़ाई।। राणा जी ने जुलम कमाया, काढ़ी मीराबाई। जहर के प्यार ने भर भर प्याए, वह कभी मरन ना पाई।। नामदेव को गुरु मिले थे मुर्दा गऊ जीवाई। सैन भगत के संशय में थे आप बने हरि नाई।। रविदास को गुरु मिले थे जल पर शीला तराई रामानंद गुरु दे दिया हेला, सतलोक दर्शाई।।

*227 हरि के भजन कर ले रे।। 88

                           88 हरि के भजन कर ले रे, दरसेगा नूर।        दरसेगा नूर दीवाने कोई, मिलेगा जरूर।। करो गुरु से अरज जब पाओगे मर्ज,   जिंदगानी बीती जाए फिर, चैतने की बारि कब जी।    गुरु के शब्द से हो जा, खल का कपूर।। छोड़ो मत साधु संग, बार-बार लागे रंग। भवसागर से हो निर्दंग, कालू से जीतो जंग जी।     मन का गुमान तजदे, काया का गुरुर।। ध्यान पर कमान करो खींचना है सुन्न ताहीं। सुरता निर्ता बुद्धि तीनों रोग रखो एक ताही।         सूली पर चढ़ गया हो जा चकना चूर।। अलख संग कर ले खोजा, लाख पावे रोक रोजा।  मावस पूनम पड़वा दोजा, प्रीतम के संग कर ले मौजा जी,          कहे कबीर मोती बरसे अबीर, हंसा चुगेंगे जरूर।।

*225 हरि का ध्यान धरो भाई थारी बिगड़ी बात बन जाई।। 87

                               87 हरि का ध्यान धरो भाई थारी बिगड़ी बात बन जाई।। रंका तारे बंका तारे तारे सजन कसाई। सुआ पढ़ावत गणिका तारी, तारी मीराबाई।। दुनिया दोलत माल खजाना बढ़िया बैल चुराई। जबर काल का डंका बाजे खोज खबर ना पाई सच की भक्ति कर घट अंदर छोड़ कपट चतुराई।। कहे कबीर सुनो भाई साधो सतगुरु विधि बताई। यह दुनिया दिन चार दहाड़े रहो राम लो लाई।।

*224. एक हरि के नाम बिना प्रलय में।। 87

                              87 एक हरि के नाम बिना परलय में धक्के खा भाई। एक गुरु के विश्वास में ना कहो किसने मुक्ति पाई।। यह संसार सपन का मेला यह मेला भरता यहां ही। एकला आया एकला जागा संग साथी कोई है नाहीं।। धर्मराज के न्याय पड़ेगा लेखा हो राई राई।। जो पूंजी पूरी ना उतरे सजा वार हगा भाई।। पूंजी घटसी तू नर पिटसी मार पड़े बहुता भाई।। तूं दरगाह में ऐसे नाचे जैसे मछली जल माही।। सतगुरु भेद चिता के बोले क्यों मूर्ख समझा नाही। सारी उम्र यूं ही गवा दई सतगुरु ज्ञान बिना भाई।। नाथ गुलाब गुरु मिले पूरे हमने सुन सोधी आई। भानी नाथ शरण सतगुरु की निर्भय जाप जपो भाई।।

*223. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86

भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ दूं नी माया का मोह। चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दोय।। काशी जी से चले ब्राह्मण चार वेद पढ़ आए हो। पढ़ते-पढ़ते ज्ञान हुआ था ज्ञान बताएं भाजे वो।। राम नाम की चौसर मंडी सुरता सार लगा लई लो। घूम के आई जो फेरा पीछे आगे पड़ गई पोह।। उड़ा भंवरा बन खंड को चाला, फूल पर जा लपटा वो। उड़ गई धूल बिखर गए मोती हीरा हाथ से चाला खोए।। धोली घोड़ी जीन बना ली, निकला छैल बाराती वो। चार मुसाफिर आठ दमकती अवसर बीता जा से हो।। सोने से तो चांदी अकड़ी चांदी से अकड़ी कहीं लोए। लोहे की बन जा छोरी कटारी मार शब्द से कर दे दो।। जो इस पद का अर्थ बतावे खास गुरु का चेला हो। शरण मछंदर जत्ती गोरख बोले संतों में रम जाना हो।।

*222. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86

भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ मुनि माया का मोह। चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दो।। दो पुत्री सारद की कहिए, मैं बालक ब्रह्मा का जॉय। चार वेद गीता पढ़ आई लगा शब्द जब भागा वो।। सूरत शब्द का एक घर मेंला, उठ रही झीनी खुशबू। अनुभव शब्द गुरु मुख वाणी लगे बाण घर हो जा वो।। जागत सोवत उठत बैठत बिना भजन प्रतीति ना हो। सार शब्द गुरु मुख वाणी गुरु मुख प्यारा परखे कोय।। कह रविदास अमरपुर डेरा अवगत गुरु ने परखा जो। पांच सुन्न से न्यारा जो खेले सो योगी मस्ताना होय।।

*221. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86

भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ दुनी माया का मोह।। चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दो।। माटी का कलबूत बनाया दस दरवाजे देखें नो। दसवें के घर अनहद बाजे दास दर्श की रचना होय।। इस काया में भंवर रंगीला फूल लहरिया रंगे सब कोय। जल गया मनवा रहीना वासना हिलनिया जड़े डट रहा होय।। सोने से अकड़ी चांदी कहीए चांदी से अकड़ी कहिए लोह। नो एक ही बन जाए श्री कटारी लगे शब्द घर होजा दोय।। कहर कबीर सुना भाई साधो अलख पुरुष में लाले लो। लो लाया तैं पार उतर जा, जिसके सतगुरु पूरे हों।।

*218. तूं भज ले हरि का नाम तेरे काम आएगा।। 85

तू भज ले हरि का नाम तेरे काम आएगा।। दिया लिया तेरे संग चलेगा, ढका धरा रह जाएगा। जो कुछ कर ले नेकी बदी, सो ही आगे पाएगा।। मात-पिता तेरा कुटुंब कबीला सब धोरा धर जाएगा। राम नाम तेरे पास रहेगा यह निर्णय नहीं आएगा।। गुरु की भक्ति साधु की संगत बड़भागी चित्त लाएगा। भूला फिरे भरम में डोले लाख चोरासी जाएगा। जीता दास है सुनो साधु खोजो घाट में पाएगा। दिशा संत साहेब सिर ऊपर, पल में आन छुड़ा।।

*220 जप ले हरि का नाम वक्त गवाई ना।। 85

जप ले हरि का नाम वक्त गवाई ना।  जन्म मिला है हीरा खाक गवाई ना।। यह झूठी जग की माया क्यों इसमें मन भरमाया।। जब जन्म लीया था जग में तू साथ में क्या था लाया।                       जननी कुछ लाई ना।। यह जगत है एक सराय यहां कोई आए कोई जाए। सब छोड़कर एक दिन जाना क्यों व्यर्था वक्त गवाए।                         धोखा खाई ना।। इस जग से नाता तोड़ो, मन गुरु के भजन में जोड़ो। सतगुरु का नाम जपो रे सब झूठ कपट को छोड़ो।                        फिर पछताए ना।। गुरु शरण में आजा भाई ना और सहारा तेरा। सब छोड़कर एक दिन जाना क्यों करता मेरा मेरा।                      तू जन्म गवाई ना।।                    

*219 तेरी बिगड़ी बात बन जाए गुरु का नाम सुमर प्यारे।। 85

                               85 तेरी बिगड़ी बात बन जाए गुरु का नाम सुमर प्यारे।।                                    जीवन के दिन चार।। तेरा जीवन रे पगले अनमोल मोती है। तेरे घट में ईश्वर की परम पुंज जोती है।                परघट ना होती है गुरु बिन जान ले प्यारे।                                            गुरु नाम आधार।। जब तलक नहीं मिलता सच्चे गुरु का नाम। होता नहीं हर गीत हृदय में आतम ज्ञान।              बस मान और अभिमान शीश धर होता जा प्यारे,                                        गल कर मौका हाथ।।  संसार कर्मों की एक कर्मशाला है। प्रारब्ध से होता जीवन निराला है।              जैसा करे कर्म, फल वैसा ही पाएगा,                                       हंस ले चाहे झकमार। गुरु मिले कन्हैयालाल मेहर सतगुरु की पाई है। गुण गावे कर्म नाथ सूरत सतगुरु से लाई है।           ये रीत है सच्ची कर्म कर लाग जा प्यारे।                                    हो जागा भव से पार।।                                 

*217. हर भज हर भज हीरा परख ले।। 84

हर भज हर भज हीरा परख ले समझ पकड़ नर मजबूती। अष्ट कमल में खेलो भाई अबधू, और वार्ता सब झूठी।। पांच चोरटे इस काया में इनकी पकड़ो सिर चोटी। पांचो मार पच्चीसों वश कर, जब जानू तेरी रजपूती।। अमरलोक से सतगुरु आए वहां से लाए निज बूटी।। त्रिवेणी के रंग महल में संतों ने मौज बड़ी लूटी।। रुनझुन रुनझुन बाजे बाजे झिलमिल झिलमिल हो ज्योति। ओंकार के निराकार में, हंसा चुगते निज मोती।। दया धर्म की ढाल बनाले शेल बनाले धीरज की। काम क्रोध को मार भगा दे, जब जानू तेरी रजपूती।। पक्के धड़े का तोल बना ले कम मत राखी एक रत्ती। शरण मछंदर जती गोरख बोले अलख लखें तो खरा जत्ती।।

*216. राम भजन की बरिया।। 84

राम भजन की बरिया तेरी राम भजन की बार। मन में पंछी पुराण परेवा, उड़ चल रे गवार।। ना कर ईर्ष्या ना कर निंदा ना काहू से प्यार। देखत ही चल जाएगा रे जगत स्वपन व्यवहार।। क्या राज करी बादशाही सो चौड़े दीजेगी जार। काहे को तुम खोवो कुब्ध में ऐसा मनुष्य अवतार।। चेत सके तो चेत अब आगे हो घनो अंधियार। कॉल क्रोंत धार सिर ऊपर कबहूं होई दुश्वार।। नो से लाल नजदीक है रे प्रेम की पीर पुकार। नित्यानंद स्वामी गुमानी को भेंट ले ब्रह्म मुरार।।

*215. दिल दे दिया सतगुरु प्यारे नू।। 84

दिल दे दिया सतगुरु प्यारे नू।। सिर लेवे जो प्याला देवें, चलना अमर अखाड़े नू।। शब्द महल मुकाम हमारा यहां आए दिन चारे नू।। घट पट अंदर देख तमाशा कटक पाप दे भारे नू।। दिल दरिया बह सकता बेड़ा मिलो सजना मतवाले नो।। नित्यानंद महबूब गुमानी निरखो नूर नजारे नू।।

*214. दर्शन सदा राम मोहे दीजिए।। 84

दर्शन सदा राम मोहे दीजे।। चरण कमल के शरणों रखो कभी जुदा नहीं कीजे।। कृपासिंधु गोविंद गोसाई भक्ति बिना तन छीजे। अंतर्गत गांव तुम्हारा यही मौज कर दीजे।। नैना मारे गए चकोरा नींद मुख दीजे। पर्दा खोल भान ओए मिलिए जब यह प्राण पतीजे।। चेतन चोला रतन अमोला नरक कुंड में भीजें। नित्यानंद महबूब घुमाने अर्स परस रस पीजे।।

*212. नित्यानंद छिक रहे नूर में।। 83

नित्यानंद छिक रहे नूर में, मिल महबूब गुमानी।। दर्श देख बहुत सुख पाए, चढ़ गए गह गुण गामी।। शीश चढ़ाकर प्याला लिया दिया आप दिल जानी। मतवाले कर लिए महल में अखियां रूप लुभानी।।                                भई दर्श दीवानी। परली पार प्रीतम का डेरा पहुंचे कोई-कोई प्राणी।। भाई सज्जन कोई खुद मस्ती दुनिया दौलत वाणी। नित्यानंद मस्तान रब में कहीं अगम की वाणी।।

*209 क्यों कर मिलो पिया अपने को।। 82

क्यों कर मिलूं पिया अपने को। पिया बिशर मेरी सुध बुध विसरी पिया मडी तन तपने को। भवन ना भावे विरह सता, क्या करिए जग सपने को। दिखे देह नेह नहीं छूटे, ले रही माला जपने को। बन बन ढूंढत फिरू दीवानी ठोर कहीं ना पाई छुपने को। नित्यानंद महबूब गुमानी क्या समझावे अपने को।।

*211 समर्थ साहब दया करो मेरा।।82

                         82 दयालु साहब दया करो मेरा।। दर्शन बिना बहुत दिन बीते, बिसर गया रे वो डेरा।। जब से तेरे घर को भुला, किया जगत का फेरा। मायामोह जन्म बन्धन मिले, लाग पड़ा उलझेड़ा।।   विषय लहर पर मोढ़े मन को, माचन माहीं बसेरा।   तो को छोड़ जहां चित्त दीजे, वहीँ काल का डेरा।।  स्वामी गुमानी नूर निशानी, दर्शन देत सवेरा। नित्यानंद है दास तुम्हारा,  मिटा जन्म जन्म का फेरा।।

*208 मस्ताना मस्ताना कोई जन पाया पद निर्माणा।।82

मस्ताना मस्ताना कोई जन पाया पद  निरवाना।। मग्न हुए चढ गए गगन में, अधर धार धर ध्याना। लगन लगाए बिसराई सबको, अनहद शब्द पहचाना।। मानसरोवर मिटा जुगत कर, मन ऊनमन ठहराना। मोती मुक्त उछल अनुभव के, कर हनसा असनाना।। लक्ष कला ले चंद्रप्रकाशा, सहस कला ले भाना। जगमग लगी महल के भीतर, देखें दर्श दीवाना।। परम सुन्न में पर्चा हुआ, चेतन चरण समाना। निर्गुण से तेज की नगरी, बहू अवगत अस्थाना।। बरसे पदम दामिनी दमके हर हीरो की खाना। गम से दूर अगम से आगे अद्भुत अजब ठिकाना।। खिल गया कमल नवल वर पाया, नित्य प्रति अमृत पाना। अमर कंद भव बंधन व्यापे, जिस घर भरम भगाना।। पांच पच्चीस पुरी तक भागी, जीत लिया मैंदाना। नित्यानंद महबूब गुमानी, अब निश्चय घर जाना।।

*207 कैसे हो हरि मेला।। 81

कैसे हो हरि मेला रे तूने अमृत में रस घोला रे।। यह मन बड़ा दीवाना रे काम क्रोध लपटाना रे।। माया का रस पिया रे कोढी को कंचन दिया रे। जन्म अमोलक गंवाया रे, तूने अमृत तज विश खाया रे। जनम जनम का सौदा अरे कामनी कनक का पूता रे।। विषयों से नहीं भाजे रे काल शीश पर गाजे रे। दुनिया में सोहरत पसारे रे, तने पटक पटक के मारे रे।। है ऐसा जीव अभागी रे हरी छोड़ जगत लो लागी रे। कोई नहीं है तेरा रे दिन दस लिया बसेरा रे।। जो तू मोह भुलाना रे फिर पीछे दूर पयाना रे। जब पूछे वह चलावा रे तब करें बहुत पछतावा रे।। मैं कहा संदेश विचारी रे हर हीरा हाट तुम्हारी रे। स्वामी गुमानी गावे रे, सो नित्यानंद वर पावे रे 

*205. कदम उठाए पांव धर आगे।। 81

कदम उठाए पाव धर आगे, साहब का घर नेडा है।। मिलना हो तो देर ना करिए तुझ में ही पीया तेरा है।। तन मन धन सब वार सजन पर जब पावे वह डेरा है।। नैनो उघाड़ निहार नजर भर, दिल दूरबीन सवेरा है।। नित्यानंद महबूब गुमानी, चल हर महल सवेरा है।।

*206 हर-हर जपले बारंबार।।81।।

हर-हर जपले बारंबार इब तने जन्म अमोलक पाया। कॉल बली तुझे कभी ना छोड़े समझे क्यों ना गवार।। भाई बंधु कुटुंब कबीला यह सब सिर पर भार। चलती बरिया कोई ना तेरा बिन हरी सर्जन हार।। जगत बोझ और मानव बड़ाई, दिल से दूर उतार। चले सवेरा उठसी डेरा, करले बीच मुरार।। तेरे नगर में पीठ लगी है सौदा करो विचार। नितानंद महबूब गुमानी कर निर्भय दीदार।।

*204. मेरे मन बस गयो रे सुंदर सजन सांवरो।। 80

मेरे मन बस गयो रे सुंदर सजन सांवरो।। तन में मन में और नयन में रोम रोम में छायो। जो काहू को डंसे भुजंगम ऐसा अमल चढ़ायो।। सकूची लाज नहीं खुलती शंका सर्वस आप लुटायो। जब से सुनी प्रेम की बतियां, दूजो नजर नहीं आयो।। जित देखूं तित साहब दरसे, और नजर नहीं आयो। इन नैनों में रमा रमैया जग को जगह नहीं पायो।। अचरज कैसी बात सखी री अब मोहे कौन बतावे। बिरहा समंद का मिला समंद में अब कुछ कहा ना जावे।। जल में गई नून की मूरत सर्वस हो गया पानी। यो हर की छवि हेर हेर कर हेरन हरण हिरानी।। गूंगे ने एक सपना देखा किस विध बोले वाणी। सैन करें और मगन जीव में जिन जाने तिन जानी।। जिन देखें महबूब गुमानी वह भी भय गुमानी। मैं जाती थी लाहे कारण उल्टी आप बिकानी।। को समझे यह सुख की बतियां समझो से नहीं छानी। नित्यानंद अब का से कहिए पीव की अकथ कहानी।।

*203. हो विदेशी प्यारे मेरी अखियां जोह वें बांट।। 80

हो विदेशी प्यारे मेरी अखियां जोहवें बाट।। हम परदेसी तुम परदेसी म्हारे प्रेम उचाट।। खबर हमारी लई ना मुरारी हम अटके औघट घाट।। नेह नगर से चलकर आए प्रेम बनज री हाट।। तन मन शीश साईं ले लीजे, करो प्रीति सांट।। नित्यानंद महबूब गुमानी, म्हाने मीलियो खोल कपाट।।

*202. सुख के सागर प्यारे हमारी सुध लेना।। 80

सुख के सागर प्यारे हमारी सुध लीजे।।           सुख के देने वाले हमारी शुद्ध लीजे।। तन मन धन सब पर तुम्हारे जो चाहे सो कीजे।। छोड़ देऊं तो जगह नहीं कोई, बांह गहू तो दीजे।। प्रेम की बूंद नैन झड़ लावे, सुरंगी चुनरिया दीजे।। नित्यानंद महबूब गुमानी सन्मुख दर्शन दीजे।।

*200 नर जन्म अमोलक खोया रे।। 79

नर जन्म अमोलक खोया रे। सुधा समुद्र के ढंग जाकर दिल का दाग ना धोया रे।। जम का जाल कॉल मग भारी, तुम क्यों मूल बिगोया रे।। सपन स्वरूप कनकुर कामिनी इन्हीं में सुख सोया रे।। अंत समय अमृत कहां पाई है राम विसर विष रे।। निजानंद भजन गुमानी सो नर युग युग रोया रे।।

*199 हरि प्रीतम से प्रीत लगा के।। 79

हरि प्रीतम से प्रीत लगा के अब क्यों जग में सोवे री।। प्रभु विसार वार सिर लीन्हा, जन्म अमोलक खोवे री। जो जागी सो चरणों लागी, जो सोवे सो खोवे री।। अमृत अमर छोड़कर बावली विषय बीज क्यों बोवे री। ऐसी मेहर फिर कहां पाइए मूड पकड़कर रोवे री।। प्रेम नगर की डगर चले जो प्रभु का मन गुण पोवे री। हे मेरी प्यारी मन मतवाली रंग में रंग समोवे री।। चरण चंद चित् माही चेत ले, चादर ना कोई धोवे री। नित्यानंद महबूब गुमानी दिल में दर्शन होवे री।।

*201 प्रभू जी दीजो दरस सुखारा।।79।।

            79 प्रभु जी दीजो दर्श सुखारा। नित्यानंद पर कृपा कीजे, जीवन प्राण आधारा।। हम अनाथ तुम नाथ हमारे, साहब अंतर्यामी। बहुजल बेड़ा पार उतारो, निरालंब निष्कामी।। भक्तवत्सल तेरा वेद कहावे, भक्तन के प्रति पाला।। चरण कमल में रख लीजे, दीनानाथ दयाला।। अब के बेड़ा पार उतारो, परम गुरु महाराजा। बांह गहे की लाज तुम्हीं को, साहेब जगत जहाजा।।। नित्यानंद महबूब गुमानी सुनिए साहब मेरा। पांव पकड़ कर हमको दीजे, चरण कमल में डेरा।।

*198. म्हारे प्रेम संदेशी गुरु आए।। 78

म्हारे प्रेम संदेशी गुरु आए।। मंदिर भयों उजास सखी री मंगल वचन सुनाएं। प्रीत बदरिया उमड़ घुमड़ कर नगर माही झड़ लाए।। पिया मिलन को आगम उपजा, मोतियन मंदिर छाए।। बरसे क्षीर झड़ लाए कर, नीपजे रतन सवाए।। नित्यानंद नूर निशानी हम ऐसे सुख दर्शाए।।

*197. तेरो दोजक दोष मिटा ले।। 78

एरो दोजक दोष मिटाले, इब मन हरि भज आनंद पाले।। हरि नाम तत सार जगत में उर् बीच खूब रमाले। हो अन रोग रोग नहीं व्यापे, सूरत नाम पर लाले।। पांचो प्राण एक घर ला, फिर त्रिगुन तार मिला ले। प्राणायाम की योग युक्ति से, स्वांसा चक्र सुलझा ले।। गंगा जमुना बहे सरस्वती घाट सुखमना नहा ले। तीनों धारा बहें इकसारा, गुरुमुख गोते लाले।। जो कोई भेदी मिले अगम का उन संग भेद मिला ले। भेदी ना बक्वादी मिल जा उनसे चुप लगा ले।। बनो सूरमा हिम्मत मत हारे जीवादास परखाले। हज की बाजी छोड़ दे मनवा बेहद नगर बसाले।।

*196. प्यास दरस की लग रही।। 78

प्यास दरस की लग रही कोई रमता राम मिलावे हे।            तेरे होय रहूं चरणों में जो कोई अभी मिलावे हे।। नैनों में ना भावे सजनी सो अब प्रेत बतावे हे। सेवा करो एक मन हो ठाडा अब तो हरी घर आवे हे।। अब तो लगन लगी साहब से, या हे छवि मन भावे हे। कारज करक सभी तजदो पल-पल जहान लगावे हे।। विराट रूप की दर्शन दारू वेद मिले तो प्यावे हे। तेर मेर कोई ना हो जोत में जोत मिलावे हे स्वामी घुमाने राम हमारे पलक छोड़ ना जावे हे। नित्यानंद मनमोहन हिलमिल सब दुख दूर हटावे हे।।

*195. पिया क्यों ना ली हो खबरिया हमारी।। 77

पिया क्यों ना लेई हो खबरिया म्हारी।। निशि वासर मेरी पलक ना लागे बढ़ गई वेदन भारी।। आंगन भयों विदेश सखी री, प्रीतम अटल अटारी। मैले भेष उनमने लोचन, झुर-झुर हो गई खारी।। पलक पलक मोहे युग बीते जब से नाथ विषारी। आप अगमपुर जाए विराजे, हम भव जल बीच डारी।। हम से भूल हुई या तुम ही चुके मेरे मीत मुरारी। नित्यानंद महबूब गुमानी तुम जीते हम हारी

*193. नमो निरंजन नमो निरंजन।। 77

नमो निरंजन नमो निरंजन नमो निरंजन स्वामी। सरदार विराजो मेरे उर में अवगत अंतर्यामी।। निरंकार निर्लेप निरंजन निर्गुण सरगुन नामी। चिदानंद चैतन्य चाहूं दिशा परम गुरु प्रणामी।। सर्वांगी संपूर्ण सब घट संत रूप सुख धामी। जगन्नाथ जगपति जगजीवन तू ही कृष्ण तू ही रामि।। व्यापक विष्णु विश्व बहुरंगी व्याप रहे सब ठामी। अगम अपार अधम अविनाशी अटल रुप वरियामी। मनमोहन मनहरण मनोहर गुप्त गरुड़ के गामी। गुनातीत गोविंद गोसाई निर्मल नेह नित कामी।। तेजपुंज पारस परमेश्वर तू महबूब गुमानी। नित्यानंद झड़ लगी मेहर  की, हो रही आहमी साहमी।।

*192. तन मन शीश ईश अपने को। 76

तन मन शीश ईश अपने को पहलम चोट चढ़ावे।       जब कोई राम भगत गति पावे हो जी।। सतगुरु तिलक अय्यप्पा माला जुगत जटा रखवावे। जत कोपीन और सत् का चोला माहे भेख बनावे।। लोक लाज कुल की मर्यादा तृण ज्यों तोड़ बगावे।  कनक कामिनी जहर कर जाने शहर अगमपुर जावे।। ज्यों पतिवर्ता पीव संग राजी, आन पुरुष ना भावे। बसे पिहर में प्रीत प्रीतम में न्यू जन सूरत लगावे।। स्तुति निंदा मान बड़ाई मन से मार भगावे। अष्ट सिद्धि की अटक ना माने आगे कदम बढ़ावे।। आशा नदी उलट के फेरे आडा बंद लगावे। बहु जल खार समंदर अंदर फेर ना फोड़ मिलावे।। गगन महल गोविंद गोसाई पल में ही पहुंचा वे। नित्यानंद माटी का मंदिर नूर तेज हो जावे।।

*191. लागी थारे पाया राम।। 76

लागी थारे पाया राम, लीजो म्हारी बंदगी।। चारो दिशा चेत के चितियां चिंता हरण मुरारी।  हमको ठोर कहुं ना पाई ताकि शरण तुम्हारी।। भव मारो भव तार गुसाईं या हम कुत्ते दरबारी। अब कहां जाएं खाए प्रसादी पाया टूक हजारी।। सुख सागर में किया बसेरा फिर क्यों दुख सतावे। परमानंद तेज घन स्वामी करो कृपा जो भावे।। जिनकी बांह गहो हित करके उनको कौन डिगावे। शरण आए और जाए निराशा तेरा वृद्धि लजावे।। हमको एक आधार तुम्हारा और आधार ना कोई। जो जग ऊपर धरू धारणा चलता दिखे सोई।। खिले फूल सोई कुमलावे, फेर रहे ना खुशबोई। अब तो लगन लगी साहब से जो कुछ हो सो होई।। पर्दा खोल बोल टुक हंसके हे महबूब गुमानी। घट पट खोल मिलो तुम जिनसे अमर हुए वह प्राणी।। नित्यानंद को दर्शन दीजो हे दिल मे हरम दिल जानी। तन मन धन सब करो वरना मैं दीदार दीवानी।।

*190 हृदय बिच हरी है साधु।।75।।

 हरदे बीच हरी है साधु हृदय बीच हरी है। तेरे भीतर साहिब तेरा सतगुरु खबर करी है।।  धर दूरबीन चश्म को फेरो या जगमग जोत जगी है। कहीं-कहीं गुप्त किसी से प्रकट सब घट वस्तु भरी है।। साहब नूर नूर के सेवक नूरी ही की  नगरी है। सूक्ष्म सेज विहंगम बाजे वह घर परा परी है।। सूरज करोड रोम की शोभा सो तबीयत खरी है। देवी देव भेंव नहीं पावे ये आत्म ब्रह्मपुरी है।। मकर तार पर मुरली बाजे या बरसात रंग झड़ी है। तिल की ओट तमाशा देखें हाजिर घड़ी घड़ी है।। गंगा जमुना बहे सरस्वती धार अजब भरी है। मार्ग मीन जाए घर पहुंचे उनकी भली सरी है।। आप मिले स्वामी गुमानी, जहां पर मेहर फिरी है। नित्यानंद महबूब गुमानी चले उस पथ पर तीनों ताप टरी है।।

* 188. घुंघट के पट खोल री तने राम मिलेंगे।। 74

घुंघट के पट खोल रे तोहे राम मिलेंगे।। सब घट रमता राम रमैया कठोर वचन मत बोल री।। साहिब आवे तेरी धीर बंधावे देगा कुंडी खोल री।। रंग महल में जोत जगत है आसन से मत  डोल री।। कह कबीर सुनो भाई साधो बाजे अनहद ढोल री।।

*168 बाहर ढूंढने जा मत सजनी।।67।।

बाहर ढूंढन जा मत सजनी पिया घर बीच विराज रहे री। गगन मंडल में सेज बिछी है अनहद बाजे बाज रहे री।। अमृत बरसे बिजली चमके घूमर घूमर घन गाज रहे री।। परम मनोहर तेज पिया को रवि शशि मंडल लाज रहे री।। ब्रह्मानंद निरख छवि सुंदर आनंद मंगल छाज रहे री।।

*187. मेरे मालिक बिना दर्द कालजे होय।। 74

मेरे मालिक बिना दर्द कालजे होय।। दिन नहीं चैन रेन नहीं निद्रा तड़प तड़प गई सोए। आधी सी रात का पिछला बैरवा नैन गंवाए रो रोए।। पांच चोर मेरे पीछे पड़ रहे, इनसे मेरा कुछ ना होए।। कथगी कमाली कबीरा थारी बाली जी गुरु मिले सुख होय।।

*185. मन का मरन लगा परिवार।। 73

मनका मरन लगा परिवार, जब मेहर हुई गुरुओं की।। आशा तृष्णा मरी है मेरी, ईर्ष्या जलकर हो गई ढेरी।                                  फिर मरा अहंकार।। पांचो नारी मरी है प्यारी, पच्चीसों को हो गई भारी।                                 तीनों हुई मरने को तैयार।। धरम प्यारा लिया कटारा, मन का कुनबा मर गया सारा।                                 जब हुआ ज्ञान प्रचार।। सतगुरु गस्सी ज्ञान की खाई, खूब तरह से करी सफाई।                                 फिर हो गई अमन बहार।। सतगुरु घीसा प्रेम प्रीत से, अब हो गई धर्म की जीत से।                               मन की हो गई हार।। यह अवगत कि तुम्हें सुनाई हो गई सतगुरु जी की चाही।                                 मन मरा झक मार।।

*184. सुहागिन में तो हो गई।। 73

सुहागिन में तो हो गई, मेरा जिस दिन मरा भरतार।। विधवा रही पति जीने से भोगे कष्ट अपार। जिस दिन मर गया पति हमारा खूब करें श्रृगार।। पांच पुत्रों ने मार के मैं भई सपूती नार। जिस दिन मर गए दसों भाई सोई थी पैर पसार।। मात-पिता के ही मरने से मिटी सभी तकरार। सारे सुख उस दिन भोगूंगी, लूं सारे कुटुंब ने मार, कह कबीर सुनो भाई साधो इसका करो विचार। इस त्रिया ने क्या सुख भोगा सारे कुटुंब ने मार।

*182 हुई मेहर गुरु की मरण लगा परिवार।। 72

हुई मेहर गुरु की मरण लगा परिवार।। पहलम वही राम की वाणी होने लगी फिर कुनबा घानी। फेर मरी घर की पटरानी, पुत्र मर गए चार।। पुत्र मारे पांच पचीसों, और मरे तो गेहूं पिसूं लात मार के बाहर घिसूँ, करूं किले के बाहर।। तीन जेठ जिनमें मर गए दोई, एक बचा सो करें रसोई। जीमन वाला रहा ना कोई, संतो करो विचार।। दोनों मर गई दौर जेठानी, नित उठ रखें खींचातानी। सुखीराम में हो गई स्यानी सोंऊंगी पैर पसार।।

*183 सखी री पड़ी अंध के कूप।। 72

सखी री पड़ी अंध के कूप सजन घर कैसे पावे री।। काल ने रच रखा यह डेरा, तेरे छोड़ चोगीर्दे करडा पहरा।                                      तू कैसे निकल के जावे री।। माया नित नया खेल दिखावे, बंदर के ज्यों नाच नचावे।                               अंत समय तुम खाली जावे री।। जग चिड़िया रैन बसेरा है, आवागमन का लगा फेरा है।।                             समझ तूने कुछ ना आवे री।। कुल कुटुंब में क्यों भरमाई, यह तो है ज्यों बादल की छाई।                              पल भर में यह हट जावे री।। सतगुरु खोज जो मुक्ति चाह्वे काम क्रोध को मार भगावे।                                 तने शुद्ध निज घर आवे री।। सतगुरु ताराचंद दे ज्ञान कटारा, पकड़ोशरण थाराहोनिस्तारा।                               जो तूं राधास्वामी गावे री।।

*181 तू झीने मार्ग जाइए हो रंग रंगीला छैला बन्ना।।71

      तू झीने मार्ग जाइए हो रंग रंगीला छैल ना बनना।। मूल दवारे बंद लगाइए कौन में कौन मिलाइए हो। इंद्री मुद्रा भाई बस करके फिर उस मार्ग जाइए हो।।       पांच तत्व तने पहले दरसे झिलमिल झिलमिल होती हो।      सूरत लगा चंद्रमा देखो जगमग जगमग होती हो।। काया गढ़ ने छोड़के हनसा, सुनन शिखर जाइए हो। सुन्न शेखर में पुरुष वैदेही उसके दर्शन पाइए हो।।    कहे कबीर झीने से झीना,2  हो कर रहीए हो    मन मोटाई मन से रोको धरमदास गुण गाइए हो।।

*180 महारे सद्गुरु दीनदयाल हे सखी।। 71

तुम्हारे सतगुरु दीन दयाल ए सखी काटे फंद चोरासी के।। सतगुरु औरतें पारस पथरी भवसागर तरने की कतरी।                             देते दया की झाल हे सखी।। दुख दुनिया का काटने वाले सब को अमृत बांटने वाले।                           वे भरें अमृत के ताल हे सखी।। काटे सकल क्लेश गुरुजी ब्रह्मा विष्णु महेश गुरुजी।                             राम लखन गोपाल हे सखी।। दादा रामकिशन तप धारी चंद्रभान गुरु चमत्कारी।                      जिनका नाम है कृष्ण लाल हे सखी।।

*179 हे सखी जाना से ससुराल मोह छोड़ दिए।। 71

                        71 हे सखी जाना से ससुराल, मोह छोड़ दिए पीहर का।। काम क्रोध मद लोभ त्याग ले, माया की नींद से जाग ले।    हे कर जीवन का उद्धार, मोह छोड़ दिए पीहर का।। प्रीति पीहर की ना जानेगा, संग ले जाने की ठानेगा।       हे ना मानेगा भरतार, मोह छोड़ दिए।। डोली तेरी खूब सजावें, सिर पर चुनर लाल ऊढ़ावें।       ले जांगै चार कहार मोह छोड़ दिए।। संग ना जावे पीहर वाले, जाएंगे थोड़ी दूर बेचारे।       हे आवे उल्टे तने लिकाड़, मोह छोड़ दिए।। प्रीत पीहर की तज दो प्यारी, परम पिया को भजलो प्यारी।      हे तेरा हो जा बेड़ा पार, मोह छोड़ दिए।।

*178. चलो चलो सखी अब जाना पिया भेज दिया।। 70

चलो चलो सखी अब जाना, पिया भेज दिया परवाना।। एक दूध जबर चलाया सब लश्कर संग सजाया।                            किया बीच नगर के थाना।। गडकोट किला गिरवाया सब द्वार बंद करवाया।                           अब किस विध होए रहाना।। जब यमदूत लेने आवें वे तुरंत पकड़ ले जावें।                          तेरा एक ना चले बहाना।। वह पंथ कठिन है भारी, कर संघ सामान तैयारी।                          ब्रह्मानंद फिर नहीं आना।।

*177 सखी री मैं कर सतगुरु का भेष।। 70

सखी री मैं कर सतगुरु का भेष शरण सतगुरु की जाऊंगी।। हार सिंगार तार के तने में, भस्म रमाऊंगी। तुलसी माला पहन गले में अलख जगाऊंगी काशी मथुरा हरिद्वार ना तीरथ जाऊंगी। जाए हिमालय करूं तपस्या ना तन को सुखाऊंगी।। ऋषि मुनियों के जाऊं आश्रम खोज लगाऊंगी। बाहर भीतर सब जग ढूंढू, ना अटका खाऊंगी।। निशदिन गुरु का ध्यान लगाकर दर्शन पाऊंगी। ब्रह्मानंद पिया घर जा के मंगल गाऊंगी।।

*176. सखी हे रही पीहर में घूम।। 69

सखी हे रही पीहर में घूम सासरे का ख्याल नहीं।। सगे संबंधी मित्र प्यारे नहीं किसी से मेल। सीधी होकर चाल बावली नहीं बाजीगर का खेल।     तू तो भूली फिरे है फजूल समझी इनकी चाल नहीं।। राजी बोले काम करा ले साधो अपना काम। पिया के संग जाना होगा भूल गई उसका नाम।         तेरी काया रह जाएगी धूल बूझे कोई बात नहीं।। सारी दुनिया का ख्याल छोड़ के लाले हरी में प्रीत। बार-बार ना गाए जाएंगे इन गुरुऑ के गीत।        गाली से टूट जाएगा फूल आवे तेरे हाथ नहीं।। कहे कबीर सुनो भाई साधो क्यों बांधे सै पाल। चार जने तने लेवन आवे मूल करे ना टाल।      तने जाना पड़े जरूर होगी कती टाल नहीं,

*175. पी पी मत ना बोल पपिहा रे।। 70

पी पी मत ना बोल पपिया रे। पी पी बोल मेरे है रे जगावे दिल है डामाडोल।। दिन नहीं चैन रेन नहीं निद्रा किसने कहूं दिल खोल।। शीश दिया मैंने पीव लिया रे इतने महंगे मोल।। कथगी कमाली कबीरा थारी वाली मेरे उठे कालजे होल।।

*174. तुम तो फसी काल के जाल।। 69

तू तो फसी काल के जाल रही तने कुछ भी खबर नहीं।। कर्म फूट गया तेरा निर्भागी, शहर छोड़ जंगल में भागी। काम क्रोध कुत्तों की थ्यागी, वे खींच ले तेरी खाल।। कॉल कर्म की चरखी घुमाई लख चौरासी तूं भरमाई। आदि घर की खोज ली राही, उलझी जन्म मरण के जाल।। खोज करी ना अपने घट की गोल भरम की सिर पर मटकी। तेरी आंखों के बंद रही पट्टी, इस विधि रही बेहाल।। जप तप संयम में क्यों जूझे, पित्र देव भेव क्यों पूजे। सत्संग कर तूने आप्पा सूझे, गुरु ढूंढन का कर ख्याल।। जो तूं संत शरण में आ गए इस जाल से तूं बच जावे। सुमिरन नाम अमर पद पावे बिना नाम कंगाल।। गुरु ताराचंद का यही संदेशा चित्र दे कुंवर सुनो उपदेसा। सुमिरन भजन करो हमेशा राधास्वामी कर दे निहाल।।

*173 मैं तो ढूंढत डोलू हे।। 68

मैं तो ढूंढत डोलू हे सतगुरु प्यारे की नगरिया।। जंगल बस्ती शहर में ढूंढी बड़ी बड़ी विपदा मैंने झेली।                         पाई नहीं मैंने प्यारे की नगरिया।। पांचों ने पांच पच्चीस ने ऐसी वहकाई देकर झकोले इत उत्त बुलाई।                      मैं खाली रह गई हे पड़ के भूल भुलैया।। जप तप तीरथ कुछ नहीं पाया भेख एक ने झूठा ठेका ठाया।                   कैसे दिल को रोकुं हे,  नहीं आवे सबरिया।। वेद कितने मैं पढ़ा कुराना पाया नहीं कोई चिन्ह ठिकाना।                  चारों दिशाओं दौड़ाई हे मैं अपनी नजरिया।। चलतीचलती दिनोद में आई सतगुरुताराचंद की हुई शरणाई।                   उनसे कंवर ने पाई हे निज घर की खबरिया।।

*171 इसको जगा ले सजनी बन्ना सोवे हैं अटारी।। 67

इसको जगा ले सजनी बनडा सोवे है अटारी।। बिन कर मेहंदी लगी बन्ने के बिन देह चढ़ी हल्दी।। जहां बंदे की शहर लगी है वहां गगन गई धरणी।। उस बंदे की सवेरे सेज पर बिना शीश के वा झगड़ी।। कहे कबीर सुनो भाई साधो पिया के संग सजनी।।

*170. तेरा मंदिर मेला हे।। 68

तेरा मंदिर मेला है इसमें राम कहां से आए।। हाथ हाथ इसमें कूड़ा जम रहा कदे ना झाड़ू लावे। कूड़े के में पढ़ कर सो जा कूड़ा ही मन भावे।। तेरे मंदिर में पांच कुत्तिया तू इनको ना समझावे। वह तेरे मंदिर में गंदा कर दें जिनके तू लाड लडावे।। तेरे द्वारे साधु आजा तू उनको भी धमकावे। एक मुट्ठी तूं चून गाल के सो सो गाल सुनावे।। राधास्वामी सुन मेरी लाडो गुरु तूने समझावे। जो तू आजा गुरु शरण में तो सहजे मुक्ति पावे।।

*169. जगा ले सजनी बन्ना सोवे हैं अटारी।। 67

जगाने सजनी बन्ना सोवै हैं अटारी।। उस बनने के रूप रेखा ना, अक्षर तक का लिखा लेख ना। अमर पुरुष जो द रेट भेेख ना शोभा वाकी अगम अपारी।। उस बनने के चरणों की दासी काटेंगे जन्म घर की फांसी। आत्म रूप अचल अविनाशी वा की सूरत पर बलिहारी।। जरा जरे मरे ना मारा टारा टरे ना बिडरे विडारा। तीन लोग उने खोजत हारा कहते हम दे दे किलकारी।। कह कबीर इस बंदे को मोहल्ले सुन शेखर में जाकर टोह ले। अपना आप जगत से खो लें सुरत दृष्टि कर मुर्त निहारी।।

*167. सजनी घट के परदे खोल।। 66

सजनी घट के परदे खोल।। भूल भरम में सब जग बहता कालक्रम की पड़ी है रोल। विषय वासना तक जितनी प्यारी यह है भारी पोल।। मल आक्षेप आवरण तारो इनका चढ़ा है खोल। राम रसायन ले सतगुरु का नाम लागे विष का मोल।। आंख कान को बंद करके मुंह से कुछ ना बोल। अंतर्मन में आपा टोह ले, काहे जगत रही डोल।। सतगुरु ताराचंद की शरण गहो रे पाओ नाम अनमोल। कंवर शरण सतगुरु की पाके निर्भय करें कि किलोल।।

*166 सखी री पड़ी अंध के कूप।। 66

सखी री पड़ी अंध के कूप, सजन घर कैसे जावे री।। कॉल ने रख रखा यह डेरा तेरे चौगिरदे करड़ा पहरा।                            तूं कैसे निकल कर जावे री।। माया नए नए खेल दिखावे बंदर की तरह नाच नचावे।                        अंत में तुम खाली जावे री।। जग चिड़िया रैन बसेरा है लगा आवागमन का फेरा है।                          समझ तूने कुछ ना आवे रे।। कुल कुटुंब में क्यों भरमाई यह तो है बादल की छाई।                         पल में आते जावे री।। गुरु खोज जो मुक्ति चाहवे, काम क्रोध को मार भगावे।                         तूने शुद्ध निज घर की आवे री।। सतगुरुताराचंद दे ज्ञान कटारापकड़ो शरण तो हो निस्तारा।।                         जो तू राधास्वामी गावे री।।

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

तेरा कुंज गली में भगवान मंदिर में क्या ने ढूंढती डोले।। सोहनी सोहनी मूर्ति धरी मंदिर में, मावे मुख से बोले। बोलतड़ा को काहे विचारों, राई पर्वत ओलहे।। गोमुख से गंगा निकली, पांचों कपड़े धोले। बिन सतगुरु तेरा मैल कटे ना, हरि भज हल्का होले।। तन की कुंडी मन का साबुन, याही में शील समोले। सूरत ज्ञान का कर मोगरा दिल का दागल धोले।। शिव शक्ति की नौका चढ़ने हरी दर्शन तूं जोह ले। कह कबीर सुनो भाई साधो राई पर्वत ओलहे।।

*164. सतगुरु तुमसे कह रही हूं मैं।। 65

सतगुरु तुमसे कह रही सूं मैं, कब लेवन ने आओगे। बाट देख के हार ली दाता कब सूरत दिखलाओगे।। युग बीत लिए अब तो सारे आशा के संसार में। बंधन लगे हैं यम के भारी फस गई में घर बार में।       इस चक्कर से निकलन की कब दया दिखाओगे।। कॉल माया की नगरी में दो चोर लुटेरे आ रहे सैं। काम क्रोध मद लोभ मोह मने चुप चुप के खा रहे सै।    इन ठगीयों की नगरी से कब आकर मुझे बचाओगे।। मात-पिता सुते भाई बंधु, ना गोती नाती प्यारे से। सुख में बोले राजी होके दुख में पीठ दिखा रहे सैं।       धुर का साथी नाम बताया कब मंजिल मुझे दिखाओगे।। सरला दास के सतगुरु कंवर जी आप मेरी या पूरी सै। बुलाईयो चाहे नहीं बुलाईयो दर्शन बहुत जरूरी सै।      मेरे जीवन का सार यही है कब भक्ति मेरी कर आओगे।।