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Showing posts from April, 2020

नास्तिक का क्या अर्थ है. -What does atheist mean?

SAMAYBUDDHA's Dhamm Deshna नास्‍तिक का क्या अर्थ है?…ओशो  KSHMTABUDDHA 3 years ago Advertisements देवानंद, नास्तिक का अर्थ है—जो नहीं को जीवन का आधार बना ले, जो नकार को जीवन की शैली बना ले। नास्तिक का अर्थ वैसा नहीं है जैसा साधारणत: समझा जाता है। साधारणत: समझा जाता है जो ईश्वर को इनकार करे वह नास्तिक। वह परिभाषा मूलत: गलत है। क्योंकि बुद्ध ने ईश्वर को इनकार किया और बुद्ध से बड़ा आस्तिक पृथ्वी पर दूसरा नहीं हुआ। महावीर ने ईश्वर को इनकार किया, लेकिन क्या महावीर को नास्तिक कह सकोगे? और जो कह सके वह अंधा है। जो कह सके वह जड़ है। नास्तिक की पुरानी परिभाषा ओछी पड़ गई, छोटी पड़ गई। इसलिए मैं नहीं कहता कि नास्तिक वह है जो ईश्वर को अस्वीकार करता है। नास्तिक वह है जो अस्वीकार में जीता है। स्वभावत:, मेरे आस्तिक की परिभाषा भी भिन्न हो जाएगी। आस्तिक का अर्थ नहीं है कि जो ईश्वर को स्वीकार करता है, आस्तिक का अर्थ है जो स्वीकार में जीता है। आस्था में जीए, वह आस्तिक। अनास्था में जीए, वह नास्तिक। साधारणत: सौ में से निन्यानबे प्रतिशत लोग नास्तिक हैं। क्योंकि नहीं उनके जीवन का ढंग है। हर बात में नहीं। नही

कभी टेलीफोन बूथ पर काम करता था , आज है। Comedy King है। || KAPIL SHARMA BIO-GRAPHY ||TKSS

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कभी टेलीफोन बूथ पर काम करता था , आज है। Comedy King है। || KAPIL SHARMA BIO-GRAPHY || कभी टेलीफोन बूथ पर काम करता था ,  आज है।  Comedy King है। “क्या आप हँसना चाहेंगे ??”  “क्यों नहीं !! यदि हंसाने वाला  Kapil Sharma  हो तो ।”  “आप ऐसा ही कहेंगे, हैं ना ?”  हमेशा सबको हंसाने वाले Kapil Sharma की साधारण-सी दिखने वाली जिंदगी यूं आसान ना था। अपने परिवार की मदद करने के लिए उन्हें बचपन में कपड़ा मिल में काम करना पड़ता था। पिता जब कैंसर से पीड़ित हुए तो उनकी जिंदगी और कष्टों में गुजरने लगा। पर हिम्मत नहीं हारा। दिल में – मन में अपने सपने को जिंदा रखा । मुंबई आया, संघर्ष किया और छा गया। तो आइये मित्र इस  Hindi biography  के द्वारा Kapil Sharma के जिंदगी के अलग-अलग भागों को करीब से जानते है… Kapil Sharma का Childhood & Parents कपिल शर्मा का जन्म अमृतसर के एक लोअर क्लास फैमिली में हुआ था। उनके पिता पंजाब पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल थे। पर कैंसर से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद 2004 को वे सफदूरजंग अस्पताल, न्यू दिल्ली में अंतिम सांस ली। कपिल की माँ हाउस वाइफ़ है। उनके परिवार में एक बड़ा भाई अशोक कुमार शर्मा

वास्तविक धर्म क्या है?-What is real religion?

वास्तविक धर्म क्या है? ओशो          काश पूरी धरती पर यदि धार्मिकता फैल सके तो सारे धर्म विदा हो जाएंगे! और यह मनुष्य जाति के लिए एक महान वरदान होगा, जब मनुष्य केवल मनुष्य होगा-न ईसाई,न मुसलमान,न हिंदू           सच्ची धार्मिकता को मसीहाओं, उद्धारकों, पवित्र-ग्रंथों, पादरियों, पोपों और चर्चों की कोई आवश्यकता नही हैं। क्योंकि धार्मिकता तुम्हारे हृदय की खिलावट है। वह तो स्वयं की आत्मा के, अपनी ही सत्ता के केन्द्र बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने अस्तित्व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो, उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्न व्यक्ति होने लगते हो। तुम्हारे जीवन में जो अंधेरा था वह तिरोहित हो जाता है, और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी करते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होता है।          मैं तो बस एक ही पुण्य जानता हूं और वह हैःसजगता।          ये विभाजन, ये सीमाएं, ये भेद पूरे इतिहास में हजारों-हजारों युद्धों के कारण बने हैं। यदि तुम पीछे लौटकर मनुष्य के अतीत पर नजर डालो तो तुम्हें यह कहना ही पड़ेगा कि अतीत

नौकर के साथ उदार व्यवहार-Generous dealings with the servant

नौकर के साथ उदार व्यवहार कोताराकान्त राय बंगालके कृष्णनगर राज्यके उच्च पर नियुक्त घे। नरेश उन्हें अपने मित्रकी भाँत मानते बत समयतक तो वे राजभवनके ही एक भागमें करते थे। उस समय जाडेकी ऋतुमें एक दिन बहत अधिक रात बीतनेपर अपने शयन-कक्षों पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि उनका एक पुराना सेवक उनकी शय्यापर पैतानेकी और सो रहा है। श्रीरायने एक चटाई उठायी और उसे बिछाकर चुपचाप भूमिपर ही सेगये। कृष्णनगरके नरेशको सवेरे-सवेरे कोई उत्तम समाचार मिला। प्रसन्नताके मारे नरेश स्वयं श्रीरायको वह समाचार सुनाने उनके शयन-कक्षकी ओर चले आये। नरेशने उनका नाम लेकर कुकाय, इससे रायमहोदय हड़बड़ाकर उठ बैठे। जयापर मोया नैक भी बाग गया और डरता हुआ दृर खड़ा हो गया। । राजाने समाचार सुना से पहले यूछा-'गाय महालय यह क्या बात है? आप भूमिपर मोटे हैं और मंत्र शव्यापर।' । रायने कहा-' राठमें लंय तो वह जयमाले पैताने सो गया था। मुझे लगा कि इसका स्वम टीक नहीं होगा अथवा यह बहुत अधिक थक गया होगा काम करते-करते। शव्यापर तनिक लेट ही नोट आ गयी होगी। जगा देनसे इसे का होता और चाईना में जानेमें मुझे कोई असुविधा भी नहीं।'

गौतम बुद्ध के सामने एक राजा ऐसे हो गया था शर्मिंदाशर्मिंदा-A king was embarrassed in front of Gautam Buddha

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गौतम बुद्ध के सामने एक राजा ऐसे हो गया था शर्मिंदा जीवन मंत्र डेस्क | May 03, 2015, 12:18 PM IST 4 मई को भगवान गौतम बुद्ध की जयंती है।     4 मई को भगवान गौतम बुद्ध की जयंती है। हिंदी पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा (इस वर्ष 4 मई को) पर बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि करीब 563 ई.पू. इसी तिथि पर नेपाल की तराई में शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में बुद्ध का जन्म हुआ था। इनके पिता राजा शुद्धोधन थे और माता का नाम माया देवी था। जन्म के समय ही माता की मौत हो जाने के कारण बुद्ध का पालन-पोषण विमाता प्रजापति गौतमी ने किया। यही कारण है कि उन्हें गौतम भी कहा जाता है। गौतम बुद्ध, भगवान महावीर के समकालीन थे। हिंदू मान्यताओं में बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार ही माना जाता है। इस अवतार में उन्होंने संसार को करुणा का महत्व बताया है।  गौतम बुद्ध की जयंती के अवसर यहां जानिए उनसे जुड़ा प्रसंग...  जब गौतम बुद्ध के सामने एक राजा हो गया शर्मिंदा गौतम बुद्ध के काल में एक राजा था अजातशत्रु। एक समय जब अजातशत्रु कई मुश्किलों से घिर गया, राजा मुसीबतो

क्रोध-विजयी चुल्लबोधि - Wrathful conqueror

क्रोध-विजयी चुल्लबोधि एक बार चुल्लबोधि नामक एक शिक्षित व कुलीन व्यक्ति ने सांसारिकता का त्याग कर संयास-मार्ग का वरण किया। उसकी पत्नी भी उसके साथ संयासिनी बन उसकी अनुगामिनी बनी रही। तत: दोनों ही एकान्त प्रदेश में प्रसन्नता पूर्वक संयास-साधना में लीन रहते। एक बार वसन्त ॠतु में दोनों एक घने वन में विहार कर रहे थे। चुल्लबोधि अपने फटे कपड़ों को सिल रहा था। उसकी पत्नी वहीं एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थी। तभी उस वन में शिकार खेलता एक राजा प्रकट हुआ। चीथड़ों में लिपटी एक अद्वितीय सुन्दरी को ध्यान-मग्न देख उसके मन में कुभाव उत्पन्न हुआ। किन्तु संयासी की उपस्थिति देख वह ठिठका तथा पास आकर उसने उस संयासी की शक्ति-परीक्षण हेतु यह पूछा,"क्या होगा यदि कोई हिंस्त्र पशु तुम लोगों पर आक्रमण कर दे।" चुल्लबोधि ने तब सौम्यता से सिर्फ इतना कहा, "मैं उसे मुक्त नहीं होने दूँगा।" राजा को ऐसा प्रतीत हुआ कि वह संयासी कोई तेजस्वी या सिद्ध पुरुष नहीं था। अत: उसने अपने आदमियों को चुल्लबोधि की पत्नी को रथ में बिठाने का संकेत किया। राजा के आदमियों ने तत्काल राजा की आज्ञा का पालन किया। चुल्लबोधि के शां

The Four Sights / चार दृश्य- Stories of the Buddha

The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma 075   The Four Sights / चार दृश्य ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सुन राजा सुद्धोदन ने सिद्धार्थ गौतम को एक चक्रवर्ती सम्राट बनाना चाहा ; न कि एक बुद्ध। अत: संन्यास और बुद्धत्व के सारे मार्ग अवरुद्ध कर उन्होंने सिद्धार्थ को एक योग्य राजा बनने की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध करायी। राजकुमार सिद्धार्थ जब उनतीस वर्ष के हो गये तो देवों ने उनके सम्बोधि-काल को देख उन्हें राज-उद्यान में भ्रमण को प्रेरित किया। वहाँ उन्होंने लाठी के सहारे चलते एक वृद्ध को देखा। तब उन्हें यह ज्ञान हुआ कि वे भी एक दिन वैसे ही हो जाएंगे ; सभी एक दिन वैसी ही अवस्था को प्राप्त होते हैं। वितृष्ण-भाव से वे तब प्रासाद को लौट आये। जब राजा को उनकी मनोदशा का ज्ञान हुआ तो उन्होंने राजकुमार के भोग-विलास के लिए और भी साधन जुटा दिये। किन्तु सांसारिक भोगों में राजकुमार की आसक्ति और भी क्षीण हो चुकी थी। दूसरे दिन राजकुमार फिर से उद्यान-भ्रमण को गये। वहाँ उन्होंने एक रोगी व्यक्ति को देखा। उसकी अवस्था देख उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हर कोई जो जन्म लेता है रोग का शिकार भी होता है।

आर्त जगत् के आश्रय(bhagavaan naaraayan)-Shelter of the art world Satkahta Ank-32

आर्त जगत् के आश्रय ( भगवान् नारायण ) संसार में जब पाप का प्रावल्य हो जाता है अनेक बार हो जाता है किंतु अनेक बार ऐसा होता है कि पाप पुण्य के ही बल से अजेय हो जाता है। असुर तपस्या करते हैं, उनकी तयः शक्ति उन्हें अजेय बना देती हैं। पाप विनाशी हैं दुःखरूप है । शाश्वत, अजेय, सुख स्वरूप तो है। धर्म । किंतु धर्म या पुण्य करके जब कोई अजेय अदम्य सुखी होकर पापरत हो जाय–देवता भी विवश हो जाते हैं। किसी की तपःशक्ति, किसी का फल-दानोन्मुख पुण्य वे नष्ट नहीं कर सकते और अपने तप एवं पुण्य के द्वारा प्राप्त शक्ति तथा ऐश्वर्य से मदान्ध प्राणी उच्छृङ्खल होकर विश्व में त्रास, पीड़ा एवं उत्पीडन की सृष्टि करता है ।। जगत् की नियन्त का शक्तियो–देवता भी जब असमर्थ हो जाते हैं, विश्व कै परम संचालक की शरण ही एकमात्र उपाय रहता है। जब तक देवशक्ति नियन्त्रण करने में समर्थ हैं, उत्पीडन अपनी सीमा का अतिक्रमण करते ही स्वयं ध्वस्त हो जाता है। अहंकारी मनुष्य समझ नहीं पाती कि उसका विनाश उसके पीछे ही मुख फाड़े खड़ा है। पर ऐसा भी अवसर आता है जब देवशक्ति भी असमर्थ हो जाती है । उसकी शक्ति सीमा से असुर बाहर हो जाते हैं । महामारी

आत्मज्ञान।Enlightenment

    गौतम बुद्ध उस समय के हर मशहूर गुरु के पास गए।  उनकी बोद्धिक क्षमता और ज्ञान पाने की लालसा इतनी तीव्र थीं कि जो चीज समझने में बाकी लोगों को वर्षों लग जाते थे। वे कुछ हफ्तों में ही सीख लेते थे। समाधि की आठ अवस्थाएँ होती हैं। गौतम ने उन सभी अवस्थाओं को प्राप्त कर लिया था। मगर फिर भी वो जानते थे कि यह जीवन की सम्पूर्णता नहीं है।       उनके अंदर अब भी ज्ञान पाने की तीव्र इच्छा थी। जब सारे उपाय बेकार हो गए तो उन्होंने अंतिम मार्ग का सहारा लिया। जिसे समाना कहते हैं। समाना साधक जीवन के मूलभूत पहलुओं में से एक ये है कि वे कभी भोजन नहीं मांगते। बस चलते रहते हैं, चलते रहते हैं। गौतम ने इस मार्ग को इतनी कठोरता से अपनाया कि वो उस दिशा में नहीं जाते थे। जहां भोजन मिलने की सम्भावना होती थीं। वे बस सीधा चलते थे। इस प्रक्रिया में उन्होंने अपने शरीर को इतना नष्ट कर लिया कि वो इतने कमजोर हो गए कि वो बस हड्डियों का ढांचा बन कर रह गए। वो कभी भोजन की तलाश में नहीं जाते थे। उन्हें जब भोजन दिया जाता था तभी खाते थे।      एक दिन वो निरंजना नदी के तट पर पहुंचे। जो दो फुट गहरी एक छोटी सी धारा थीं। और उसका परव

नाद योग-Nad yoga

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मुख्य मेनू खोलें खोजें नादयोग किसी अन्य भाषा में पढ़ें इस पृष्ठ का ध्यान रखें संपादित करें यह लेख एक  आधार  है। जानकारी जोड़कर इसे  बढ़ाने में  विकिपीडिया की मदद करें। नाद  का शाब्दिक अर्थ है -१. शब्द, ध्वनि, आवाज। संगीत  के आचार्यों के अनुसार आकाशस्थ अग्नि और मरुत् के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई है। जहाँ प्राण (वायु) की स्थिति रहती है उसे ब्रह्मग्रंथि कहते हैं। संगीतदर्पण में लिखा है कि आत्मा के द्वरा प्रेरित होकर चित्त देहज अग्नि पर आघात करता है और अग्नि ब्रह्मग्रंधिकत प्राण को प्रेरित करती है। अग्नि द्वारा प्रेरित प्राण फिर ऊपर चढ़ने लगता है। नाभि में पहुँचकर वह अति सूक्ष्म हृदय में सूक्ष्म, गलदेश में पुष्ट, शीर्ष में अपुष्ट और मुख में कृत्रिम नाद उत्पन्न करता है। संगीत दामोदर में नाद तीन प्रकार का माना गया है—प्राणिभव, अप्राणिभव और उभयसंभव। जो सुख आदि अंगों से उत्पन्न किया जाता है वह प्राणिभव, जो वीणा आदि से निकलता है वह अप्राणिभव और जो बाँसुरी से निकाला जाता है वह उभय- संभव है। नाद के बिना गीत, स्वर, राग आदि कुछ भी संभव नहीं। ज्ञान भी उसके बिना नहीं हो सकता। अतः नाद परज्योति वा ब