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Showing posts from July, 2023

*840. यह संसार असार रे काहे प्रीत लगावे।। 393

          यह संसार असार रे काहे प्रीत लगावे।। जिस से प्रीत करे तूं प्यारी कोई ना रहने हार री।।         धन और धाम संग नहीं जावे झूठा सकल पसार री।। मानुष जन्म मिला जग माही, कर हरि भजन सुधार री।।         ब्रह्मानंद छोड़कर ममता करो जगत व्यवहार री।।

*818. तूं किस लिए जग में आया रे बंदे।। 385

तू किस लिए जग में आया रे बंदे ला ले हिसाब।। खेला कूदा तू बचपन में राजी हो गया अपने मन में।                तेरा जोर जवानी छाया रे बंदे मानी ना दाब।। ब्याह करवाया हुए बाल बच्चे यह भी नहीं कर्म तेरे सच्चे।               तूने इतना कुबूल है लाया रे बंदे जीवन खराब।। बैल की ढाल जुड़ा जुए में अपने आप पढ़ा कुए में।             तूने खूब जोड़ ली माया रे बंदे बन गया नवाब।। बूढा होकर खाट पकड़ ली नस-नस तेरी कतई जकड़ ली।             सिर धुन धुन के पछताया रे बंदे अब तू जनाब।। खुद ही खुद को दे दिया धोखा कृष्ण लाल खो दिया मौका।             ना भजन राम का गाया रे बंदे पीवे शराब।।

*779. देखो रे लोगो भूलभुलैया का तमाशा।।371

              देखो रे लोगों भूलभुलैया का तमाशा।। बालापन में ज्ञान नहीं था जवानी में ओढ़ा खासा।। कॉल बली का लगा झपट्टा तेरी हुई स्वासम स्वासा       जीवे इतने माता रोबे बहन रोवे दस मासा।       तेरह दिन तक तिरिया रोवे फेर करें घर वासा।।  भुजा पकड़ तेरा भाई रोवे, शीश पकड़ तेरी माता। चरण पकड़ तेरी तिरिया रोवे तोड़ चला क्यों नाता।।       ड्योढी तक तेरी तिरिया का नाता फलसे तक तेरी माता।       मरघट तक ये लोग नगर के फिर हंस अकेला जाता।। हाड़ जले ज्यों लाकडी रे केश जले ज्यों घासा। सोने जैसी काया जल गई कोई ना आया पासा।।     ढका धरा तेरा सारा रह गया, जिसकी ला रहा था आशा।    कहे कबीर सुनो भाई साधो यह दुनिया का रासा।।

*728. तेरा सुना मनुष्य शरीर।। 351

     तेरा सूना मनुष्य शरीर प्यारे गुरु बिना।। मात पिता बंधु सुत नारी यह सब है मतलब की यारी।                  तेरी कोई ना बंधावे धीर।। ज्ञान ध्यानबिन हृदय सुना डाल पात बिन तरवर सुना                  ताल सूना बिना नीर।। बड़े-बड़े पंडित जोर लगा दो भूत भ के फिर भी ना भागे।                   लाख करो तस्वीर तदबीर।। ऋषि मुनि साधु ब्रह्मचारी, भेद बिना सब फिरे अनाड़ी।                   ना कटे कर्म जंजीर।। निगुरा कहता कागज लेखी गुरु हंस ने आंखों देखी                    या सतगुरु में तस्वीर।।

*558. राम रट ले रे तू प्राणी 264.

राम रट ले रे तू प्राणी, उम्र तेरी जाए बिहानी।।       बूंद बूंद टपके जैसे, रे अंजलि से पानी।। गर्भाशय से बाहर आया भाग बड़े मानुष तन पाया माया मोह में भूलाए गया हो प्रभु खुद बिसरानी।      हाथी घोड़े महल अटारी माल खजाना संपत सारी      सांस निकल जाए पलक में होश बिरानी रे।। क्या सोवे सुख सेज सजाई कॉल खड़ा सिर घात लगाई। जैसे बाज झपट चिड़िया को ले जाए उड़ानी रे।।     राम नाम जो जन नित्य गावे,, ब्रह्मानंद परम पद पावे।      जन्म मरण दुख जाए सकल भव पास कटानी रे।।

*543. क्या सो गए सुमिरन की बरियां ।।244

        क्या सोवे सुमिरन की बरिया।। दिनचर्या दिन की सुधि नाही जग धरो जग जलती जलरिया। न्यू उपदेश संदेश कहते हैं भजन करो चाहे गगन अटरिया।। नित उठ पाच पच्चीस का झगड़ा जागो मेरी सूरत चुनरिया।। कहे कबीर सुनो भाई साधो भजन बिना तेरी सुनी नगरिया।।

*495 हमारे सतगुरु ने मारा है बाण ।। 221

म्हारे सतगुरु ने मारा सै बाण मर्म में लग गया जी।। तुम्हारे सतगुरु ने बाड़ी बोई झुकी फलों की आड़।। पांच मृग पच्चीस मृग्णी लगी है पिलपिल खान।। ज्ञान बाण ठाया सतगुरु ने खींची शब्द कमान। सूरत बैल कर ले फटकारे जीत लिया मैदान।। लाग्या बाण धरमगढ़ टूटा लगे मृग थर्रान। पांच पच्चीस पुरी तज भागे पकड़ लिया शैतान।। कहे कबीर सुनो भाई साधो हर घर से घट आन दुविधा दुरमति दोनों भागी मिट गया आवन जान।।

*499. मेरे लग गए बाण सुरंगी हो।। 220 ।।

       मेरे लग गए बाण सुरंगी हो। धन्य सतगुरु उपदेश दिया है हो गए चित् भृंगी हो।। ध्यान पुरुष की बनी है त्रिया  घायल पाचो संगी हो।। घायल की गति घायल जाने जा जाने जात पतंगी हो।। कह कबीर सुनो भाई साधो निश दिन प्रेम उमंगी हो।।

*426. बाबा भाग बिलैया झपटी।। 183

     बाबा भाग बिलैया झपटी।। ब्रह्मा पे झपटी विष्णु पे झपटी,                               और नारद मुनि से लिपटी।। इंद्र पे झपटी देवताओं पर झपटी,                              और श्रृंगी ऋषि के सिर पर मटकी।। गोरख पे झपटी व्यास पे झपटी,                        विश्वामित्र के गले से लिपटी।। कहे कबीर सुनो भाई साधो,                          संतन को देख कर सटकी।।

*261. ईश्वर से करते जाना प्यार 102।।

ईश्वर से करते जाना प्यार ओ नादान मुसाफिर। जीवन की नैया कर ले पार ओ नादान मुसाफिर।। जीवन अनमोल हीरा मिट्टी में ना रोल वीरा।                          तुमको समझाया बारंबार।। जब तक है जोश जवानी बिगड़ी सब बात बनानी।                           होने ना पावे अत्याचार।। सज्जन की संगति करना, दुर्जन से हरदम डरना।                           वरना तू डूबेगा मझधार।। राम तेरा अंत सहाई, उस को ना भूलो भाई                           जीवन के पल हैं दो चार।।

*237. कर भजन बंदगी बंदे।। 91

कर भजन बंदगी बंदे कटे मोह माया के फंदे।। सतगुरु का भजन कर भाई तू, कुछ कर ले खास कमाई तू।                              तेरे फिरे अक्ल पर रंदे।। नाम बिना क्यों पड़ा खाई में नूगरा बन रहा अवाई में।                                तूं विचार छोड़ दे गंदे।। तुझे संत गुरु और पिता माता सत्संग की बातें रहे बता                               यह चार पुरुष नहीं अंधे।। वनराज भजन दर्शाता है, गुणियों से माफी चाहता है।                                मेरे सतगुरु सूरज चंदे।।

*210. क्यों कर मिलूं पिया अपने को।। 82

क्यों कर मिलूं पिया अपने को।। पिया बिसार मेरी सुध बुध विसरी पिया मढी तन तपने को। भवन ना भावे बिरहा सतावे क्या करिए जग सपने को।। देखें देह नेह नहीं छूटे ले रही माला जपने को।। बनबन ढूँढत फिरू दीवानी ठोर कहीं ना पाई अपने को।। नित्यानंद महबूब कुमार ने क्या समझावे अपने को।।

*194. मेरे हिवरे में बस गए रामा।। 77

मेरे हिवरे में बस गए रामा। हरी दर्शन की प्यास हमारे कद पहुंचो उस गामा।।            प्रेम घटा जब चढी रे गगन में भीग रहे मेरे दामा।            चित चातक पी पी लो लाई, रटत रहे हरिनामा।। नाला नयन हिलोर हिय की बहत रहे निशी जामा। रक्त मास दोऊ भेंट विरह की रहे अस्त और जामा।।          स्वामी गुमानी रामदरश में जाए कहीं पैजामा।          नित्यानंद को हित कर रखो चरण छतर की  छामा।।

*131. मेंरे सतगुरु चेतन चोर।। 53

मेरे सतगुरु चेतन चोर मेरा मन मोह लिया जी।। जिसके लागे वही जाने क्या जाने कोई और। घायल की गति घायल जाने क्या जाने पग चोर।।            भूल गई मैं तन मन अपना भूली लाख करोड़।            लगी हुई एक पल ना बिसरू जैसे चांद चकोर।। जब से दृष्टि उल्टी मेरी नजर ना आए कोई और।  ढूंढ लिया मैंने घट के अंदर मिट गई मन की लोर।।           जल्दी से सतगुरु के पहुंच गई भाग गए सब दूर।           मीरा को रविदास मिले हैं चला नहीं कोई जोर।।

*130 मैने गुरु मिले रविदास।। 53

मैंने गुरु मिले रविदास सासरे मैं ना जांगी।। एक बेल के दोय  तुमबड़ी एक ही उनकी जात। एक फिरे गलियों में डुलती, एक संतो के हाथ।।           एक झुंड के दो सरकंडे एक ही उनकी जाति।           एक के बनते खरी खरी में एक कलम धनी के हाथ।। एक मिट्टी के दो बर्तन भाई एक ही उनकी जात। एक में घलता माखन मिश्री एक धोबी के घाट।।          आए गए कि पनिया गांठे, बैठा सरे बाजार।          भूखे ने दो रोटी देता जिसकी जाति चमार।। काख में से रापी काढ़ी,चीरा अपना गात। चार जन्म के चार जनेऊ, आठ गांठ नो तार।।       अपने महल से मीरा उतरी घाट में गंगा नहाए।      पांव पूजूं गुरु रविदास के अमरलोक ने जाए।।

*125 चांदी की दीवार को तोड़ा।। 51

चांदी की दीवार को तोड़ा मीरा ने घर छोड़ दिया। एक राजा की बेटी ने गिरधर से नाता जोड़ लिया।। नाचे गाए मीराबाई कर में लेकर इकतारा। पग में घुंघरू गले में माला भेष जोगियन का धारा।      राणा जी की आन बान को मीरा जी ने तोड़ दिया सास कहे कुल नाशी मीरा लगी गले में फांसी रे। कैसे होगा जीना मेरा जग करता मेरी हंसी रे।         मन के पिया की बनी जोगणिया,                   तन के पिया को छोड़ दिया।। सांप पिटारा भेजा राणा ने और मौत के फूलों का। हंसके मीरा ने जब पहना हार बन गया फूलों का।           प्रेम दीवानी मीरा देखो मोह का बंधन तोड़ दिया।। पी गई मीरा बाई देखो राणा के विष का प्याला। कौन बिगाड़ सके है उसका जिसका गिरिधर रखवाला।            ++++(((((++++++++ श्याम शरण में जो कोई आते शाम के ही बन जाते हैं। भक्त दयालु भजन भाव में मीरा के गुण गाते हैं।।        भवसागर से तर गई मीरा, भव का बंधन तोड़ दिया।।

*124 मंदिर जाती मीरा ने सांवरियो 51..

मंदिर जाती मीरा ने सांवरियो मिल गयो रे।                 के गिरधर जादू कर गयो रे,।। राणा कहन लगा मीरा तैं आज तेरे के होग्या।              फीका पड़ गया नैन फर्क बोली में पड़ गयो रे।। मीरा कहन लगी राणा से आज मने गिरधर मिल गया।             कर गया कोल करार जिगर के ताला झड गया रे।। राणा कहने लगा मीरा से तू भले घरों की बेटी से।          ला दिया कुल के दाग पति जीवतडो मर गयो रे।। मनमोहन है पति हमारे सारे जग को है रखवारो।            कहता राधेश्याम मीरा ने मोहन मिल गयो रे।।

107. ऐसे हैं लोलिन सतगुरु।।

*86. सतगुरु के बिना मार्ग कौन बतावे।। 30

सतगुरु के बिना मार्ग कौन बतावे।। मात पिता ने जन्म दिया पर गुरु ज्ञान की बात कहें। टोटा नफा और भले बुरे में सतगुरु देते साथ कहें।।                डोर धनी के हाथ रहे वह सब ने नाच नचावे।। बिन सतगुरु के फिरे भटकता ज्यों कस्तूरी का मृग फिरे। भरम की गटरी धरी शीश पर नाहक प्यारे बोझ मरे।        म्हारे सतगुरु बेड़ा पार करें गुरु ज्ञान की बलि लगावे।। गुरु शब्द पर डटने से भाई भरम वासना भग जा सै। आत्मज्ञान गुरु दे दे भव बंधन सब कट जा सै।          भाई खुद का बेरा पट जा सै, गुरु सोता हंस जगावे।। भजन करा कर नारायण का सना तेरे शरीर चले मुंशीराम भरम म भटका, गुरु ज्ञान के तीर चले।        साथ नहीं जागीर चले, क्यों व्यरथा भरम भरमावे।।

*61. मेरे सतगुरु पकड़ी बांह नही तो।। 21

मेरे सतगुरु पकड़ी बांह नहीं तो मैं बह जाती।। कर्म कार्ड कोयला किया ब्रह्म अगन में दार। लोभ मोह भरम जलाया सतगुरु बड़े दातार।। कागा से हंसा किया जात वरन कुल खोय। दया दृष्टि से सहज संभाला पातक डारे धोए।। अज्ञानी भटकता फिरे जात वर्ण अभिमान। सतगुरु शब्द सुनाया भनक पड़ी मेरे कान।। माया ममता तज दई विषय नाही समाय। कह कबीर सुनो भाई साधो हद तज बेहद जाए।।

*51 नाम लखा दी तो थारे पाया लागू।। 17

नाम लखा दिजो, थारे पायां लागूं। भेद बता दिजो, थारे चरणों लागूं।। जन्म जन्म का सोया म्हारा मनवा जी।           शब्द की मार जगा दिजो।। घट अंधियारा कुछ सुझत नाही की।          ज्ञान का दीप जला दीजो।। विष की लहर उठें घट अंदर जी।           अमृत बूंद पीला दिजो।। गहरी नदियां नाव पुरानी जी।           खेय के पार लगा दिजो। धर्मीदास री हो दाता अर्ज गोसाई की।          अब को बार निभा दिजो।।

*25. हमारा दाता अपने ही पुर में पाया.. 8

हमारा दाता अपने ही उर में पाया.. जुगन जुगन की मिटी कल्पना सतगुरु भेद बताया।। जैसे कुमरी कंठा मणि भूषण जाने कहां घुमाया। एक साथी ने आज बताया मनका भेद नसाया।। क्यों तिरिया सपने सुत खोया जान के जी अकुलाया। जाग गई पलंगों पर पाया कहीं गया ना कहीं आया।। जो मुर्गा नाभि कस्तूरी ढूंढत वन वन ध्याया। उल्टी सुगंध नाभि की लिंगी स्थित हुआ अकुलाया।। कहे कबीर सुनो भाई साधो ज्यों गूंगे गुड़ खाया। वा को स्वाद वह कैसे बखाने मन ही मन मुस्काया।।

*15. तू ही तू ही याद मोहे आवे रे दर्द में.. ५

तू ही तू ही याद मोहे आवे रे दर्द में।। लख चौरासी भटकत भटकत।                मार पड़े भग जावे रे दर्द में।। सुख संपत्ति का सब कोई साथी।               दुख में निकट नहीं आवे रे दर्द में।। भाई बंधु कुटुंब कबीला।               भीड़ पड़े भग जावे रे दर्द में।। शाह हुसैन फकीर साईं का।              हर्ष निरख गुण गावे रे दर्द में।।