*210. क्यों कर मिलूं पिया अपने को।। 82

क्यों कर मिलूं पिया अपने को।।

पिया बिसार मेरी सुध बुध विसरी पिया मढी तन तपने को।
भवन ना भावे बिरहा सतावे क्या करिए जग सपने को।।
देखें देह नेह नहीं छूटे ले रही माला जपने को।।
बनबन ढूँढत फिरू दीवानी ठोर कहीं ना पाई अपने को।।
नित्यानंद महबूब कुमार ने क्या समझावे अपने को।।

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