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Showing posts from June, 2023

*544. मत सोना मुसाफिर नींद भरी।।244

मत सोना मुसाफिर नींद भरी।। तुम परदेसी भूल पड़े हो यह सब चोरों की नगरी।।       पल पल छिन छिन तक लगावे चंपत माल चुरा नगरी।। लोग लुटाए गए बहुतेरे बिरला जाय बचा सफरी।।       ब्रह्मानंद करो सब तैयारी रैन बिताय दई सगरी।।

*538. जाग प्यारी अब क्या सोवे।।241

जाग प्यारीअब क्या सोवे रैन गई दिन काहे खोवे।। जिन जागा तिन माणिक पाया, तैं बौरी सब खोए गवाया। पिया तेरे चतुर तूं मूर्ख नारी कभी ना पिया की सेज सवारी। तूं बोरी बोरापन किन्ही, भर जोबन पिया अपना ना चिन्ही। जाग देख पिया सजना तेरे, तोहे छोड़ उठ गए सवेरे। कह कबीर  सुई धागे शब्द बाण उर आनंद लागे।।

*329 नाम निरंजन गाओ साधो।।134

राम निरंजन गाओ साधु नाम निरंजन गाओ रे।। मानस देही मिली दुर्लभ काहे व्यर्थ गवाओ रे।। नाम जहाज बैठकर दुष्कर भवसागर तर जाओ रे।। घर की जीभ नाम बिन दाम फिर क्यों देर लगाओ रे। उठत बैठत सोवत जागत मन से नहीं बिसराओ रे ध्रुव प्रहलाद विभीषण नारद सनकादिक मन भाओ रे। अजामिल गज गणिका तारे दृढ़ निश्चय मन लाओ रे।। कलयुग केवल नाम अधारा दूजा भ्रम भुलाओ रे। ब्रह्मानंद नाम बिन हरी के कभी मोक्ष नहीं पाओ रे।।

*303 अगर है प्रेम दर्शन का भजन से प्रीत का प्यारे।।125

अगर यह प्रेम दर्शन का भजन से प्रीत कर प्यारा।। छोड़कर काम दुनिया के रोक विषयों से मन अपना। जीतकर नींद आलस को रहो एकांत में प्यारा।। बैठ आसन जमा करके त्याग मन के विचारों को। देख भृकुटी में अंदर से चमकता है अजब तारा।। कभी बिजली कभी चंदा कभी सूरज नजर आवे। कभी फिर ध्यान में भाशे धर्म ज्योति का चमकारा।। मिटें सब पाप जन्मों के कटे सब कर्म के बंधन। वो परमानंद में हो के लिए मन छोड़ संसारा।।

*258. हर में हरी को देखा।।101

हर में हरी को देखा।। आप माल और आप खजाना आप ही खर्चन हारा। आप गली-गली दिशा मांगे लिए हाथ में प्याला।। आप ही मदिरा आप ही भट्टी आप चूवावन हारा। आप सुराही आपे प्याला आप फिरे मतवाला।। आप ही नेना आप ही सेना आप ही कजरा काला। आप गोद में आप खिलावे आप ही मोहन बाला।। ठाकुरद्वारा ब्राह्मण बैठा मक्का में दरवेशा। कहे कबीर सुनो भाई साधो हरि जैसे को तैसा।।

*236. उस मालिक को याद कर।। 91

उस मालवीय को याद कर जिसने सब देह बनाई रे।।            देखते ही हो जाएगा पर्वत से राई रे।। कंचन काया नाश हो तन ठोक जलाई रे। मूर्ख भोंदू बावले क्या मुक्ति कराई रे।। अजामिल गणिका तर गए और सदन कसाई रे। नीच त रें तो से कहूं नर मूढ अन्याई रे।। शब्द हमारा साच है और ऊंट की बाई रे। धुएं जैसा धोल है तिहू लोक चलाई रे।। कलमिस कुसमल सभी कटें हो तन कंचन काई रे गरीबदास निज नाम की नित पृभी पाई रे।।

*109. राम तेरी रचना अचरज भरी।। 38

राम तेरी रचना अचरज भारी। जाको वर्णन कर सब हारी।। जल की बूंद से देह बनाई, ता में नर और नारी। हाथ पाव सब अंग मनोहर भीतर प्राण संचारी।। नभ में नभचर जीव बनाए जल में रचे जलधारी। वृक्ष लता वन पर्वत सुंदर सागर की छवि न्यारी।। चांद सूरज दो दीपक किनहे रात दिवस उजियारी। तारागढ़ सब फिरे निरंतर चहुं दिशि पवन सवारी।। ऋषि मुनि निशदिन धामणगाव में रखना सके गति सारी। ब्रह्मानंद अनंत महाबल ईश्वर शक्ति तुम्हारी।।

*108. गुरु बिन कौन मिटावे भव दुख गुरु बिन कौन मिटावे।। 36

गुरु बिन कौन मिटावे भव दुख गुरु बिन कौन मिटावे।। गहरी नदिया वेग बड़ा है बहत जीव सब जावे रे। कर कृपा गुरु पकड़ भुजा से खींच तीर पे लावे रे।। काम क्रोध मद लोभ चोर मिल लूट लूट के खावे रे। ज्ञान खड़क देकर कर भारी सबको मार भगावे रे।। जाना दूर रात अंधारी गैला नजर ना आवे रे। सोवे मार्ग पर भगदड़ कर सुख से धामपुर जावे रे। तन मन धन सब अर्पण करके जो गुरुदेव रीझावे रे। ब्रह्मानंद भवसागर दुष्कर जो सहजे तर जावे रे।।

*79. सतगुरु जी महाराज मो पर साईं रंग डाला।।27

सतगुरु जी महाराज मो पर साईं रंग डाला।। शब्द की चोट लगी मन मेरे बिंध लिया तन सारा।। औषध मूल कुछ नहीं लागे क्या करें वेद विचारा।। सुर नर मुनि जन पीर औलिया कोई ना पाया पारा।। साहेब कबीर सारे रंग रंगिया सब रंग से रंग न्यारा।।

*75. अब पाया है अब पाया है।। 26

अब पाया है अब पाया है मेरे सतगुरु भेद बताया है।। सोना जेवर गाने सुनारा, भांति भांति सब न्यारा न्यारा। जब मैं बेचन गई बाजारा, भाव बराबर आया है।। मिट्टी चौक कुम्हार फिरावे बर्तन नाना भांति बनावे। किस्म किस्म के रंग लगावे एक अनेक दिखाया है।। चतुर जुलाहे तनिया ताना बनिया वस्त्र बहुत सुहाना। एक ही ताना एक ही बाना सब में सूत लगाया है।। सुर नर पशु खग जीव जहाना ऊंच-नीच सब भेज मिटाया। ब्रह्मानंद स्वरूप पहचाना सब घट एक समाया है।।

*74 अब जाना है अब जाना है. 26

अब जाना है अब जाना है प्रीतम का रूप पिछाना है।। गल विच हीरा हार अमोली, मैं ढूंढूं बाहर में भोली। पर्दा दूर हुता जब चोली दामन बीच छिपाना है।। बालक झूले बीच ही डेरा देती फिल्म नगर ढिंढोरा। जब मन निश्चय हुआ मोरा घर भीतर दर्शना है।। मृग नाभि में है कस्तूरी सूंघत घास फिरे वन दूरी। बिंजा ने बिन जाने निज मद जरूरी व्यर्था चिर भटकाना है सतगुरु पूरा भेद बताया मेरे मन का भरम मिटाया। धर्मानंद पास दर्शाया नैन से नैन मिला ना है।।

*73. नजरों से देख प्यारे वह क्या दिखा रहा है।। 24

नजरों से देख प्यारे वह क्या दिखा रहा है। सब चीज सब जग में ईश्वर समा रहा है।। प्रभु ने जब भी विचारा जग का हुआ पसारा। वह दे भुवन न्यारा मन में बना रहा है।। कहीं नर बना है नारी कहीं देव दैत्य भारी। पशु पक्षी रूप धारी बन बन के आ रहा है।। भूमि कहीं अगन है पानी नहीं पवन है। सूरज वहीं गगन है निर्गुण गुना रहा है।। तू भेद भाव मन में वन में वही है तन में। ब्रह्मानंद ज्यों स्वपन में रचना रचा रहा है।।