*236. उस मालिक को याद कर।। 91
उस मालवीय को याद कर जिसने सब देह बनाई रे।।
देखते ही हो जाएगा पर्वत से राई रे।।
कंचन काया नाश हो तन ठोक जलाई रे।
मूर्ख भोंदू बावले क्या मुक्ति कराई रे।।
अजामिल गणिका तर गए और सदन कसाई रे।
नीच त रें तो से कहूं नर मूढ अन्याई रे।।
शब्द हमारा साच है और ऊंट की बाई रे।
धुएं जैसा धोल है तिहू लोक चलाई रे।।
कलमिस कुसमल सभी कटें हो तन कंचन काई रे
गरीबदास निज नाम की नित पृभी पाई रे।।
Comments
Post a Comment