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Showing posts from February, 2023

*774 नर कपट खटाई त्याग करा कर काम भलाई के।।368।।

नर कपट खटाई त्याग कर आकर काम भलाई के।।।     तेरा हो जागा कल्याण भजन करले रघुराई के।। बरही कर्म कर्म की राही भाई सबसे सच्चा प्यारा बोल।  चुगली निंदा छोड़ पराई,  बोल सभी तोल तोल। मीठी बोली मोहनी मंत्र प्रेम का खजाना खोल।     तेरा सोता जागे भाग, बोल तू बोल कमाई के।। पूजा मंत्र बोल मेरे मित्र दुश्मन को भी कर दे माफ। दगा ना फरेब रखो बाहर भीतर करले साफ। क्षमा का हथियार पूरा बैरी मर जाए अपने आप।     गांधी जी की दाल जीत ले जंग लड़ाई के।। तीसरा है काम तेरा इंद्रियों का दमन कर। ज्ञान की कटार मार बस में पापी मन कर। परमेश्वर की हस्ती मान उस मालिक का सुमिरन कर।       तू बन काग से हंस चेत जा जन्म समाई के।। आखरी है काम तेरा चेतन का प्रकाश देख, ओहम सोहम बोल रही घट के अंदर स्वास देख। गुरु वेद व्यास तेरा करके ना अभ्यास देख।     साधु राम वैराग्य जान जा छंद कविताई के।।

*773 पाखंडी दुनिया कहो ना कैसे तरिया।।367।।

पाखंडी दुनिया कहो ना कैसे तरियां।। माटी धूल का सैयद बनाकर पूजे लोग लुगाइयां। चेतन जीव ने क्यों ना पूजे जो मुख भर के खाइया।। कुंभरे के तैं तीया मंगा के टीकम टीका करिया। एक मुर्गी का अंडा मंगा के चौराहे पर धरिया।। छोरे के बाल कटावन चाली,  कैंची ना लग दईया। एक बकरी का बच्चा मंगा के सन्मुख नाड़ कटैया।। जीते के संग धक्कम धक्का मरे ने गंगा पहुंचाइया। सोलह कनागत खीर बनाकर गाय ने बाप बनाइया। कहे कबीर सुनो भाई साधो यह पद है निर्गुणीया। भूत ने पूजो भूत बनोगे यम की चोटा खाइयां।।

*769 गुरुवर मेरा ये जीवन अब तो सवार दो।।329।।

                              गुरुवर मेरा ये जीवन अब तो सवार दो।       जिस पथ के हो तुम राही उस पथ पर उतार दो।। मोह राग में हूं अंधा भटका हूं बहुत दूर।      मेरे अंतर्मन को अपनी रोशनी उधार दो।। मैं पड़ा हूं तेरे दर पर इस आस में ही कब से।     गुरुवर किसी दिन मुझको तुम ही पुकार लो।। जीवन दिया प्रभु ने मैं अपना समझ रहा हूं।      कर आज उसका पूरा आशीष आधार दो।। माटी की इस काया को मां बाप ने जिलाया।     मेरी सोई आत्मा को जगा एक बार दो।। मैं पत्थर हूं मैं जगत में मेरा मोल कुछ नहीं है।     मुझ में भी कोई गुरुवर मुर्त निकाल दो।। है अनंत मुझ में कमियां दुनिया है मुझको भूली।     ऐसा ना हो गुरुवर तुम भी बिसार दो।। मैं बूंद की तरह हूं तुम हो विशाल सागर।     कभी गोद में बिठाकर मुझको भी प्यार दो।। मेरी आंखों से बहता नीर यह कह रहा है।      तेरे चरणों में ही गिर कर मेरा उद्धार हो।।

*747 यहां से चला गया कोतवाल।।

यहां से चला गया कोतवाल करके काया की कोतवाली।। छोड़ चला इस मर्म किले को, बदली हो गई और जिले को देख चुका इस चमन किले को, अब कुछ किया तत्काल।                               मुख से नहीं जवाब निकाली। सरकारी चार्ज को छोड़ा, बांध लिया था लेकर घोड़ा। टांग दिए वर्दी और बोरा, अब धरी चौक में थाल।                             बक्से की बंद करी ताली।। बड़े-बड़े जवान पुलिसके भाई, छोड़ गए सब संग सिपाही। इन ने वस्तु अनमोल लुटाई, अब लुटा दिया धन माल।                             दोनों हाथ से चला है खाली।।

*741 या काया कुटी निराली, जमाने भर से।।355।।

                                355 या काया कुटी निराली, जमाने भर से। दस दरवाजे वाली, जमाने भर से।। सबसे सुंदर आँख की खिड़की, जिसमें पुतली काली।। सुनते श्रवन नासिका सूँघे,वाणी करै बोला चाली।। लेना देना कर करते,पग चाल चलै मतवाली।।  मुख के भीतर रहती रसना, सुस्वादो वाली।। काम क्रोध मद लोभ आदि से, यह बुद्धि करे रखवाली।। करके संग इंद्रियों का मन, यह बन बैठा जंजाली।। इस क्रिया का नित्य किरायायह सांस चुकाने वाली।। जन राजेश मोह मत करना, करना पड़ेगा ये खाली।।

*730 यो चोला अजब बनाया दर्जी का मरहम ना पाया।। 352।।

यो चोला अजब बनाया दर्जी का मरहम ना पाया।। पांच तत्व की बनी गूदड़ी, हीरा लाल जड़ाया।। पानी की सुई पवन का धागा, जीवत मास लगाया।। रतन जतन का मुकुट बनाया, पुराण पुरुष ने एक पहनाया।।                        यो तो अगम किसम का आया।। कहे कबीरा सोई जन मेरा, करके देख नमेंरा।।

*,756 आज के युग में।।356।।

                              336 आज के युग में मानवता, इंसान छोड़ कर दूर हुए। इसीलिए मंदिर मस्जिद भगवान छोड़ कर दूर हुए।     कर्म भी पैसा धर्म भी पैसा, और पैसा ईमान बना।     मोहमाया में फंस गया इतना, अब पैसा भगवान बना। माया के चक्र में वेद, पुराण छोड़ कर दूर हुए।।     झूठे जग में फंस गया इतना, हरि का नाम भुलाया है।    झूठे जग में डूब गया, मोहमाया में भरमाया है। मतलब की खातिर ये धर्म, ईमान छोड़ कर दूर हुए।।   झूठे नाते बना लिए हैं, अब सेवा सत्कार नहीं।   मतलब की खातिर अपना है, जग में सच्चा प्यार नहीं। अब इंसान इंसानों की,पहचान छोड़ कर दूर हुए।।

*717 कुबध ने छोड़ दे भाई।।

                            347 कुबध ने छोड़ दे भाई, बदि ने छोड़ दे भाई। लाख चौरासी भरमत भरमत मानस देह पाई।। ध्रुव ने ध्यान लगाया हरि का, छोटे से ने भाई। अटल पोलिया जाए बिठाया, साधु-संतों के माही।। वरजे तैं भी मान्या कोन्या, हिरणाकुश अन्यायी। खंभ पाढ हरी प्रकट हो गए, नहुवा दे विनसाई।। श्री रामचंद्र की नार हरी थी, उस रावण ने भाई। अंजनी के पुत्र हनुमान ने लंका ठोक जलाई।। शिशुपाल ने रार  जगाई वा बरजे थी भौजाई। कुंदनपुर के पाय गौरवे, मार धड़ाधड़ खाई।। पूंजी माल विराना बरते, तनै देनी ना ठहराई। कहत कबीर सुनो भाई साधो, पकड़ा यम के जाई।।

*699 नर कितनी कर चतुराई एक दिन मचे शहर में हल्ला।। 340।।

नर कितनी कर चतुराई एक दिन मचे शहर में हल्ला।। झूठी सराय ठगों का मेला झूठी बाजी सब जग खेला। झूठे गुरु का झूठा ही चेला, राम कहे ना अल्लाह।। ठगनी एक पांच ठग न्यारे इस ठगनी से ब्रह्मा भी हारे। तप करते श्रृंगी ऋषि मारे लूट लिया था सब गल्ला।। मूर्ख नींद भरम की सोवे मूल को खोकर ब्याज भी खोवे। मूंड पकड़ के रोवेगा रे तेरा यम तोड़ेंगे पल्ला।। यह तन है तप के तपने का सोहन जाप गुरु जपने का। गंगा दास गुरु अपने का कस के पकड़ लिए पल्ला।।

*693 क्या ने देख दीवाना रे ।।

क्या ने देख दीवाना हुआ रे।। पांच तत्व का बना यो पिंजरा, ता में मनवा सुआ रे।। मात पिता तेरा कुटुंब कबीला, बहन भांजी बुआ रे।। टूटजागा पिंजरा बिखर जांगी ताड़ी, उड़जागा मनवासुआ रे । कहत कबीर सुनो भई साधो, जीत चलो जग जुआ रे।।

*642 मेरे सतगुरु काट जंजीर।। 318

मेरे सतगुरु काट जंजीर, जिवड़ा दुखी हुआ।।  एक हाथ माया ने जकड़ा, एक हाथ सतगुरु ने पकड़ा।                         नाचे अधम शरीर।।  कभी मन जाए ध्यान योग में, कभी मन जाए विषय भोग में।                        एक लक्ष्य दो तीर।। जल थल दुनिया बहती धारा, गहरा पानी दूर किनारा।                        सोचे खड़ा राहगीर।। जब तू आए कुछ बन नहीं पाए,                  जब तू न आए तो विरह सताए ।।                                 ज्यों मछली बिना नीर।।

*636 काहे बजाए शंख नगारे।।311।।

काहे बजाए शंख नगारे, काहे करे अजान रे। ढूंढ सके तो ढूंढ़ ले तेरे, अंदर है भगवान रे।। मृगा जैसे फिरे भटकता, चन्दन तिलक लगाएं तूँ। हाथ मे माला कण्ठ दुशाला, सिर पर केश बढाए तूँ।           गंगा काशी क्यों जाए,ये कहते वेद पुराण रे।। सेवा करले सब जीवों की, निशदिन शीश झुकाले तूँ।  देंगे ईश्वर तुझको दिखाई, मन को साफ बनाले तूँ।         दीप ज्ञान का जला के मन में, मिटादे सब अज्ञान को।। मोहमाया की चमक में कुछ भी, देता नहीं दिखाई रे। बन्द आंख से देखले मन मे, परम् पिता की खुदाई रे।       मन मन्दिर में बसे हैं तेरे, कर ले तूँ पहचान रे।।

*632 या कर्मा की रेखा टाली।।309।।

                         309 करमा की रेखा टाली रे नाही टले।। गुरु वशिष्ठ से महावर ज्ञानी लिख लिख लग्न धरे। सीता हरण मरण दशरथ का वन वन राम फिरे।। लख घोड़ा लख पालकी रे सिर पर छत्र धरे।  हरिश्चंद्र सत्यवादी राजा भंगी घर नीर भरे।। कित फंदा पारखी रे , कित वो मृग चरे। कित धरती का तोड़ा हो गया फंदे आन घिरे।। माता सुभद्रा मामा कृष्ण बाबुल राज करें। सिर पर पंजा श्री कृष्ण का अभिमन्यु आन मरे।। तीन लोक होनी वश किन्हें होनी नहीं टले।  कह कबीर सुनो भाई साधो फिर काहे सोच करें।।

*605 आवागमन मिटावै सद्गुरु।।274।।

आवागमन मिटावै सद्गुरु, आवागमन मिटावै। ऐसा सद्गुरु जोयेे मेरे प्यारे, आवागमन मिटावै।। काल जाल का भय नहीं व्यापै, औघट घाट लँघावै। मकर तार की डोरी चढ़कर, सुन्न मण्डल ले जावै।। जहाँ साईं की सेज बिछी है, हमको जाए लिटावै। चार मुक्ति जहाँ चमटी करत हैं, माया कहीं न जावै।।   अचल विहंगम चाल चाल कर, धीमी चाल दिखावै। रुनक झुनक जहाँ बाजे बाजैं, अनहद बीन सुनावै।। नूर महल में नूर का दीपक, वहां ले जाए मिलावै। हृदय दास ध्यान धरो नित, साँचा सद्गुरु मिल जावै

*602 बंधन काटियो मुरारी मेरे यम के।।

बंधन काटियो जी मुरारी मेरे यम के।। विषय जूरी मोहे बहुत सतावे, दुख देवें अति भारी जी। या बेदन मेरी कैसे कटेगी कृपा बिना तुम्हारी जी।। तुम तो हो दाता मेरे वेद धन्वंतरि, तुम ही मूल पंसारी हो जी। तुमने छोड़ दाता मैं किस पर जाऊं, किसने दिखाऊं नाडी जी गज और ग्राह लड़े जल भीतर, लड़ते-लड़ते हारी हो जी। पल मैं तो बंधन तुमने गज के कांटे, छोड़ गरुड़ असवारी जी। इंदर कोप चढ़े बृज ऊपर, जल बरसाया अति भारी जी। नख पर गिरिवर ठाया मालिक ने, डूबत बृज बिहारी जी।। द्रुपद सुता की तुमने लज्जा राखी चीर बढ़ाया भारी जी। सूरदास पर दाता कृपा करियो, आ पड़ा शरण तुम्हारी जी।।

*600 यमराज कहे दंड धारी।।

यमराज कहे दंड धारी सुन जीव तू बात हमारी।। है भरतखंड जग माही, शुभ कर्म हों सुखदाई।।                      तहां पाप किए मति मारी।। विषयों में मन धर लीना, पल भर सत्संग नहीं कीना।                     पशुऔ सम उम्र गुजारी।। अब जा पीछे पछताए, तुझे जरा शर्म नहीं आए।                       ब्रह्मानंद है भूल तुम्हारी।।

*584. मने अब के बचाले मेरी मां।।292।।

मैंने अब के बचाले मेरी मां बटेऊ आया लेवण ने। पांच कोटडी दस दरवाजा इसी महल के मां। ल्हूकती छिपती में फिरू हे, हरगिज मानेंगे नाएं। सावन के दिन सोलह रह गए तीजा के दिन चार। जी कर रहा है झूलन ने, सखियों में से घना प्यार।। हाथ जोड़कर कहे बुढ़िया सुनो बटेऊ बात। मारी बेटी से घनी लाडली कुछ दिन कर दो न टाल। ठाडा होके कहे बटेऊ सुनो बूढ़ली बात। मारे गुरु का यही हुक्म है हरगिज़ छोड़ेंगे नाए।। पांच भाइयों की बहन लाडली कोई ना चला साथ। कह कबीर सुनो भाई साधो मलते रह गए हाथ।।

*567 साधो काल ने जाल फैलाया।।274।।

साधु काल ने जाल फैलाया। लख चौरासी योनि में जीव रहा भरमाया।। यह तो देश काल का है भाई जिसमें जीव फसाया जगह-जगह पर काल की चौकी खींच खींच उलझाया।। पीपल जांटी मंदिर पूजे, जा तीरथ पर नहाया। जैसी कर ली आश जीव ने वैसा बाशा पाया।। जंगम जोगी जपी तपि, काल रूप धर आया। कर पाखंड फैल दिखा के नेति ठग ठग कर खाया।। मकड़ी जैसा जाल बना है सुलझे नहीं सुलझाया। ऐसे उलझे इस जाले में, सुझे नहीं उपाया।। ब्रह्मा विष्णु शिव जी को भी काल में ग्रास बनाया। दस अवतार ऐसे फांसी फिर विष्णु नहीं पाया।। सतगुरु ताराचंद कहे वही बचेगा, जिस पर सतगुरु दया। सूरत शब्द का साधन करके जिसने राधास्वामी गाया।।

*503 गई जवानी बीत रहा क्यों सोता है।।

गई जवानी बीत रहा क्यों सोता है। देख बुढ़ापा अब काहे को रोता है।।  यह जन्म मरण का फेरा क्यों कहता अपना मेरा। अब मरा मरा चिल्लावे जब बीमारी ने घेरा।                               भजन नहीं होता है।। सब जीवत के हैं साथी जो कहता मेरे मेरे। ना कोई रोक सकेगा जब प्राण उड़ेंगे तेरे।                            के जैसे तोता है।। तूं मलमल के धोता है देख बाहरी तन को। सत चेतन यह कहते हैं इस पापी मन को।                            क्यों नहीं धोता है।।

*502 सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है।।229।।

सोने वाले जाग जा, संसार मुसाफिर खाना है।। क्या लेकर आया था जग में, फिर क्या लेकर जाएगा। मुट्ठी बांधे आया जग में हाथ पसारे जाना है।। कोई आज गया कोई कल गया कोई चंद रोज में जाएगा। जिस घर से निकल गया पंछी उस घर में फिर नहीं आना है।। सुत मात पिता बंधु नारी, धन धाम यही रह जाएगा। यह चंद रोज की यारी है फिर अपना कौन बेगाना है।। कह भिक्षु यति हरि नाम जपो फिर ऐसा समय न आएगा। पाकर कंचन सी काया को, फिर आंख मींच पछताना है।।

*487 मैं प्यासा पपैया हूं गुरु जल की बूंद पिला।। 217

मैं प्यासा पपैया हूं, गुरु जल की बूंद पिला।। आशा तृष्णा का डेरा, गुरु घायल है मन मेरा। एक बार लगा दो फेरा, मुझे इन से मुक्ति दिला।। यह विकार बड़े अन्यायी, खड़े खंजर लिए कसाई। जैसे सदना की गऊ चुराई, आपे में लिया मिला।। माया का बोल सुगंधी, हिये देखे आंख हुई अंधी। तुम इनको बना लो बंदी, सत्संग का खोल किला।। गुरु रविदास मेरे दाता, हैं मेरे भाग्य विधाता। चंद तेरे ही गुण गाता मुझे तेरा नाम मिला।।

*437. इस मोह माया की धार में कोई बिरला संत तरेगा।।188।।

इस मोह माया की धार में कोई बिरला संत तरेगा।। रावण जैसे पंडित फहगे, बड़े बड़े ज्ञानी चंद भी बहगे।             दुर्वासा मझधार में क्यों जप तप और योग करेगा।। आशा तृष्णा ममता माया मिल पांचों संग जाल फैलाया।             पच्चीस के परिवार में तू फंदे बीच फंसेगा।। न्हावे तो नहा निर्मल जल में, मूरख आप फंसा दलदल में।                 गर्भ गुमानी कार में तेरा कैसे रूप खिलेगा।। अरे पगली तेरा ध्यान कड़े सै, कित ढूंढ है भगवान कड़े सै।               सत्संग शील विचार के कोई आवागमन तरेगा।

*424 लाडो मेंडकी हे, तू तो पानी में की रानी।। 183

लाडो मेंडकी हे तू तो पानी में की रानी।। कौवा तेरा भाई भतीजा चील लगे दोरानी। बगुला तेरा छोटा देवर उसको दे मुस्कानी।। अंधे ने एक मिल गया पिंडा, फिर उनके सूत लाए। इन गुरुओं की माला फेरे, खिल गए उनके बाने।। चार चरैया मंगल गांवें, गूंगा ताल मिलानी। फिर गधइयां नाचन लागे ऊंट विष्णुपद गानी।। कहे कबीर सुनो भाई साधो यह पद है निर्वाणी। इस पद की कोई करे खोजना मिट जाए आनी-जानी।।

*425 ठगियों की नगरी।। 183

ठगियों की नगरी फंस गया, तूं संभल_२ के चाल।। तूं बंद मुट्ठी आया था, सांसा रूपी पूंजी लाया था।                                 छिन छिन होता जा सै कंगाल।।     बीती ने क्यों रोवै अब भी व्यर्था क्यों खोवै।                                 बाकी बची हुई को संभाल।। पांच चोर पच्चीस लुटेरी, रात दिनों तेरै घालें घेरी।                                चोगीर्दे फैलाया जाल।। बेटे पोते और परिवारा, गोती नाती और संसारा।                                   अंत तेरा कोय न पूछे हाल।। वचन भरा था अब तो भुला, घूमै सै तूं फूला फूला।                                   अंत तेरा सिर पीटेगा काल।। टिकट नाम की लेलो भाई, शाम स्वेरे करो कमाई।                                    ये ही है अनमोला लाल।। दास कंवर हैं निपट अनाड़ी,सतगुरु ताराचंद जो करोसंभारी।                                  तुम बिन मेरा कौन हवाल।।

*382 गुरुजी दे दो आशीर्वाद खेती हम भी बोवेंगे।। 160

                   160 गुरु जी कुछ ऐसी कृपा करियो खेती हम भी बोवांगे।।  सत्संग का यो हल बनवाया, मेह की मेख धराई हे।                               बीज भजन का बोवांगे।। क्षमा छाप खेत पहुंचाई, दया जब रखवाली बिठाई।         वहां पर अमर पेड़ आया, अमरफल बैठे खावेंगे।। भीतर अमीकुंड बतलाया, पानी सुरता तला का आया।        गुरु ने तीन चलू भर प्याया, बिस्तरे पांचों धोवांगे।। ले लिया गुरु अपने का शरना, दुख-सुख सारा होगा भरना।                                          गुरुजी के आगे रोवांगे,

*368 अजब है यह दुनिया बाजार।।156

अजब है यह दुनिया बाजार। जिव जहां पर खरीदार है ईश्वर साहूकार।। कर्म तराजू रेन दिवस दो पल्ले तोले भार। पाप पुण्य के सौदे से ही होता है व्यापार।। बने दलाल फिरा करते हैं, कामादिक बटमार। किंतु बचते हैं जिनसे ज्ञानादिक पहरेदार।। मिलकर थेली स्वास रतन की संभाली सौ बार। कुछ तो माल खरीदा नगदी कुछ कर लिया उधार।। भर कर जीवन नाव चले आशा सरिता के पार। कहे बिंदु गर छिद्र हुआ तो डूबोगे मझधार।।

*319 दौड़ सब मेटी है रे।। 131

दौड़ सब मेटी है रे सत्य नाम सब ठोड़।। सच्चे गुरु से प्रीत लगी है दूजा रहा ना और। जहां देखूं वहां आप ही दीखे, सतगुरु है सिरमोर।। काम क्रोध लोभ मोह ममता, भरमगढ़ दिया तोड़। राम नाम का अमला हंस रहा, पकड़े हैं मान मरोड़।। शील संतोष ज्ञान दया भक्ति, ये सब में जी मोड़। उने उभारे सोई जन उभरे, आन फंसे थे कुठोड़।। घीसा संत करी गुरु कृपा खूब सुधारी ठोड़। जन जीता की गइया पकड़ के, खींचा अपनी ओर।।

*310 दर्श देख दिल में छिका।। 127

दर्श देख दिल में छीका संसार ना भावे। भव सागर भयभीत फेर साहब न लावे।। रोम-रोम रटना लगी महबूब सुहावे। गूंगे ने गुड़ खा लिया फिर किसे बतावे। गर्क हुए दीदार में कोई नहीं भावे। मानसरोवर मिल गए जहां हंसा जावे। प्रीतम की छवि कांच, क्या मस्तान कहावे। जो पहुंचे उस देश में, उल्टा नहीं आवे। अनहद उपजे गगन में संतो भगा गए। आगम धाम के चौक की साहब फरमावे।। न्युन नदी के रेत को नित्य शिखर चढ़ावे। अमृत के दरयाव में आपे मिल जावे।। पांच पच्चीस परपंच से मन पकड़ छुढ़ावे। सन्मुख बैठा नूर के अनुभव गुण गावे। सुने गर्ज ब्रह्मांड की जम दंड उठावे। अधर धार उतार के आसन से लावे।। स्वामी गुमानी दास जी पारस पर सावे। कंचन कर कर मोए को दीदार दिखावे। तेज पुंज जगमग करे सुखसागर पावे। नितानंद घर अमरपुर सतगुरु पहुंचावे।।

*308 दर्श बिन दुखन लागे नैन।। 126

दर्श बिन दुखन लागे नैन।। जबसे तुम बिछूड़े प्रभु मेरे, कबहुं न पायो चैन।। शब्द सुनत मेरी छतिया कांपे, मीठे लागे बैन।। बिरह व्यथा कासू कहूं सजनी, बह गई करवत एन।।

*290. तन मन के मिटें विकार जिसने पाया सत्संग सखी।। 120

तन मन के मीठे विकार जिसने पाया सत्संग सुखी।। बिन सत्संग भरम ना टूटे काल जाल से कैसे छूटे।                      वे लुटे अजब बहार।। जप तप तीर्थ मूर्ति पूजा इनमें ही सारा जग उलझा।                         रहा धोखे में संसार।। बड़े बड़े पापी तारे सत्संग से जिनका मन रंगा हरि के रंग से।                            हे उनका हुआ उद्धार।। सत्संग वाणी अमृत वर्षा घट में अंतर्यामी दरशा।                         हे उन्हें मिला करतार सखी।। सतगुरु ताराचंद की वाणी रूपचंद मिटी खींचातानी।                            हे खुल गया मोक्ष द्वार।।

*265. मेरे मन बस गयो री, वह नटवर नंद का लाल।।103

मेरे मन बस गयो री, वह नटवर नंद का लाल।। मैंने जग मस्तानी कहन लगा हे,            मेरे नीर नैन से बहन लगा हे।                         कौन जाने मेरा हाल।। घायल की गति घायल जाने,            मैं जाऊंगी जमुना किनारे।                            जहां रास रचावे गोपाल।। जब बाजे मेरे श्याम की मुरलिया,            छम छम नाचू में बांध के घुघरिया।                             उठेंगी झंकार।। मनमोहन मेरा श्याम सलोना,            कदे खेल कदे बन खिलौना।                          उसने मोह लिया सब संसार।। मैं सीता वो राम मेरा,            मैं मीरा वह घनश्याम मेरा।                           मैं भोली वह भोलेनाथ।। मोर मुकुट सिर पर चंदा,            मेरा ठाकुर वह मेरा गोविंदा।                           के कर लेगा जग चांडाल।। रामकिशन मन लाया करो,              रामनिवास गुण गाया करो।                           करे कृष्ण बेड़ा पार।।

*250 हरि भजन बिना सुख नाही रे ।96

हरि भजन बिना सुख नाही रे।                            नर क्यों व्यरथा भटकाई रे।। काशी गया दवारका जावे चार धाम तीर्थ कर आवे।                               मन की मैल ना जाई रे।। छाप तिलक बहू भांति लगाए सिर पर जट भभूति रमाए।                                   हिरदे शांति ना आई रे।। वेद पुराण पढ़ें बहुत भारी, खंडन मंडन उम्र गुजारी।                        वृथा लोक बडाई रे।। चार दिवस जग बीच निवासा ब्रह्मानंद छोड़ सब आशा।                          प्रभु चरणों चित लाई रे।।

*249 दीन दयाल भरोसे तेरे।। 96

दीन दयाल भरोसे तेरे। नाम जपो जी ऐसे ऐसे।। ध्रुव प्रहलाद जपो हरी जैसे।। जा तिस भावे, ता हुकम मनावे। इस बेड़े को पार लगावे।। गुरुप्रसाद ऐसी बुद्धि सामानी। चूक गई फिर आवन जानी।। कहे कबीर भज शारंगपानी। उरपार वार सब एक को दानी।।

*238 तेरी किस्मत माड़ी रे, राम नाम लगे खारा।। 91

तेरी किस्मत माडी रे, राम नाम लगे खारा।। आपे को तो सेठ बतावे, संता ने कह लंगवाड़ा। आगे यम की मार पड़े, तेरा करके बदन उघाडा।। जोड़ जोड़ धन भेला कर दिया, मार मार के दाड़ा। पाप का पैसा लगे पाप में, दवा लगे ना झाड़ा।। कदे माता कदे पीर मनावे, हुआ जान ने अखाडा। अगले जन्म में रीछ बनेगा, तेरा सिर फोड़े कोय गाड़ा।। कहे इंद्राण भज सतगुरु को, तेरा हो जागा निस्तारा। अब के तो नर पशु बराबर, आगे नर्क का खाड़ा।।

*229. अखियां हरी दर्शन की प्यासी।। 89

अखियां हरी दर्शन की प्यासी।। देखा चाहे नैन कमल को हरदम रहत उदासी। केसर तिलक मोतियन की माला वृंदावन के वासी।। नेह लगाए त्याग गए तृण सम, डाल गए गल फांसी।। काहू के मन की को जानत, लोगन के मन हांसी।। सूरदास प्रभु थारे दरस बिन, लेहूं करवट कासी।।

*213 हरि हर जप ले बारंबार अब तूने जन्म अमोलक पाया।। 83

हरि हर भज ले बारंबार, अब तूने जन्म अमोलक पाया।। काल बली तुझे कभी ना छोड़े, समझे क्यों ना गवार।। साहब संगी हैं बहुरंगी, सौ तने दिए बिसार। सोंटे की बाजी मत भूले, पड़ेगी यम की मार।। भाईबंध और कुटुंब कबीला यह सब सिर पर भार चलती बेरिया कोई ना तेरा बिन हरि सर्जन हार।। जगत भोग और मान बड़ाई मन से दूर उतार। चले सवेरा उतसी डेरा, कर ले मीत मुरार।। प्रेम नगर व्हिच पेंठ लगी है सौदा करो विचार। नित्यानंद महबूब गुमानी, कर निर्भय दीदार।।

*189. मैं ना लड़ी मेरा पिया डिगर गया जी।। 74

मैं ना लड़ी मेरा पिया डिगर गया जी।। आठकोटडी दस दरवाजा बेराना कौन सी शक्ल खुली रही।। ना मैं बोली ना बतलाइ, ओढ़ के दुपट्टा मैं तो सोती रही।। पांच जेठ पच्चीस  दो, बेरा ना कौन सी ने कही।। कहे कुमाली कबीरा थारीबाली इसी ब्याही से कुंवारी भली।।

*172 कदे बाप के कदे पति के।।68।।

कदे बाप के कदे पति के न्यू के पार पड़े सजनी।            मेर तेर ने तोड़ बगा दे,करदे न लाज परे सजनी।। कदे अंदर को कदे बाहर को एक जगह पे डटती ना। एक जगह पे डटे बिना तनै पिया की मालूम पटती ना। पियाकी मालूम पटे बिना तूं, जग से न्यारी छंटती ना। जग से न्यारी छटे बिना तेरी, लाख चौरासी कट ती ना।           अविनाशी है पति तेरा, कदे जामे नही मरे सजनी।।           किस मूर्ख ने बहका दई तूं, विधवा हुई फिरे सजनी।। चाचा ताऊ भाई भतीजे,ये तनै जाने देंगे ना। जावन की तूं बात करे, तनै कदम उठाने देंगे ना। कदम उठाना दूर रहा तने जिक्र चलाने देंगे ना जिक्र चलाना दूर रहा, तनै खत पहुंचाने देंगे ना।           दोनों तरफ की कर चिंता तूं, खाली कष्ट भरे सजनी।           तेरे कर्म का रोग भोग, ओरा के शीश धरे सजनी।। घर कुनबे के मोह में फंस के, देश पिया के जाती ना। देश पिया के जाए बिना, तनै पिया की राह मन भाती ना। पिया की राह मन भाए बिना, तेरै रमझ समझ में आती ना। रमझसमझ को पाए बिना तूं, मुक्ति पद को पाती ना।            जाल भ्रम फंस के न तूं, कोन्या पार तरे सजनी।।           भवसागर से पार हुए बिन, कोन्या काज सरै सजनी।। बिना

*123 गुरु के बिना सूना हमारा देश।।50।।

दाता के बिना सूना हमारा देश।। है कोई ऐसा जो पिया से मिला दे।                   तन मन धन करूं पेश।। प्रीतम प्यारे दर्श दिखा जा।                   तुम बिन बहुत क्लेश।। अवधि बदी थी आज नहीं आए।                    रूपा हो गए केस।। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।                    तज गए नगर नरेश।।

*121 छोड़ मत जाइयो जी महाराज, मोहे वैरागन करके।। 49

छोड़ मत जाइयो जी महाराज, मोहे वैरागन करके।।      म्हारे सद्गुरु ने ताल खुदाया, खूब खुदाई करके।      नुगरे-२ खड़े लखावैं, सुगरे पी गए भर के।। म्हारे सद्गुरु ने हाथी पाला, प्यार मुहब्बत करके। कहे सुने की एक न मानी, चले सबन से डर के।।      म्हारे सद्गुरु ने बाग लगाया, सींचा अमृत जल से।      डाल-२पे मेवा लाग रही, देखी नैनां भर के। म्हारे सद्गुरु ने महल चिनाया, झाँखी मोरी धर के। नो दरवाजे सन्मुख दिखें, दसवां दिखै पढ़ के।।      दूर देश एक शहर बसत है, जो कोय देखै मर के।     मीरा दासी पार उतर गई, गुरू के चरण पकड़ के।।

*120 ऐसा ऐसा खयाल विचारों भाई।। 49

                               49 ऐसा-२ख्यालविचारों भाईसाधो, कौनपुरूषकौननारी जी।        या को भेद बता ब्रह्मचारी जी।। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव शंकर, तीनों ही म्हारा जाया तीनों की मैं लागूँ स्त्री, तीनों को गोद खिलाया।।         नहीं परणी नहीं क्वांरी, मैं बेटा जन जन हारी।। काली मूँड़ का एक न छोड़ा, फिर भी अगन कंवारी।। सुसरो म्हारो बालक बौरो, सासु अकन कुंवारी। परणो म्हारो झूलै पालना, मैं सूं झुलावनहारी।। पंडता घर पन्डतानी बाजूं, साधां घर में चेली। मुसलमान घर बाजूं बीनणी, कलमा पढ़ पढ़ हारी।। कह कबीर सुनो भई साधो, ये पद है निर्वाणी। जो इस पद की करे खोजना, वही पुरूष हम नारी।। 

*119 आया था नर भजन करण को खा गया गलती।। 42

आया था नर भजन करण को खा गया गलती।। धरमराज तेरा लेखा मांगे बंदे रती रती। बालापन में मन खेलन में माता की गोदी।। जिसने नर्क छुड़ाया उसने, भूला फिरे कती। नरक कुंड से निकल के तेरी फिर गई और मति।। आई जवानी रंग छा गया, फेर फिर गई और मति। विषयों के संग भोग भोग , तने ध्यान करा ना कती।। देख बुढापा रोवन लागया, ना चलता जोर कती। फिर करता हाहाकार जीव, मेरी कैसे हो गति।। साहेब दूर नहीं है दूर, बनो शब्द सती। कहे ब्रह्मानंद सत्य आनंद बोलो, तज दो झूठ कति।।

*103. दया सिंधु दातार।। 35

दया सिंधु दातार मदद कर मेरी।       मैं अबला बल हीन ओट लई तेरी।। कैसे गुण तुम गाऊं, काल लेई घेरी। तुम समर्थ दीनदयाल काट जम बेड़ी।। कोऊ साहू नहीं, सकल जगत  वेरी। कैसे करूं भव पार धार अति गहरी।। मैं आया तुम दरबार टेर सुनो मेरी। मोहे अपने चरण लगाओ करी क्यों देरी।। मैं अवगुण की खान चरण की चेरी। मेरे अवगुण करके माफ मिटा भव फेरी।। साहब खूबी राम करो अब, मेहर सवेरी। छूटे जग जंजाल, यह विप्त घनेरी।।

*62 लाग्या रहिए प्रेमी मेरा भाई रे. 21

लाग्या रहिए प्रेमी मेरे भाई रे।               तेरी बनत बनत बन जाई रे।। रंका के  लागी बंका के लागी लागी मीराबई रे।। नामदेव के ऐसी लागी, हरि ने छान छपाई रे।। सेन भगत के ऐसी लागी, आप बने हरि नाई रे।। बलख बुखारे के ऐसी लागी, छोड़ चले बादशाही रे।। पलटू दास के ऐसी लागी, लागी तो और निभाई रे।।

*60 पाया है अब पाया है म्हारे सतगुरु भेद बताया है।। ब्रह्मानंद।। 20

पाया है अब पाया है म्हारे सतगुरु भेद बताया है।। सोना जेवर घड़े सुनारा, भांति भांति सब न्यारा न्यारा। जब मैं बेचन गई बाजारा, भाव बराबर आया है।। चतुर जुलाहे बनिया ताना बुनिया वस्त्र बहुत सुहाना। एक ही ताना एक ही बाना, सब में सूत लगाया है।। मिट्टी चाक कुम्हार फिरावे, बर्तन नाना भांति बनावे। किसम किसम के रंग लगावे एक से एक सजाया है।। सुर नर मुनि जन खग जीव जहाना,                                   ऊंच-नीच सब भेद मिटाना। ब्रह्मानंद स्वरूप पहचाना, सब घट एक समाया है।।

*6 गुरु जी थारी महिमा न्यारी है।। २

गुरु जी थारी महिमा न्यारी है। नेति नेति कहे वेद की बोनी हारी है।। अंतर सृष्टि रखते गुरुवर ऐसे तप धारी हैं। जिज्ञासु है तू अवतरे गुरु कल्याणकारी है।। माया ठगनी जाल बिछाया, ठगी सृष्टि सारी है। गुरु तत्व तक पहुंचे नहीं वह सो में खिलाड़ी है।। ज्ञाता ज्ञेय अज्ञान अगम से यो परसे पारी है। तत्व वशी महायज्ञ गुरु फुलवारी है।। ब्रह्म गुरु का बना है मंदिर तत्व रुखारी हैं। ओहम सोहम का मार्ग सीधा निरंतर जारी है।। गुरु आत्मानंद अखंड सुख स्वामी अब मर्जी थारी है। भूमानंद की सुनो विनती चरणों का पुजारी है।।

वेद प्रकाश शर्मा।।

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Book Hub Saturday, January 9, 2021       Ved Parkash Sharma। list   f no vel । ।       वेद प्रकाश शर्मा जी का जन्म 10 जून 1955 को हुआ था।आग के बेटे उनका प्रथम उपन्यास था जिसके मुखपृष्ठ पर वेद प्रकाश शर्मा का पूरा नाम छापा गया। उसी साल ज्योति प्रकाशन और माधुरी प्रकाशन दोनों ने उनके नाम के साथ  फोटो भी छापना शुरू कर दिया। कैदी नं. 100 उनका सौवाँ उपन्यास था जिसकी बकी 2,50,000 प्रतियां छपने के दावा किया जाता है। इसके बाद उन्होंने 1985 में खुद अपना प्रकाशन शुरू किया: तुलसी पॉकेट बुक्स। उनके कुल 176 उन्यासों में से 70 इसी ने छापे हैं. लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1993 में वर्दी वाला गुंडा से मिली जिसके बारे में दावा है कि 15 लाख प्रतियां पहली बार छापी गई थीं।  1985 में उनके उपन्यास "बहू मांगे इंसाफ" पर शशिलाल नायर के निर्देशन में "बहू की आवाज" फिल्म बनी। इसके दस साल बाद सबसे बड़ा खिलाड़ी (उपन्यास लल्लू ) और 1999 में इंटरनेशनल खिलाड़ी बनी। मजेदार बात यह कि उन्होंने बाद की दो फिल्मों का स्क्रीनप्ले और डायलॉग खुद लिखे लेकिन सिर्फ फिल्म के लिए कोई कहानी कभी नहीं लिखी। बाल