*584. मने अब के बचाले मेरी मां।।292।।

मैंने अब के बचाले मेरी मां बटेऊ आया लेवण ने।

पांच कोटडी दस दरवाजा इसी महल के मां।
ल्हूकती छिपती में फिरू हे, हरगिज मानेंगे नाएं।

सावन के दिन सोलह रह गए तीजा के दिन चार।
जी कर रहा है झूलन ने, सखियों में से घना प्यार।।

हाथ जोड़कर कहे बुढ़िया सुनो बटेऊ बात।
मारी बेटी से घनी लाडली कुछ दिन कर दो न टाल।

ठाडा होके कहे बटेऊ सुनो बूढ़ली बात।
मारे गुरु का यही हुक्म है हरगिज़ छोड़ेंगे नाए।।

पांच भाइयों की बहन लाडली कोई ना चला साथ।
कह कबीर सुनो भाई साधो मलते रह गए हाथ।।

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