Posts

Showing posts from April, 2023

क्रिकेट मैच

IPL 2023: इस बार आईपीएल 20 मार्च 2023 से शुरू होगा 1 जून 2023 को इसका फाइनल खेला जाएगा। इस क्रिकेट लेख में आपको IPL 2023 का Schedule, शुरुआत Date, खेलने की जगह (Venue) PDF में Download कर सकेंगे और देख सकेंगे। Contents 1 Tata IPL 16 2023 2 IPL 2023 Teams Name 3 आईपीएल 2023 शेड्यूल | IPL 2023 Schedule 4 वे Stadium जिनमें IPL 2023 के मैच खेले जाएंगे? 5 यह भी पढ़े Tata IPL 16 2023 लीग का नाम (League Name) Indian Premier League 16 आईपीएल प्रारंभ तिथि (Start Date) 20 मार्च 2023 मेजबान देश (Country) भारत आयोजनकर्ता भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) आधिकारिक वेबसाइट। (Official Website) https://www.iplt20.com टीमें 10 कुल मैच 74 गत वर्ष विजेता गुजरात टाइटंस अगर आप मैच कौन जीतेगा की भविष्यवाणी और ड्रीम 11 और फैंटसी ऐप के लिए टीम और क्रिकेट से संबंधित लेटेस्ट खबरों के लिए ज्वाइन करें हमारा क्रिकेट इंडिया टेलीग्राम चैनल। टेलीग्राम चैनल ज्वाइन करें IPL 2023 Teams Name IPL के 16वें संस्करण में इस बार 10 टीमें खेलेंगी जिनका नाम आप नीचे पढ़ सकते है। क्रम संख्या टीम का नाम 1 चेन्नई सुपर किंग्स (CSK)

*252. मैं तो प्रभु तुम चरनन को दास।।97

मैं तो प्रभु तुम चरनन को दास।। दीन दयाल दया के सागर सकल भुवन प्रकाश।। सब जग कारण भव भय हारण घट घट बीच निवास।। करुणाकर मोहे दर्शन दीजे पूर्ण कीजे आश।। ब्रह्मानंद शरण मैं तुम्हारी, मेटों यम की त्रास।।

*468. नाथ तेरी माया जाल बिछाया 199

नाथ तेरी माया जाल बिछाया, इसमें सब जग फिरे भुलाया।। कर निवास नो मास गर्भ में फिर भू तल में आया। खानपान विषय रस भोगन मात-पिता सिखलाया।। घर में सुंदर नारी मनोहर देख-देख ललचाया। सुन सुन मीठी बात सुतन की मोह पास में फसाया।। ग्रह काजन में निशदिन फिरते, सबरो जन्म बिताया। आशा प्रबल भव मन भीतर निर्बल हो गई काया।। पाप पुण्य संचय कर पुनः पुनः, स्वर्ग नर्क भटकाया। ब्रह्मानंद कृपा बिन तुम्हारी मोक्ष नहीं कोई पाया।।

*579 काल गति बलवान साधु काल गति बलवान 279।।

काल गति बलवान साधु काल गति बलवान।। बड़े-बड़े पृथ्वी के राजा प्रियव्रत सगर समान रे। सभी मिले धरने के माही रहा ना एक निशान रे।। अर्जुन भीम सेन से जोधा जिनके अचरज बाण रे। सो भी कॉल किए वश अपने, छूटा सब अभिमान रे।। योगी पीर पैगंबर भारे, साधक सिद्ध सुजान रे। जीत सके नहीं कॉल बली को छोड़ गए सब प्राण रे।। इस दुनिया में रहना ना ही यह निश्चय कर जान रे। ब्रह्मानंद छोड़ सब चिंता सुमरो श्री भगवान रे।।

*311 दिला दे भीख दर्शन की।।128।।

दिला दे दर्शन की प्रभु तेरा पुजारी हूं।। चलकर दूर दर्शन को तेरे दरबार में आया। खड़ा हूं द्वार पर दिल में तेरी आस क हारी हूं।। फिरूं संसार चक्कर में भटकता रात दिन व्यर्था। बिना दीदार के तेरे मैं हमेशा दुखारी हूं।। तू ही मात पिता बंधु तू ही मेरा सहायक है। तेरी दासों के दासन का, चरण का सेवा कारी हू।। भरा हूं पाप दोसौ से, क्षमा कर भूल की मेरी। वह ब्रह्मानंद सुन विनती, शरण में मैं तुम्हारी हूं।।

*186 दिखा दे यार अब मुखड़ा घूंघट में क्यों छुपाया है 73

दिखा दे यार अब मुखड़ा घुंघट में क्यों छुपाया है।। हुस्न तेरे का है सानी ना दूजा बीच दुनिया में। करूं क्या मैं सिफन तेरी चांद मन में लजाया है।। नजारा प्रेम का भर के लगाया है जिगर मेरे। जुदाई का अभी पर्दा बीच में क्यों गिराया है।। तेरे मिलने की खातिर को हजारों लोग तरसावें। खुले किस्मत बड़ी जिसकी वही दीदार पाया है।। नहीं है आश इस तन की न धन की लालसा मुझको। यो ब्रह्मानंद दे दर्शन यही दिल में समाया है।।

*69 सतगुरु तेरे चरणों की गर धूल जो मिल जाए।। 23

सतगुरु तेरे चरणों की, गर धूल जो मिल जाए। सच कहता हूं दाता, मेरी तकदीर बदल जाए।। कहते हैं तेरी रहमत, दिन रात बरसती है। एक बूंद जो मिल जाए, मन की कली खिल जाए।। यह मन बड़ा चंचल है, कैसे इसे समझाऊं। जितना इसे समझाऊं, उतना ही मचल जाए।। मेहर की नजर रखना, नजरों से गिराना ना। नजरों से जो गिर जाए, मुश्किल है संभल पाए।।

*105 भजन बिन भवजल कौन तरे 35

भजन बिन भवजल कौन तरे।। काम क्रोध मद लोभ बसत हैं मार्ग में पकड़े।। कुच कंचन दोऊ घेर पड़त हैं सब जग डूब मरे।। यज्ञ दान तप निर्मल नौका अधविच टूट पड़े।। ब्रह्मानंद करो हरि सुमिरन सब दुख दूर रें।।

*312 दर्शन बिन जियरा तरसे रे।।128

दर्शन बिन जियरा तरसे रे मेरे नैन धार जल बरसे रे।। मैं पापन अवगुण की राशि कैसे करें प्रभु निजी की दासी।                                       काया कपट बरस रे।। पतित उदाहरण नाम तुम्हारा दीजे मुझको चरण सहारा।                                    देखो दया नजर से रे।। शरण पड़ी में आए तुम्हारी माफ करो अब भूल हमारी।                                 भूजा गहो निज कर से रे।। तुम बिन और ना पालक मेरा ब्रह्मानंद भरोसा तेरा।                                    विनती करूं जिगर से रे।।

*66. नजरों से देख प्यारे ईश्वर है पास तेरे 22

नजरो से देख प्यारे ईश्वर है पास तेरे।। क्या ढूंढता है वन में तन में कभी ना हेरे।। पूर्व को कोई जावे पश्चिम दिशा को धावे। प्रभु का नाम भेद पावे व्यर्थ फिरे है फेरे।। भूतल आकाश माही उसका मुकाम नाही। दुनिया रही भुलाई जाने नहीं है मेरे।। वह है सब ठिकाने घट घट की बात जाने। उसको जो दूर माने वह मूढ है घनेरे।। जग में जगह ना कोई जहां ईश्वर ना होई। ब्रह्मानंद जान सोई, सुन सत्य वाक्य मेरे।।

*63 काहे दूर जाए बंदे ईश्वर तेरे पास में। 21

काहे दूर जाए बंदे ईश्वर तेरे पास में।। जमीन आसमान माही उसका मुकाम नाही। परकट निशान नाहीं, जल थल वास में।। जंगल पहाड़ भारे नदिया समुंदर सारे। देख ले निहार प्यारे मिले ना तलाश में।। नाभि में सौगंध भारी, फिरे मृग दूर चारी। जाने बिना भेद भारी, सूंघत है घास में।। फूलों में बॉस जैसे घट घट में वास ऐसे। ब्रह्मानंद खास ऐसे, तन प्रकाश में।।

*313 हरि दर्शन कि मैं प्यासी रे।।128

हरी दर्शन की मैं प्यासी रे।                                   मेरी सुनिए अरज अविनाशी रे।। निर्गुण से मोहे शगुन सुहावे सुर नर मुनि गण जाम लगावे।                                        भक्तन के सुख राशि रे।। नहीं गोकुल नहीं मथुरा जाऊं अड़सठ तीरथ मैं नहीं जाऊं।                                       चरण कमल के दासी रे।। जब तक योग नहीं बन आवे कैसे प्रभु के मन भावे।                                 करो ना मुझे निरासी रे।। करुणाकर मोहे दर्शन दीजिए ब्रह्मानंद शरण में लीजे                               काटो यम की फांसी रे।।

*104. भजन बिना वृथ जन्म गयो 256।। 35

भजन बिना बिरथा जन्म गयो।। बाल पणा सब खेल गवाया जीवन काम बहयो। बूढ़ा हुआ रोग सब लागे पर बस आप भयों।। जप तप तीरथ दान ना किन्हा, ना हरी नाम लियो। ब्रह्मानंद बिना प्रभु सुमिरन जाकर नर्क पयो।।

*652. बरज रही में इन विषयन से ।।27।।

बरज रही मैं इन विषयों से। मान कही मन मूरख मेरी।। जनम जनम के बैरी तेरे चोरासी लख फेरें फेरी।। यह मीठे फल जहर भरे हैं सुख थोड़ा और विपदा घनेरी।। मृगतृष्णा जल देख लुभाया प्यास मिटे नहीं कब हूं तेरी।। ब्रह्मानंद संग तज इनका पावे मोक्ष लगे नहीं देरी।।

*651 अब तो तजो नर रति विषयन की 197।।

अब तो तजो नर रति विषयन की।।                       करले फिकर परलोक गमन की।। बालपणा जिम गई जवानी सुंदर काया भई प्राणी।                      तदपी मिटे नहीं लालच मनकी।। जरा दूत यमराज पठाया रोग भोग संघ लेकर आया।                    मूर्ख आशा करें क्या तन की।। स्वार्थ ऐड करें सब प्रीति सकल जगत की है यह रीति।                  छोड़ ममता धन धाम सुतन की।। ब्रह्मानंद वचन सुन लीजे निशदिन हरिचरण चित दीजे।                   पाश कट तेरी जन्म मरण की।।

*545 क्यों सोता पैर पसार के तेरे सिर पर मौत खड़ी है।244।

क्यों सोता पैर पसार रे तेरे सिर पर मौत खड़ी है।। आज बात तो कहता क्या कि थोड़ा सा दिन रह गया बाकी। कोड़ी टका पास नहीं बाकी, अब जल्दी आ पल्ला झाड़ के                               तेरी किस ने अकल हड़ी है।। भवसागर एक अगम अपारा, कैसे नाव लगे उस पारा। चाहे करले सोच विचारा, यहां ना केवट ना नाउ है।                                तब बीते घड़ी-घड़ी है।। आगे विकट मिलेगी झाड़ी, कैसे राह कटे तेरी सारी। मत भूलना निपट अनाड़ी, तनिक रखियो पैर संभाल के।                               गांठ क्या नशे गेल भरी है।। कह कबीर जब मांगे लेखा, मानुष जन्म नहीं मिलने का। करनी घटी तो यम घर देखा, तब दियो नर्क में खेल के।                               मुझे यम के मार पड़ी है।।

*102 राम रसायन पाई जिन्होंने राम रसायन पाई रे।। 34

राम रसायन पाई जिन्होंने राम रसायन पाई रे।। उनके टोटा हुआ ना होवे, फिर गए राम दुहाई रे।। अन धन का कोई पार ना पावे, दिन दिन होत सवाई रे।। सब सेठों में सेठ वही, का राजा धनपत राई रे। सब देवों में देव वही, जो जिसकी मग पे छाइ रे।। हिंदु कहै म्हारा राम बड़ा है मुसलमान खुदाई रे। ईसाई कहे मेरा ईशा बड़ा है बढ़ा दिया बनाई रे।। बहुत कहे यह धर्म बड़ा है, लखता लखा ना जाई रे। वेद कितेब भागवत गीता, पढ़-पढ़ धक्के खाई रे।। घीसा संत रसायन बख्से, जीता के घट माही रे। जो रसायन से छीका चाहवे, तन मन धन नटवाई रे।।

*369 साधु भाई सतगुरु है व्यापारी।। 156

                              156 साधु भाई सतगुरु है व्यापारी।। हीरा मोती बालद भरया और लाल जवाहरी। सत्संग हाट लगी है भारी दुकान हैं न्यारी न्यारी।।  सतगुरु होकर सौदा बेचे लेवे जो आज्ञाकारी। मायावती के हाथ ना आवे पचपच मरा गवारी।। तन मन धन अर्पण करके रहे वचन आधारी। सोहंग शब्द धार निज घट में, माला है मनिहारी।। गोकुल स्वामी सतगुरु देवा धरिया रूप साकारी। लादू दास दास गुरु की चरण कमल बलिहारी।।

*500 मुसाफिर क्या सोवे अब जाग 228।।

मुसाफिर क्या सोवे अब जाग।। इन वृक्षों की स्थिर नहीं छाया देख लुभाया बाग। इस सराय में रहना नहीं क्यों करता है राग।। यह सब चोर लगे संग तेरे इनसे बचकर भाग।। ब्रह्मानंद देर मत कीजे, अपने मार्ग लाग।।

*70. कोई गावे है गुरु की महिमा सार।। 23

कोई गावे गुरु की महिमा सार।। दया धार गुरु जग में आए, तब ही किया जीव उपकार।। निजघर का उने भेद सुनाया, राधास्वामी धामअगम के पार।। घर चलने की जुगत बताइ, सूरत शब्द का मार्ग सार।। काल देश से जीव निकाला, काट दिया माया का जाल।। कर्म भर्म से लिया बचाई, चरण शरण दई कृपा धार।। कोटी जन्म से भटका खाया, हुआ नहीं कभी जीव उबार।। जब सतगुरु मोहे मिले भाग से, तब ही गई भवसागर पार।। दिन दिन शुकराना करू उनका,राधास्वामीप्यारेपतितउबार।।

*566 पछतायेगा पछताएगा फिर बेला हाथ नहीं आएगा 285।।

पछतावेगा पछतावेगा, फिर बेला हाथ न आवेगा।। रतन अमोलक मिला ये भारी, कांच समझकर दीन्हा डारी।         पीछे खोजत फिरे अनाड़ी फिर कभी नहीं पावेगा।। नदी किनारे बाग लगाया गाफिल सोवे ठंडी छाया।        चुनचुन चिड़िया सब फल खाया खाली खेत रहा बेगा।। रेते का तु महल बनावे कर कर यतन सामान जनावे।         पल में बरखा आन गिरावे, हाथ मसल रह जावेगा।। लगा बाजार नगर के माही सब ही वस्तु मिले सुखदाई।।        ब्रह्मानंद खरीदो भाई, बेगा दुकान उठावेगा।।

*150 माई री मैंने लिया रमैया मोल।। 59

माई री मैंने लिया रमैया मॉल।। ना वह हलका ना वह भारी, लिया तराजू तोल।। कोई कहे सस्ता कोई कहे महंगा, लिया प्रेम के मॉल।। कोई कहे घर में कोई कहे बन में, घट घट में रहा बोल।। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, अब के पर्दा खोल।।

*481 होली के खेल में गुमान ना कीजे।। 213

होली के खेल में गुमान ना कीजे ।। जाओजी जाओ पियाघर अपने, तुम्हारो हसन मेरे तन छीजें। पहले मारे प्रीत पिचकारी, खेल कहां अपनी बर खिंजे।। गारे अबीर अपने को रखें, ऐसे लगर को कोन पतीजे।। गागर भरे भिगोवत ओरन, मर्द बंधु जो सन्मुख भीगे।। रे चित्चोर कहां मुंह मोड़े, लाख कहो कारो नहीं रीझे।। आज हूं समझ महबूब गुमानी, नित्यानंद को भगवा दीजे।।

*546 खबरदार रहना रे मेरे भाई।।+237।। 244

यहां जमकी उड़े हंकवाई खबरदार रहना रे मेरे भाई।। सतगुरु दिन्ना माल खजाना लाखों जतन कराई। पाव रती धन खर्च ना होवे, दिन दिन बढे सवाई।। इस प्रभु को भूल ना जाना निशदिन करो कमाई। सत्यनाम की टोपी लगा ले, सत्य का बने सिपाही।। आठों पहर झूठ मत बोलो ना करो निंदा पराई। नेम धर्म तोसे बन नहीं जाए पल मत बांधो बुराई।। धन दौलत थारा माल खजाना, साथ नहीं जाई। जब काल का डंका बाजे खोज खबर ना पाई।। तन बंदूक सूरत की गोली यम पर करो चढ़ाई। कह कबीर सुनो भाई साधो यम की फौज भगाई।।

267 अब तुम दया करो महादेव जी।। 104

अब तुम दया करो महादेव जी कैलाश बसाने वाले।। तन अंग भभूति रमाई सिर ऊपर जटा सुहाई। गिरिराज सुता सुखदाई जी, निज अंग बिठाने वाले।। कानन में कुंडल राजे मस्तक में चंद्र विराजे। तन नाग विभूषण साजे जी, मृग  छाल बिछाने वाले।। नरमुंड माल गल धारी, कर में त्रिशूल भयकारी। नंदीगण पीठ सवारी जी, डमरू के बजाने वाले।। गंगा नदी वेग अपारा, जब नभ से उतरी धारा। तुम जटा बीच में डारा जी जल बूंद बनाने वाले।। जब रावण ने तप किंहा, तब मनोवांछित फल दीन्हा। तुम तीन लोक पति किन्हा जी, सब राज दिलाने वाले।। तुम कामदेव तन जारा, त्रिपुरासुर मार विडारा। सब दक्ष यज्ञ संहारा जी, गण सेन पटाने वाले।। मुनि मारकंडे तपधारी, जब आयो शरण तुम्हारी। यम पास पलक में टारी जी, तन अमर कराने वाले।। तुम दीनबंधु व्रत धारी, निज भक्तन के हितकारी। ब्रह्मानंद सकल भय हारि जी, सुखधाम पहुंचाने वाले।।

*300 सतसंगत जग सार साधु सत्संगति जग सार रे 123

सतसंगत जग सार साधु सतसंगत जग सार रे।। काशी नहाए मथुरा नहाए-नहाए हरिद्वार रे। चार धाम तीर्थ फिर आए मन का नहीं सुधार रे।। वन में जाए किया तप भारी, काया कष्ट अपार रे। इंद्रिय जीत करी वश अपने, हृदय नहीं विचार रे।।

*266. ईश्वर तेरे दरबार की महिमा अपार है।। 103

ईश्वर तेरे दरबार की महिमा अपार है। बंदा ना सके जान तेरा क्या विचार है।। पृथ्वी जल के बीच में किस आश्रय खड़ी। सूरज में चांद घूमते किसके आधार है।। सागर नदी आंधी से सूरज डरे नहीं। चलती हवा दिन रात में जीवन आधार है।। फल फूल अन्न साग कंद मूल फल रस भरे। रत दूध दही खानपान की बहार है।। पीता है तुम दयालु तेरे बाल हम सभी। ब्रह्मानंद तुझे धन्यवाद, बार-बार है।।

*301 सतसंगत एक अमर जड़ी है।। 124

सतसंगत एक अमर जड़ी है।। जो कोई आवे सतसंगत में उनको खबर पड़ी है।। नरसिंह जी सत्संग की पीपा जी की नाम पर बात अड़ी है। छप्पन करोड को भरो मालडा, आया आप हरि है।। पहलाद सत्संग की श्रीपद की, नाम पर बात अड़ी है। खंब पाड़ हिरणाकुश मारा, आया आप हरि है।। लोहा सत्संग की काट की जन्म जहाज तरी है। कहत कबीर सुनो भाई साधो, ना तो बात अड़ी है।।

*650 मनवा रे तज विषयों का संग 290।।

मनवा रे तज विषयों का संग।। क्षणभंगुर सब वस्तु जगत में, ज्यों जल बीच तरंग।। मृगतृष्णा जल क्यों भटकावे, जैसे मूढ कुरंग।। पाप मैल भरा तन माही कैसे चढेगा रंग।। ब्रह्मानंद सुमर जगदीश्वर, होय सकल भव रंग।।

*243 अब कैसे छूटे राम धुन लागी।। 93

अब कैसे छूटे राम धुन लागी।। प्रभु तुम चंदन हम पानी, जा की अंग-अंग बास समानी।। प्रभु जी तुम बादल हम मोरा, जैसे चितवन चंद चकोरा।। प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जा की जोत जले दिन राती।। प्रभु जी तुम मोती हम धागा, जैसे सोने बीच सुहागा।। प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करें रविदासा।।

*843 मुझे क्या काम दुनिया से विरह में मैं दीवाना हूं 88।।

मुझे क्या काम दुनिया से, विरह में मैं दीवाना हूं। प्यार की खोज में निशदिन फिरा जंगल पहाड़ों में।          पता मुझको नहीं पाया बहुत दिन से हिराना हूं।। यह जब नेम तप भारी उसे मिलने के लालच में।         मिला दर्शन नहीं मुझको गमि में मैं समाना हूं।।

*344 सतगुरु खोजो री प्यारी जगत में दुर्लभ रतन यही।।141

सतगुरु खोजो रे प्यारी जगत में दुर्लभ रतन यही।। जिन पर मेहर दया सतगुरु की खून को दर्श दई।। दर्श पाए सतलोक सिधारी, सतनाम पद कीन सही।। सही नाम पाया सतगुरु से, बिना सतगुरु सब जीव बही। जीव पड़े चोरासी भरमे, खान-पान मध्यमान लहीं।। मान मनी का रोग पसरिया, बड़े बने जिनमार सही। छोटा रहे चित् से अंतर, शब्द माही तब सूरत गई।। शब्द बिना सारा जग अंधा, बिन सतगुरु सब भरम मई। शब्द भेद और शब्द कमाई, जिन जिन किनहीं सार लहीं।। शब्द रता सतगुरु पहचानो, हम यह पूरा पता दई। खोलो आंख निकट ही देखो, अब क्या खोलूं खोल कहीं।। आगे भाग तुम्हारा प्यारी, नेह परखो तो जून रही।। कहना था सोई कह डाला, राधास्वामी खूब कही।।

*783 जग सपने की माया साधो।। 372।।

जग सपने की माया साधु जग सपने की माया।। सोच विचार नर दिल अपने में,          कौन है तू किस कारण इस दुनिया में।                           मनुष्य तन पाया है।। नारी सुत बांधव मेरा है।नहीं तेरा है नहीं मेरा है।        चिड़िया रैन बसेरा है अपने-अपने कर्म वश।                           कोई जावत है कोई आया है।। घर मंदिर माल खजाना है। 2 दिन का यहां ठहराना है।         फिर आखिर तुझको जाना है कर अपने कर से।                           शुभ कार्य जो परलोक सहाया है।। चेहरे की सुंदरताई है थोड़े दिन की रुसवाई ह फिर खाक में खाक मिलाई है सुमिरन कर हरी का निशदिन।                          दिन दिन छीजत यह काया है।। यह झूठा सब संसारा है माया ने जाल पसारा है।         क्यों फूला फिरे गवारा है ब्रह्मानंद रूप बिन।                          जाने जन्म मरण भटकाया है।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35

गुरु बिन कौन सहाई जग में गुरु बिन कौन सहाई।। मात-पिता सुत बांधव नारी स्वार्थ के सब भाई रे। परमार्थ का बंद जगत में सतगुरु बंद छुड़ाई रे।। भवसागर जल दुस्तर भारी ग्रह बसें दुखदाई रे। गुरु खेवरिय पार लगावे ज्ञान जहाज बठाइ रे।। जनम जनम का मेट अंधेरा, संशय शक्ल नशाई रे। पारब्रह्म परमेश्वर पूर्ण घट, में दे दरसाई रे।। गुरु के वचन धार ह्रदय में भाव भक्ति लाई रे। ब्रह्मानंद करो नित्य सेवा, मोक्ष पदार्थ पाइ रे।।

*536 जाग रे नर जाग प्यारे अब तो गाफिल जाग रे ।।241

जाग रे नर जाग प्यारे अब तो गाफिल जाग रे।। सपन जैसी जान रचना खिला ये दुनिया बाग रे। देखते मुरझाए जावे, क्या करता है राग रे।। काम क्रोध अहंकार तृष्णा सब इनको त्याग रें।। ध्यान धर जगदीश का नित्य मोड़ मन की बाग रे।। जाल माया का बिछा है दूर इससे भाग रे।। जान ले निज रूप तेरा गुरुचरण अनुराग रे।। नासमझ कलिकाल में नहीं दान जप तप योग रे। ब्रह्मानंद भजन बिना सब, व्यर्थ योग विराग रे।।

*101 ऐसे गुरु मूर्त की बलिहारी। । 34

ऐसे गुरु मूरत की बलिहारी। जिने डूबत हंस उभारी।। गुरु दाता गुरु आप विधाता, परमार्थ उपकारी। आनंद रूप स्वरूप दयानिधि, पतित अनेक उबारी।। गुरु महिमा नहीं कह सकते, शारदा शेष सहस मुख हारी। सो महिमा मैं कैसे बरनूं, चक नहीं चलती हमारी।। चकमक पत्थर ही रहे एक संग उठत नहीं अंगारी। बिना दया संजोग गुरु के, घट में ना हो उजियारी।। जो माया प्रचंड चहू दिशी, दस अवतार धरा री। सो माया गुरु मुरत आगे, जुग-जुग आज्ञाकारी। सम्मुख लड़े सो सूर कहावे, अगम पंथ पग धारी। कायर होय बचाव नहीं है, काल कभी नहीं छाड़ी।। जीती बाजी अब मत हारो यह अवसर तेरा भारी कह कबीर गावे नाद घट भीतर, सोई सुघड़ खिलारी।।

*565 यह दुनिया जाए कयाम नहीं।। 266

यह दुनिया जाए कयाम नहीं कुछ रोज में यहां से जाना है। क्यों माल खजाना जमा किया किस वास्ते तंबू ताना है।। दुनिया के दामों में क्यों आया सौदाई है दीवाना है। साफ निकल इस फंदे से यार अगर  मरदाना है।। सतगुरु का नाम सुमर जो यह फंदा कटवाना है। वे दीन दयाल दया करके दें सतनाम परवाना है।। फिर सत्य धाम में जाए बसों, जो तेरा खास ठिकाना है। वहां खूबी राम संग खेल करो, जो सब जनों का जाना है।।

*302 बिना सत्संग के मेरे नहीं दिल को करारी है।। 124

बिन सत्संग के मेरे नहीं दिल को करारी है।। जगत के बीच में आया मनुष्य की देह को पाकर। फसाया जाल माया के, याद प्रभु की विसारी है।। सकल संसार के अंदर नहीं, इक कार है कोई। नजर में लाए कर देखा सभी मतलब की यारी है।। किया जप नेम तप पूजन, फिरा ती रथ के धामों में। न जाना रूप ईश्वर का, उमर सारी गुजारी है।। फटे अज्ञान का पर्दा कटे सब कर्म बंधन के। वह ब्रह्मानंद संतन का, समागम मोक्ष कारी है।।