*652. बरज रही में इन विषयन से ।।27।।

बरज रही मैं इन विषयों से। मान कही मन मूरख मेरी।।
जनम जनम के बैरी तेरे चोरासी लख फेरें फेरी।।
यह मीठे फल जहर भरे हैं सुख थोड़ा और विपदा घनेरी।।
मृगतृष्णा जल देख लुभाया प्यास मिटे नहीं कब हूं तेरी।।
ब्रह्मानंद संग तज इनका पावे मोक्ष लगे नहीं देरी।।

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