*683 जागो रे माया के।।683।।
683 जागो रे माया के लोभी, सद्गुरु चरणों लाग रे।। जो सुमरै सो हंस कहावै, कामी क्रोधी काग रे। भर्म मत भोवरा विष के बन में, चल बेगमपुर बाग रे।। कुब्द्ध काँचली चढ़ी है चित्त पे, हुआ मनुष्य से नाग रे। सूझे नाही सजन सुख सागर, बिना प्रेम वैराग रे।। उम्दा चौला रत्न अमोला, लगै दाग पे दाग रे। दो दिन की गुजरान जगत में, क्यो जले बिरानी आग रे।। तन सराय में जीव मुसाफिर, करता बहु अनुराग रे। रैन बसेरा कर ले डेरा, अजर हुए उत लाग रे।। उठ सवेरा भरा तमाखू, फूटे तेरे भाग रे। राम भजा ना सुकर्म कीन्हा, क्या जाग्या निर्भाग रे।। शब्द सैन सद्गुरु की पिछानी, पावै अटल सुहाग रे। नित्यानन्द महबूब गुमानी, पूर्ण प्रगट भाग रे।।