*671 निर्गुण अजर अमर रे हंसा।।671।।
671
सरगुन मरण जीवन वाली शंसा, निर्गुण की गम करले हंसा। निर्गुण अजर अमर रे हंसा,
जन्म मरण से न्यारे हंसा ना इन पे काल चक्र रे।
मरण जीवन में दुनिया सारी, साधु की सूरत शिखर रे।।
धरती आकाश से साधु ऊंचे, इनकी तेज मंजिल रे हंसा।
पवन से आगे संत चलत हैं,इनका तेज सफर रे।।
बरहमा विष्णु शिवजी तीनों, इनको भी खबर नहीं रे हंसा।।
कोय कोय साधु लखे है वाणी, वाणी बहुत जबर रे।।
हद बेहद से परे बसत हैं, पर वाणी से पर रे।
कह रविदास वे संत ना मरते, रहते अमरापुर रे।।
Comments
Post a Comment