*668 . हँसों का एक देश है।।668।।

                           
                                 668
हँसों का एक देश है रे, वहाँ जात न कोई।
काग कर्म ना छोड़ सकै रे, कैसे हंसा होई।।
            हंसा नाम धराय के रे, मन बगुला फूला।
            बोलचाल में ठंड सै रे, काया भूला।।
मानसरोवर का रूप रे, बगुला नहीं जानै।
जिनका मन मुलताई में रे, वो कैसे मानै।
            हंस बसै सुखसागरा रे, बगुला नहीं आवै।
            मोती ताल को छोड़ के रे, नहीं चोंच चलावै।।
हंस उड़ै हंसा मिले रे, बगुला भया न्यारा।
कह कबीर उड़ ना सकै रे, बगुला दीन बिचारा।। 

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