*616 साधु भाई अवगत लिखा न जाए।।616।।

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साधु भाई, अवगत लिखो ना जाई।
जो कुछ लिखे संत सूरमा, नूर में नूर समाई।।

जैसे चंदा उदक में दरसे, न्यू साहिब सब माही।
ला चश्मा घट भीतर देखो, नूर निरंतर माही।।

उरे से उरा दूर से दूरा, हरि हृदय के माही।
सपने नार गवाया बालक, जाग पड़ी जब वहां ही।।

जागृति ज्योत जगे घट भीतर, जहां देखो वहां साईं।
उग्या भान बीत गई रजनी, हरि हम अंतर नाही।।

ममता मेट मिलो मोहन से, गुरु से गुरु गम पाई।
कहे बन्ना नाथ सुनो भाई साधो, अब कुछ धोखा नाही।।

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