*665 हंसा ये पिंजरा नहीं तेरा।।665।।
665
हंसा ये पिंजरा नहीं तेरा।
माटी चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा।
ना घर तेरा ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा।।
बाबा काका भाई भतीजा, कोय न चले सङ्ग तेरा।
हाथी घोड़ा माल खजाना, पड़ा रहा धन तेरा।।
मातपिता स्वार्थ के लोभी, कहते मेरा मेरा।
कह कबीर सुनो भई साधो, एक दिन जंगल डेरा।।
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