*619 मथुरा जाऊं ना मैं काशी ।।619।।।। रविदास।।

                               619
मथुरा जाओ ना मैं काशी, हम बेगमपुर के वासी।।
रहने रहे तो रोगी कहिए कर्म करें तो कामि।
रहनी गहनी दोनों नाही ना सेवक ना स्वामी।।
इंद्रिय काट के बना कसाई जग में रहता बोरा।
हम तो इन पांचों से नारे जी काले जम का जोरा।।
ठाकुर तो सब ठोक जलाए, हल से हाट उठाई।
राम खुदा वहां करें मजबूरी उस ते रे जाके पाई।।
आपा मार अपन पर मेरा तेग गुरु से लाई।
कह रविदास सुनो भाई साधो तेग में तीर दुहाई।।

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