*670 चल हंसा वही देश जहां तेरे पीव़ बसे हैं।।670।।
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चलो हंसा वही देश जहां तेरे पिव बसे हैं।।
नो दस मूल दसों दिशी खोले, सुरती गगन चढ़ा के।
चढ़े अटारी सूरत संभारी फिरना भव जल आवे।।
जगमग जोत गगन में जल के बिरहा राग सुनावे।
मधुर मधुर अनहद बाजे प्रेम अमृत झड़ लावे।।
ठाडी मुक्ति भरे जहां पानी लक्ष्मी झाड़ू लावे।
अष्ट सिद्धि ठाडी कर जोड़े ब्रह्मा वेद सुनावे।।
जग में गुरु बहुत कनफूका पासी लाए बुझा वे।
कहे कबीर सोई गुरु पूरा, कन्त ही आन मिलावे।
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