*668 जिंदगी में हजारों का मेला लगा।।668।।
668
जिंदगी में हजारों का मेला लगा। हंस जब भी गया तो अकेला गया।।
ना वह राजा रहे ना वह रानी रही,
सिर्फ कहने को उनकी कहानी रही।
साथ मरघट से आगे कोई ना गया।।
कोठी बंगले बने के बने रह गए, रिश्ते नाते लगे के लगे रहे।
प्राण राम जब निकलन लागे,
उलट गई दोनों नैन पुतरिया।।
अंदर से जब बाहर लाए,
छूट गई सब महल अटरिया।
साथ रुपइया देना गया।।
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