*649 मिल बिछड़न की पीर री हेली।।649।।
649
मिल बिछड़न की पीर री हेली, मिल बिछड़े सोइ लखै।हरि से बिछड़ी आत्मा री हेली, जग में धरयो शरीर।।
बौरी हो डोरी लगी री हेली, पिछली बात सम्भाल।
हमसे किस विध बिछड़े री हेली, वह हरि दीनदयाल।।
अब हम अपने वश नहीं री हेली, फिरैं जगत वन माहीं।
साध सन्देशा दे गए री हेली, समझ समझ पछताई।।
जा दिन से हरि बिछड़े री हेली, तन मन धरै ना धीर।
हमरी गति ऐसी भई री हेली, ज्यूँ मछली बिन नीर।।
बिसर गई हम देह को री हेली, लाग्या उनमन ध्यान।
तन जग में मन पीव में री हेली, छीन इत छिन उत प्राण।।
स्वामी गुमानी एक है री हेली, मन मन्दिर के माय।
नित्यानंद की गह लई री हेली, आप निरंजन बांह।।
Comments
Post a Comment