*611 हे जी हे जी साधु कैसे ये विश्व बनाया।।611।।

                               611
हे जी हे जी साधु, कैसे यह विश्व बनाया।
बिना रचना के देख देख के, मोहे अचंभा आया।।

निराकार निर्लेप पुरुष था, नहीं ईश्वर नहीं माया।
मात-पिता दोनों ही नाहीं, पुत्र कैसे जाया।।

धरती और आसमान नहीं थे, कैसे भवन बनाया।
बिना भवन के कहां बैठ, रचना का मता उपाया।।

मात कुमारी ब्रह्मचारिणी, पुत्र कैसे जाया।
बाप कुंवारा बेटा चाहिए, कैसा ढोंग रचाया।।

मन बुद्धि अहंकार नहीं थे, इच्छा में दर्शाया।
इन इच्छा से बने मुकदमा, वेदव्यास ने गाया।।

बिना भेद का भेद गुरु, ओंकारानंद लखाया।
माया से प्रकट करता, सोई तत्व मसि बनाया।।

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