*671 काया नगरी में हंसा बोलता।।671।।
671
काया नगरी में हंसा बोलता रे।।
आप ही बाग और आप हैं माली।
आप ही फूल तोड़ता।।
आप डांडी आप पलड़ा,
आप ही माल तोलता।।
आप गरजे आप ही बरसे,
आप ही हवा में डोलता।।
कह रविदास सुनो भई साधो,
पूरे को क्या तोलता।।
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