*653 पाया निज नाम हेली।। कबीर।।653।।

                               653
पाया निज नाम हेली पाया निज नाम हे।।
शब्द धुन लागी पाया निज नाम।।
मने सतगुरु नाम सु आयो मारी नाभि कमल ठहरायो।
                 सखी गगन मंडल गरनायो हे।।
मारा सतगुरु राह बतायो मने ज्ञान यथार्थ पायो।
                झट आनंद सुख पायो हे।।
मारी सूरत सुहागिन शानी, मने सूरत गगन में तानी।
                वहां बैठे मौजा मारो हे।।
मारी सूरत सुहागन प्यारी तुम करो शब्द से यारी।
              कबीर मुक्ति भंडारी हे।।

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