*617 या विद मारो गोता साधव।।617।।
617
या विद मारो गोता साधु।।सिमरन सार पार सागर, फिर जन्म नहीं होता।
आशा तृष्णा काट के नदिया, फिर भक्ति फल होता।।
हुई भेंट मिलेंगे खेवटिया, भरम बोझ नहीं ढोता।।
संकल्प विकल्प काट पंखुड़ी फिर मन से जंग होता।
सूरा होवे लड़े रन माही, उड़ जा पोल सब थोथा।।
हो होशियार यार नहीं टूटे, तेरे ताप मल धोता।
सतगुरु पास वास अमरापुर, दूर खड़ा यम रोता।।
सतगुरु साक्षी हैं दोनों के, भूल भरम सब खोता
संगति नाथ कह फिर कोई भव ना, गुरु चरणन जो खोता।।
Comments
Post a Comment