*657 मेरे हंसा भाई, सब जग।।657।।
657
मेरे हंसा भाई, सब जग भुला पाया।। इसी भूल में ब्रह्मा भुला, वेद पुराण रचाया।
वेद पढ़े तो पंडित भूले, सार शब्द नहीं पाया।।
इसी भूल में विष्णु भुले, वैष्णव पंथ चलाया।
कर्म कांड में बांध जीव को, चौरासी भरमाया।।
इसी भूल में शंकर भुला, भिक्षुक पंथ चलाया।
सिरपर जटा हाथ मे खप्पर, घर घर अलख जगाया।।
इसी भूल में मोहम्मद भुला, न्यारा पंथ चलाया।
पर स्त्री सँग फिरा भर्मता, लिंग और मूँछ कटाया।।
इसी भूल में भुला, मछँदर, सिंगल द्वीप बसाया।
विषय वासना के वश होकर, अपना योज नसाया।।
कह कबीर सुनो भई साधो, हम युग युग जीव चिताया।
जिसने जान्या भर्म भूल का, फेर गर्भ ना आया।।
Comments
Post a Comment