*620 अमरगढ़ बाँका है रे भाई।।620।।

                                   620                              
अमरगढ़ बाँका है रे भाई, उड़ै पहुँचेगा विरला ए सन्त।।
कहां से आया तेरा बोलता रब,साधो कहां पे वो मरजाए।
इसका बेरा पाड़ लो साधो, जीवन मुक्त हो जाए।।
   नहीं आया आकाश से साधो, ना धरती में पाए।
   ये हंसा सत्तलोक का रे साधो, सत्त में रहा समाय।।
दुष्ट मुष्ट आवै न रे साधो, दफ्तर लिखा न जाए।
नामी ब्रह्म स्वरूप रे साधो, सब घट रहा समाए।।
   नाथ गुलाब जोगी कह भइ साधो, ये सद्गुरु की सैन।
  काला सर्प ख़िलावना रे साधो, नहीं है हंसी खेल।। 


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