*634 मेरे साधु भाई पारख है निज ज्ञान।। मस्ताना।।634।।
634
मेरे साथ हूं भाई पारख़ है निज ज्ञान।।करके देखो परम गुरु की दरसे नूर निशान।
शब्द सुरती दोनों लए हो गए मिट गया आवन जान।।
सात मंजिल पर बिलख भोम है ना धरती ना आसमान।
अजपा जाप है नहीं और ना सुमिरन ना ध्यान।।
दिन-रात भजन का ना बेरा पाटे, रहता एक समान।
आधार पर सतगुरु बस्ती वहां ना धरती ना भान।।
बिन बक्शीश पहुंच नहीं सकता पारख पद निर्माण।
कह छः सो मस्ताना पहुंचे दे शीश गुरु ने दान।।
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