*681 जो तूँ पिया की लाडली।।681।।

                            
                                     681
जो तूँ पिया की लाडली री, अपना कर ले री।
कलह कल्पना मेट के, चरणों चित्त ले री।।
   पिया का मार्ग कठिन है, खांडे की धारा।
   डगमग हो तो गिर पड़े, नहीं उतरे पारा।।
पिया का मार्ग सुगम है तेरी चाल अमेढा।
नाच न जाने बावली री, कह आंगन टेढा।।
    जो तूँ नाचन निकसी फेर घूंघट कैसा।
    घूंघट के पट खोल दे, मत करै अंदेशा
चंचल मन इत उत फिरैं, पतिव्रता जनावै।
सेवा लागी नाम की, पिया कैसे पावै।।
    खोजत ही ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि देवा।
    कह कबीर विचार के, करो सद्गुरु सेवा।। 

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