*672। तज दे हमसा भूल भरम को कर अपनी पहचान। तू है संतों की संतान।।672
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तज दे हंसा भूल भरम को, कर अपनी पहचान। तूं है संतों की संतान।।
अनमोले अवसर को, मत खोवे नादान।।
तूं है संतों की संतान।।
सतगुरु से तु घात करे ना।, बद कर्मों में नीत धरे ना।
नाम का हीरा कदे जरे ना, सदगुरु के बिन तनै सरे ना
जगत कूप तज के तिर ले, तूं सत सागर दरम्यान।।
संत दयालु तुम्हें जगावें, भूली वस्तु फिर जनावें।
कर विश्वास शरण में आवे, निज घर में तुझे पहुंचावें।
सत्संग दर्पण देख बावले हो जा आतम ज्ञान।।
तेरा मानसरोवर में है वासा, फिर क्यों करता जग की आशा।
तुम तो था सतगुरु का खासा, फिर क्यों बोले मीठा भाषा।
छोड़ उसे जो बीत गया रे कर आगे का ध्यान।।
नीचे ही क्यों भरो उडारी उठकर पहुंचे अटल अटारी।
सतगुरु खोलें महल तिवारी, कोटिक भानु है उजियारी।
एक उडारी और भरो तो, मिलता पद निर्वाण।।
सतगुरु कमर साहब से जाना, यह है हंसा ये देश विराना।
हरिकेश हो नाम दीवाना, पा जाएगा देश दीवाना।
राधा स्वामी देश है तेरा, मत भटको अंजान।।
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