*634 गुरू गम ज्ञान एक न्यारा।।634।।

                                 
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गुरू गम ज्ञान एक न्यारा रे। साधो भाई।।
             समझेगा गुरू मुख प्यारा रे।।
मूँड़ मुंडावै कोय लटा बंधावै, जोड़ जटा सिर भारा जी।
पशु की तरियां कोय नँगा डोलै, अंग लगावैं चारा जी।।
कन्दमूल फल खात कोय, वायु करै आहारा जी।
गर्मी सर्दी भूख प्यास सहे, तन जीर्ण कर डारा जी।।
सर्प छोड़ बांबी को पूजै, अचरज खेल अपारा जी।
धोबन पे वश चले नहीं रे, गधे ने क्या बिगाड़ा जी।।
ब्रह्मा विष्णु शंकर थक गए, धर-२ जग अवतारा जी।
पोथी पन्ने में क्या ढूंढे, वेद कहत नित हारा जी।
वेद कर्म और क्रिया से, वे वो लावैं वारा जी।
कह कबीर सुनो भइ साधो, मानो वचन हमारा जी।। 


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