*662 हंसा चाल बसों उस देश।।662।।
662
हनसा चाल बसों उस देश, जहां के वासी फेर ना मरे।।अगम निगम दो धाम, वास तेरा परै से परे।
वहां वेदा की भी गम ना, ज्ञान और ध्यान भी उड़े।।
जहां बिन धारणी की बाट, पैरा के बिना गमन करें।
उड़े बिन कानां सुन लेय, नैना के बिना दर्श करें।
बिन देहि का एक देव, प्राणों के बिना सांस भरे।
जहां जगमग जगमग होए, उजाल दिन रात रहे।।
त्रिवेणी के घाट एक, दरियाव बहे।
जहां संत करें स्नान, दूजा तो कोई नहाए ना सके।।
जहां नहाए तैं निर्मल हो, तपन तेरे तन कि बुझे।
तेरा आवागमन मिट जाए, चौरासी के फंद कटे।।
कहते नाथ गुलाब, जाए अमरापुर वास करें।
गुण गा गए भानी नाथ, लगन सबकी लागी ए रहे।।
Comments
Post a Comment