*638 मेरे सच्चे गुरु ने ज्ञान की भांग पिलाई।।638।।

                             638
मेरे सतगुरु ने ज्ञान की भांग पिलाई।।

पीले प्याला हो मतवाला, रोग रहे ना राई।
जन्म जन्म के बंधन कट जा सूरत लगाई घट माही।।

आसन लाय जुगत से बैठे, जगत त्याग धुन लाई।
अपार लहर उठे घट माही, शब्द में सूरत समाई।।

झिलमिल झिलमिल होय झिलामिल दो नेनों के माही।
सूरत निरत बीच देख ले तमाशा सतगुरु खेले माही।।

नाथ गुलाब गुरु मिले पूरे न्यू कह के समझाई।
भानी नाथ शरण सतगुरु की अगम जन्म दर्शाई।।

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