*680 राम नाम की मौज गुरु से पाईए।।680।।
राम नाम की मौत गुरु से पाइए।
हीरा हाथ चढ़ाए, ना फिर गंवाइए।।
प्रेम प्रीत प्रतीत, सनेह बढ़ाइए।
अवगत अंतर धार, सभी बिसराइए।।
यतन यतन कर राख रतन सी देह को।
इस तन सेती त्याग, जगत के नेह को।।
चला चली को देख सवेरा चेत रे।
अमरपुरी मुकाम जाए क्यों ना चेत रे।।
इस दुनिया के बीच बसेरा रैन का।
करो महल की सैल जहां घर चैन का।।
चला जाए तो चाल दांव यह खूब है।
पहुंचेंगे उस देश जहां महबूब है।।
अष्ट सिद्धि नव निधि नाम की दास है।
सुख संपत्ति सब भोग भक्ति के पास हैं।।
गुरु गुमानी दास ब्रह्म उजास है।
नित्यानंद भज लेय, तो कारज रास है।।
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