*648 बिन सद्गुरु पावै नहीं।।648।।

                              
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बिन सद्गुरु पावै नहीं, जन्म धराओ सो सो बार।।
   चाहे तो लौटो धरण में हेली री, सुन्न में बंगला छाय।
    लटा बढाओ चाहें शीश पे, नाद बजाओ दो चार।।
कड़वी बेल की कचरी हे हेली, कड़वा ए फल होय।
जींद भई जब जानिये, बेल बिछोवा होय।।
   जिन्द भई तो क्या भई हे हेली, चहुँ दिशा फूटी बात।
   बचना बीज बाकी रहा हे, फिर जामन की आश।।
वो लागी घणी बेलड़ी री हेली, जल बुझ हो गया नाश। 
आवागमन जब से मिटा हेली री कह गया धर्मिदास।।

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