*624 मैं जाऊंगा गुरु के देश फिर नहीं आऊंगा।। भानी नाथ।।624।।

                              624
मैं जाऊंगा गुरु के देश फिर नहीं आऊंगा।।

सारी गठरी खोल बता दूं, पांच तीन की रचना ला दू।
              अब लग रहा सीधा तार-तार चढ़ जाऊंगा।।

पांचू गुण यह अपने किनहे, यह पांचों में सतगुरु से लीनहे
            अब आठ पहर विश्राम सदा सुख पाऊंगा।।

बहुत स्वाद गया जीव का जो चाकू तो लागे फीका।
          देखत आवे छींक तुरंत भीग जाऊंगा।।

उलट पृथ्वी नीर मिलाऊं ओला नीर तेज में लाऊं।
          तेज पवन के बीच बैठ लो लाऊंगा।।

दे दी मौज अगम घर पाया सुख सागर में डेरा लाया।
         गुण गावे भानी नाथ अमर हो जाऊंगा।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35