*635 अगर है ज्ञान को पाना।।635।।

                               635                            
अगर है ज्ञान को पाना, तो गुरू की आ शरण भाई।

जटा सिर पर लगाने से, भस्म तन में रमाने से।
सदा फल फूल खाने से, कभी न मुक्ति हो पाई।।

बने मूरत पुजारी है, तीर्थ यात्रा प्यारी है।
कह वृद्धा ने भारी हैं, भरम मन का मिटे नाहीं।।

कोटि सूरज शशी तारा, करें प्रकाश मिल सारा।
बिना गुरू घोर अंधियारा, न पृभु का रूप दर्शाई।। 

ईश सम ज्ञान गुरू देवा, लगा तन मन करो सेवा।
ब्रह्मानन्द मोक्ष पद मेवा, मिले और बन्द कट जाइ।।

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