*635 गुरु ज्ञान की भांग पिलाई।।635।।

                                635
गुरु ज्ञान की भांग पिलाई मारी अंखियों में सुरती छाई।।

पिया प्याला हो मतवाला रोग रहे ना राई।
जन्म जन्म का संशय मिट जा, साधु संत ने पाई।।

झिलमिल झिलमिल हो रहा है दोनों नेन के माही।आया
ओहन सोहन सिमरन कर ले ज्योत जगे घट माही।।

रोम रोम में हो उजाला खड़े रहो सब छाईं।
जहां देखो वहां स्वाति नहीं है सब घट रहा समाई।।

गुरु रामानंद जी तुम बलिहारी सब पर होते सहाई।
कहत कबीर सुनो भाई साधो अटल नाम ने ध्याई।।

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