*636 भाई रे ज्ञान बिना पच मरता।।636।।

                               
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भाई रे ज्ञान बिना पच मरता।
साँचा सद्गुरु पूर्ण साँई, नहीं जन्मे नहीं मरता।।

ब्रह्मा एक सकल घट व्यापक ज्ञानी होय सो लगता।
रहनी धार कहनी को साधे, जिनका कारज सरता।।

रहता पुरूष विदेही घट में, अजर अमर सत्त करता।
जानेगा कोई विरला ज्ञानी, जो अनहद में रमता।।

शब्द स्नेही असल पारखी, नहीं काल से डरता।
निर्भय होय रमे आत्मा में, नूर निरन्तर रहता।। 

कह शिवानन्द ज्ञान बिन बन्दे, भाव नहीं इस तरता।
साँचा ज्ञान सद्गुरु से मिलता, क्यों नहीं सफल नर होता।।


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