*642 तुर्यापद में आसन ला के।।642।।
642
तुर्यापद में आसन लाके, गुण गोविंद के गा बन्दे।
तन को साफ करें तैं कुछ ना, मन को साफ बना बन्दे।।
पाँच तत्व का बना पुतला, ये बुलबुला है जल का।
थोड़ी देर का झटका है, नहीं भरोसा है पल का।
मेला मेली जग का बेली, किस्सा है सब हलचल का।
दो दिन की मेरा मेरी में, दूर जगत का है हल्का।
देख पराई चोपड़ी मत,
अपना जी ललचा बन्दे।।
वहाँ क्या क्या कर आया था, वादे सारे भूल गया।
माया रूपी बैठ पिंड पे, सहम नशे में टूल गया।
मातपिता सुत दारा देख के, गड़गम होके फूल गया।
करा कराया भजन बिन तेरा, सारा काम फिजूल गया।
आंख मींच सब काम करा,
कुछ न्याय सोचा ना भाव बन्दे।।
काम क्रोध मद लोभ मोह, बिल्कुल मन ने मार लिए।
दसों इन्द्रिय वश में करके, अपनी अगत सुधार लिए
आपा मारे स्वर्ग मिलेगा, पक्का सोच विचार लिए।
खैर चाहवै जान की, कर राम नाम तैं प्यार लिए।
देर है अंधेर नहीं वहां,
होगा सच्चा न्याय बन्दे।।
चंद्रभान कह जिंदगी ऐसी, जैसे मिट्टी का मटका।
ठेस लागते धरा सी फूटै, एक मिनट का ना अटका।
शाम सवेरी राम नाम रट, सत्संग का ले ले लटका।
सीधा जा बैकुंठ धाम में, किसे किस्म का ना खटका।
वैतरणी तैं पार होण का,
यो सीधा सा राह बन्दे।।
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