*679 तन सराय में जीव मुसाफिर।।679।।

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तन सराय में जीव मुसाफिर करता रहे अवघात रे।
रैन बसेरा करले न डेरा, उठ सवेरा त्याग रे।।

यह तन चोला रतन अमोला लगे दाग पे दाग री।
दो दिन की गुजरान जगत में, क्यों जले बिरानी आग रे।।

कुब्ध काचली चढी है चित्त पर हुआ मनुष्य से नाग रे।
सूझत नाही सजन सुख सागर, बिना प्रेम वैराग रे।।

सरवण शब्द बूझ सतगुरु से, पूर्ण प्रगते भाग रे
कह कबीर सुनो भाई साधो, पाया अटल सुहाग रे।।

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