*669 है सन्त समागम सार।।669।।

                                 
                                
                                     669
है सन्त समागम सार, हंस कोय आवैगा।
         हो भँवसागर से पार, ध्यान जो लावैगा।।
लाख वर्ष जो तप भी करले,चार धाम चाहे तीर्थ फिर ले।
         तप करले वर्ष हज़ार, भर्म नहीं जावैगा।।
बिन सत्संग बहुतेरे भटके, शेख फरीद कुएँ में लटके।
         फिर भी न पाया पार, कर्म फल पावैगा।।
करते साहब ना देखा देखी, पहर भगवां हुए भेखा भेख़ी।
       न्यू ना मिलता करतार, बहुत पछतावैगा।।  

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