*604 मेरे सद्गुरु चेतन चोर।।604।।
604
मेरे सद्गुरु चेतन चोर, मेरा मन मोह लिया जी।।जिसकै लागै वो ही जाणै, के जाणै कोय और।
घायल की गत घायल जाणै, के जाणै पगचोर।।
भूल गई मैं तन मन अपना, भूली लाख करोड़।
लगी हुई एक पल ना बिसरूं, जैसे चाँद चकोर।।
जबसे दृष्टि पलटी मेरी, नजर न आवै कोय और।
ढूंढ लिया मनै घट के अंदर, मिट गई मन की लौर।।
चली चली सद्गुरु पे पहुंची, भाज गए सब दूर।
मीरा को रविदास मिले हैं, चला नहीं कोय जोर।।
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