*669 क्यों पीवे तूं पानी हंसनी ।।669।।

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क्यों पीवे तू पानी हंसिनी तो पी ले।।
सागर खीर भरा घट भीतर पियो सुरती तानी।
जग को जार धंसो नभ अंदर, मंदिर परख निशानी।।
गुरु मूर्ति तू धार है मन के संग क्यों फिरत निमांनी।।
तेरे काज करें गुरु पूरे सुन ले अनहद वाणी।।
कर्म भरम वश सब जग बोरा तू क्यों होती दीवानी।
सूरत संभाल करो सतसंगत क्यों विश अमृत सानी।।
तेरा धाम अधर में प्यारी क्यों थारे संग बंधानी।
जल्दी करो चलो ऊंचे को राधा स्वामी कहत बखानी।।

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