*605 सद्गुरु ब्रह्म लखाया।।605।।

                                   605
सद्गुरु ब्रह्म लखाया साधो भाई।
लखा ब्रह्म भर्मना भागि, नहीं भर्म में आया।।
नाम न गाम नहीं कोई मेरै, मैं बेनाम कहाया।
रंग न रूप नहीं कुछ मेरै, सदा बेरंगी थाया।।
है अडोल तोल नहीं मेरै नहीं तोलन में आया।
सदा अखंड अजर अतीता, नहीं खण्डन में आया।।
गुप्त से गुप्ता रहता नाही, पर घट गुरु गुण गाया।
नभ ही जैसा ब्रह्म ही व्यापक, फैल रहा जग सारा।।
टीकमराम ता गुरु फेटियाँ, जिन मोहे भेद बताया।
कन्नीराम तो कह सभी से, गुरु से गम मनै पाया।। 


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