*647 पीव मिलन का मौका भला।।647।।अधूरा।।
647
पीव मिलन का मौका भला म्हारी हेली री, करलो न बेगी सिंगार।।
लग्न का लहंगा पहर लो म्हारी हेली री,
नेह का नाड़ा घाल।
शील का शालू थारै सिर सजै, अंगिया हे अगम विचार।।
पायल तो पहरो पग में प्रेम की, झीनी करो झनकार।
करनी का कंगन थारै कर सजै, चेतन चूड़ी डार।।
सत्त की तो पहरो सत्त लड़ी, गल बिच हरि का हार।
नथनी तो पहरो निज नाम की, विषय तजो हे विकार।।
सुन्न शिखर चढ़ देख ले----------
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