*637 सद्गुरु पूरण ज्ञान तुम्हारा।।637।।
637
सद्गुरु पूर्ण ज्ञान तुम्हारा।जो कोय आवै शरण आपकी, तज के मान गुमाना।।
मैं अनाथ अति निर्बल असहाई, फटका बहुत प्रकारा।
जब मैं सुनी आपकी महिमा, छोड़ा सब घर बारा।।
आप दयाल दीनों के दाता, कर कृपा अपनाया।
सहजै ज्ञान दिया झट अपना, भाग्या भर्म विकारा।।
सच्ची लग्न लगी जब घट में, पाया भेद तुम्हारा।
निश्चय करके नहीं डोलै, अर्स फर्स निर्भारा।।
जय शिवानन्द गुरु की महिमा, जाने जानन हारा।
हो निर्भय गुरु गम से पाया, अगम अखण्ड अपारा।।
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