*654 म्हारै सद्गुरु दे रहे हेला रे, सत्तनाम ।।654।।

                                 
                                  654
म्हारै सद्गुरु दे रहे हेला रे,
                 सत्तनाम सुमर मन मेला रे।।
     कोढ़ी कोड़ी माया जोड़ी, जोड़ भरा एक थैला रे।
     खाली आया खाली जागा, सङ्ग चले न एक धेला रे।।
मातपिता तेरा कुटुंब कबीला, ये दो दिन का मेला रे।
यहीँ मिला ओ यहीँ बिछुड़ जा, जागा हंस अकेला रे।।
     एक डाल दो पँछी बैठे, कोन गुरु कौन चेला रे।
   चेला तो चंचल है भाई, गुरु निरंतर खेला रे।।
इस पद का तुम भेद सुनो, कौन गुरु कौन चेला रे।
रामानन्द का कह कबीरा, शब्द गुरु चित्त चेला रे।।


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