*641 पांच तत्व और तीन गुना में।।641।।

                           641
पांच तत्व और तीन गुणों में, अपना ध्यान लगा तू।
इन सारां की पारख करके, निर्भय हो गुण गा तूं।।
गगन धरण पवन और पानी, अग्नि का प्रवेश हुआ।
जिन जिन में यह खोज लिया, उन्हें सतगुरु का उपदेश हुआ।
मान बढ़ाई गेर दी जिसने, श्रृंगी उनका भेष हुआ।
निश्चय करके बैठ गए फिर, असली वो उन का देश हुआ।
   अब काम क्रोध मद लोभ मोह का, मत ना जिक्र चला तू।।
कर्म धर्म ओर रिद्धि सिद्धि, पास  इन्ही के रहती।
ज्ञान विवेक करे घट अंदर, जब चमके वा जोती।
इधर-उधर की छोड कल्पना, चुग ले न निज मोती।
आठ पहर रहे खोज नाम की, किस्मत ना फिर सोती।
        आशा तृष्णा माया की मत, इच्छा विरह लगा तूं।।
दसों इंदरी तेरे पास बसत है, इनका ज्ञान करा नहीं।
ज्ञान इंद्री है मन का राजा, बिल्कुल ध्यान धरा नही।
शील संतोष ज्ञान ना बरता, आत्म सम्मान करा नहीं।
लख तीरथ को खोज करी ना, निजी कर्म करा नहीं।
      अष्ट कमल में तार पुरा है, सत की बेल खिला तूं।।
ओहम सोहम तेरे समीपी, मेरुदंड का करिए ख्याल।
भंवर गुफा के बीच बसत है, जिसको कहते हीरा लाल। आतम में परमातम दरसे, टूटे तेरा माया जाल।
कान्हा दास के चरण कमल में, श्याम चंद हुए निहाल।।
     दयाल दास सुनो धर्मदास अब, ज्ञान की अगन जला तूं।।

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