*603 सद्गुरु अलख लखाया।।603।।

                             
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सद्गुरु अलख लखाया, जिसमें अपना आप दिखाया।।

जैसे नभ में सुन्न दिखता, ओंकार सुन्न समाया।
अक्षर में निःअक्षर दिखै, हर अक्षर में पाया।।

जैसे किरण बसै रवि माहीं, किरण बीच रोशनाया।
पार ब्रह्म से जीव ब्रह्म है, जीव में सांस समाया।।

सांस बीच मे शब्द विराजे, अर्थ में शब्द बताया।
ब्रह्म में जीव जीव में मन है, गुरू इनसे न्यारा ध्याया।।

आपै बीज वृक्ष अंकुर में, आपै फूल फल छाया।
सूरज किरण प्रकाश आप ही, आप ब्रह्म जीव माया।।

आत्म में परमात्म दिखै, परमात्म में छाया।
छाया के में काया साधो, कबीरा सद्गुरु पाया।। 

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