*622 हम मस्त दीवाने लोग।।622।।

                                 622
हम हैं मस्त दीवाने लोग, हमने राम पिछाना है।।
ज्ञान ध्यान सहज पाया सुमरन, प्रेम वचन मुख बोल।।
क्रिया कर्म भर्म ना म्हारै, हे ना शंसय ना सोग।।   
ऊँच नीच की भिन्न नहीं म्हारै, ना दुतिया ना योग।। 
घीसा सन्त चले हैं निर्गुण जी, ये पाई है वस्तु अनमोल।। 

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