*680 प्रीत लगी तुम नाम की।।680।।

                                  680
प्रीत लगी तुम नाम की, पल बिसरूं नाही।
नजर करो अब मैहर की, मिलो मोहे गोसाई।।

बिरहा सतावे है जीव यो, तड़फे मेरा।
 तुम देखन का चाव है, प्रभु मिलो सवेरा।।

नैना तरसे दर्श को, पल पलक न लागे।
दर्द बंद दीदार का, निशि वासर जागे।।

जो अब के प्रीतम मिले विसरू नहीं न्यारा।
कहे कबीर गुरु पाईया प्राणों का प्यारा।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35